ब्रिटेन के राजपरिवार में एक बार फिर से तूफान उठ गया है। महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के प्रिय पुत्र और कभी ब्रिटिश नौसेना के शूरवीर माने जाने वाले प्रिंस एंड्र्यू का राजसी अस्तित्व अब इतिहास बन गया है। उन पर लगे यौन शोषण के आरोपों, अमेरिकी अरबपति और दोषी घोषित सेक्स अपराधी जेफरी एपस्टीन से उनके संबंधों, और पूरे राजपरिवार की छवि पर पड़े गहरे दाग के बाद, राजा चार्ल्स तृतीय ने निर्णायक और अभूतपूर्व कदम उठाते हुए उनके तमाम शाही खिताब, सम्मान और विशेषाधिकार वापस ले लिए हैं। ब्रिटिश शाही परंपरा के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी राजकुमार से इतने व्यापक स्तर पर उसकी पहचान छीन ली गई हो।
17 अक्टूबर को जारी आदेश के तहत, एंड्र्यू को “ड्यूक ऑफ यॉर्क”, “अर्ल ऑफ इनवर्नेस”, “बारन किलीली” जैसे प्रतिष्ठित खिताबों से वंचित कर दिया गया। इतना ही नहीं, “हिज रॉयल हाइनेस” (His Royal Highness) जैसी पारंपरिक उपाधि, जो शाही गरिमा का प्रतीक मानी जाती है, भी उनसे ले ली गई। उन्हें ऑर्डर ऑफ द गार्टर और नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ द विक्टोरियन ऑर्डर जैसे ऐतिहासिक सम्मानों से भी मुक्त कर दिया गया है। अब वे सिर्फ “एंड्र्यू माउंटबेटन विंडसर” के नाम से जाने जाएंगे — यह नाम उनके लिए एक नए लेकिन अपमानजनक अध्याय की शुरुआत का प्रतीक बन गया है।
एंड्र्यू ने अपने बयान में कहा, “मुझ पर लगाए गए आरोप पूरी तरह निराधार हैं और मैं उनका पूर्ण खंडन करता हूं। लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण राजा और रॉयल फैमिली के कार्यों से जनता का ध्यान भटके।” हालांकि उनका यह बयान जनमत को शांत नहीं कर पाया। ब्रिटिश मीडिया और जनता का गुस्सा चरम पर है। लंबे समय से मांग उठ रही थी कि राजपरिवार को ऐसे सदस्य से दूरी बनानी चाहिए, जिसने सार्वजनिक भरोसे को ठेस पहुंचाई है।

रॉयल लॉज — जो विंडसर ग्रेट पार्क में स्थित है और बीते तीन दशकों से एंड्र्यू का आधिकारिक निवास था — अब उनके अधिकार से बाहर कर दिया गया है। बकिंघम पैलेस की ओर से औपचारिक नोटिस जारी कर उनकी लीज समाप्त कर दी गई। यह वही निवास था, जो महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के शासनकाल में एंड्र्यू को जीवनभर के लिए दिया गया था और जिसे अब औपचारिक रूप से रद्द कर दिया गया है। रिपोर्टों के अनुसार, एंड्र्यू को अब नॉरफोक के सैंड्रिंघम एस्टेट में अस्थायी रूप से स्थानांतरित किया जाएगा, जहां राजा चार्ल्स ने उनके लिए “सीमित निजी व्यवस्था” की है। शाही सूत्रों के मुताबिक, यह पूरा खर्च राजा की निजी निधि से वहन किया जाएगा, क्योंकि पिछले वर्ष एंड्र्यू की आधिकारिक फंडिंग पूरी तरह बंद कर दी गई थी।
पूरे विवाद की जड़ उस “गंभीर निर्णय की कमी” में है, जो एंड्र्यू ने जेफरी एपस्टीन के साथ अपने संबंधों में दिखाई। 2011 में लीक हुए ईमेल से यह स्पष्ट हुआ कि उन्होंने एपस्टीन से संपर्क बनाए रखा था, जबकि उन्होंने पहले सार्वजनिक रूप से दावा किया था कि उनकी दोस्ती खत्म हो चुकी है। यौन शोषण की पीड़िता वर्जीनिया ग्यूफ्रे ने अपने संस्मरण में एंड्र्यू पर नाबालिग अवस्था में शारीरिक संबंध बनाने के आरोप लगाए थे। हालांकि एंड्र्यू ने इन आरोपों को हमेशा सिरे से नकारा, लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका दोनों में जनता का विश्वास उनसे उठ गया। स्थिति तब और बिगड़ी जब हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान एक प्रदर्शनकारी ने राजा चार्ल्स को “एपस्टीन का दोस्त बचाने वाला राजा” कहकर चिढ़ाया। इस घटना ने राजपरिवार को गहरी असहजता में डाल दिया और उसके तुरंत बाद यह कार्रवाई शुरू की गई।
वित्तीय दृष्टि से भी एंड्र्यू की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। पिछले वर्ष राजा चार्ल्स ने उनके लिए जारी सभी राजकीय फंड बंद कर दिए थे। अब वे अपनी निजी आय पर निर्भर हैं, जिसमें चीन और गल्फ देशों में उनके पुराने व्यावसायिक संबंध और एक डच स्टार्टअप में सीमित निवेश शामिल है। ब्रिटिश पब्लिक अकाउंट्स कमिटी ने भी यह सवाल उठाया है कि क्या पूर्व प्रिंस ने अपने रॉयल पद का दुरुपयोग करते हुए किसी आर्थिक लाभ के लिए अपनी स्थिति का फायदा उठाया था। इस मामले में अब जांच की संभावना भी जताई जा रही है।
एंड्र्यू की पूर्व पत्नी सारा फर्ग्यूसन को भी इस झटके का सामना करना पड़ा। उन्हें “डचेस ऑफ यॉर्क” का सौजन्य खिताब खोना पड़ा और वे अब अपने जन्मनाम से जानी जाएंगी। वे भी रॉयल लॉज से बाहर जा रही हैं और नई निजी व्यवस्था कर रही हैं। हालांकि उनकी बेटियां — प्रिंसेस बियाट्रिस (37) और प्रिंसेस यूजनी (35) — अपने “प्रिंसेस” खिताब और उत्तराधिकार क्रम में स्थिति बनाए रखेंगी। वे दोनों कार्यरत रॉयल नहीं हैं और स्वतंत्र रूप से जीवन जी रही हैं, इसलिए यह विवाद सीधे तौर पर उन्हें प्रभावित नहीं करता।
जानकारी के अनुसार, इस पूरे निर्णय पर राजा चार्ल्स ने अपने बेटे प्रिंस विलियम, प्रिंसेस ऐनी और अन्य वरिष्ठ सलाहकारों से परामर्श किया था। विलियम ने ही इस कार्रवाई की सिफारिश की थी, ताकि राजपरिवार की गरिमा को बचाया जा सके। शाही सूत्रों का कहना है कि यह फैसला “दर्दनाक लेकिन आवश्यक” था, क्योंकि राजपरिवार को अब नैतिक और सार्वजनिक विश्वसनीयता के मोर्चे पर खुद को पुनर्स्थापित करना है।
यह पूरा घटनाक्रम ब्रिटिश शाही इतिहास में एक ऐसी घटना के रूप में दर्ज होगा जिसने दिखाया कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह शाही खून से ही क्यों न हो, यदि वह जनता के भरोसे को तोड़ता है तो उसके पद और प्रतिष्ठा की कोई गारंटी नहीं रह जाती। एंड्र्यू माउंटबेटन विंडसर का यह पतन न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन का अंत है, बल्कि ब्रिटिश राजपरिवार के लिए एक ऐसा सबक भी है जिसने यह स्पष्ट कर दिया है कि “नैतिकता और जनविश्वास” के बिना कोई भी ताज टिक नहीं सकता। ब्रिटिश मीडिया ने इसे अब तक का “हाउस ऑफ विंडसर का सबसे बड़ा घोटाला” करार दिया है — एक ऐसा स्कैंडल जिसने एक प्रिंस को आम आदमी बना दिया।




