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रेवड़ियां नहीं रिश्वतखोरी: बिहार में महिलाओं को 7500 करोड़, वोट की अपील के साथ

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पटना / नई दिल्ली 3 अक्टूबर 2025

मोदी और नीतीश का दोहरा चेहरा

जो लोग मंचों से खड़े होकर यह दावा करते नहीं थकते कि “हम वो नहीं जो चुनाव जीतने के लिए रेवड़ियां बांटे,” वही लोग अब खुलेआम जनता के पैसों को चुनावी रिश्वत में बदलते नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मिलकर राज्य की 75 लाख महिलाओं के अकाउंट में 7500 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए, और उसके तुरंत बाद उनसे चुनाव में “ध्यान रखने” की अपील की। सवाल यह है कि क्या यह लोकतंत्र है या संविधान के साथ खुला खिलवाड़?

10-10 हजार का पैकेज और वोट की सौदेबाजी

बिहार की हर महिला के अकाउंट में 10-10 हजार रुपये ट्रांसफर करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सार्वजनिक मंच से कहा—“हमारा ध्यान रखिएगा, वोट RJD को नहीं जाना चाहिए।” यह बयान सिर्फ एक अपील नहीं, बल्कि चुनावी आचार संहिता की खुली धज्जियां उड़ाना है। जब जनता के टैक्स के पैसों को सीधे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो यह रेवड़ी नहीं, बल्कि सीधी-सीधी रिश्वतखोरी है।

संविधान और लोकतंत्र पर हमला

भारत का संविधान साफ कहता है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होने चाहिए। लेकिन जब सत्ता में बैठा मुख्यमंत्री सरकारी खजाने से हजारों करोड़ खर्च करके वोटरों को कैश ट्रांसफर करे और बदले में “वोट” मांगे, तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर सबसे बड़ा हमला है। यह न सिर्फ आचार संहिता का उल्लंघन है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग की जिम्मेदारी पर भी सवाल खड़ा करता है। अगर यह रिश्वतखोरी नहीं है, तो फिर इसे और किस नाम से पुकारा जाए?

“हम रेवड़ी नहीं बांटते”… 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर विपक्षी दलों पर आरोप लगाया कि वे “रेवड़ी संस्कृति” फैलाकर जनता को लुभाते हैं। लेकिन अब सवाल उठता है—क्या महिलाओं के अकाउंट में हजारों करोड़ ट्रांसफर करना और फिर उनसे वोट की उम्मीद करना रेवड़ी नहीं बल्कि उससे भी बड़ा अपराध नहीं है? मोदी का यह दोहरा चेहरा अब जनता के सामने उजागर हो चुका है। जब विपक्ष कुछ देता है तो उसे रेवड़ी कहा जाता है, लेकिन जब बीजेपी और उसके सहयोगी वही काम करते हैं तो उसे “जनकल्याण” का नाम दे दिया जाता है। और ये कोई पहली बात नहीं कर रही है बीजेपी सरकार। 

चुनाव आयोग की चुप्पी और जनता का सवाल

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब मुख्यमंत्री खुलेआम मंच से कह रहे हैं कि “हमारा ध्यान रखिएगा,” तो चुनाव आयोग क्यों खामोश है? क्या लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सिर्फ विपक्ष पर नकेल कसने के लिए है? क्या सत्ता में बैठे नेताओं को रिश्वतखोरी की खुली छूट है? बिहार की महिलाओं को दिया गया 7500 करोड़ रुपये का यह पैकेज लोकतंत्र को कलंकित करता है और यह साफ करता है कि सत्ता की भूख में नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं।

जनता को हिसाब मांगना होगा

अब वक्त आ गया है कि जनता सिर्फ तमाशा न देखे, बल्कि अपने टैक्स के पैसों का हिसाब मांगे। 7500 करोड़ रुपये से बिहार में नए अस्पताल, कॉलेज, रोजगार योजनाएँ और सिंचाई प्रोजेक्ट तैयार किए जा सकते थे, लेकिन इन्हें चुनावी सौदेबाजी में झोंक दिया गया। महिलाओं से वोट मांगने के नाम पर जो किया गया, वह लोकतंत्र का अपमान है। अगर जनता आज चुप रही, तो कल हर चुनाव इस “कैश-फॉर-वोट” मॉडल पर लड़ा जाएगा और संविधान की आत्मा हमेशा के लिए दम तोड़ देगी।

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