मुंबई, महाराष्ट्र
17 जुलाई 2025
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक अहम निर्णय में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA और भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (देशद्रोह कानून) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोकले की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, “UAPA अपने वर्तमान स्वरूप में संविधान के अनुरूप है… चुनौती असफल रही।” याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों का हनन करता है, लेकिन कोर्ट ने इन दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है और ऐसे कानूनों की आवश्यकता आज के दौर में और भी अधिक है। अदालत ने माना कि इन कानूनों का उद्देश्य न केवल आतंकी गतिविधियों पर रोक लगाना है बल्कि देश की अखंडता और संप्रभुता को सुरक्षित रखना भी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ कानून की सख्ती को आधार बनाकर उसकी संवैधानिकता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, जब तक वह उद्देश्यपूर्ण ढंग से कार्य कर रहा हो और संविधान की मूल भावना के खिलाफ न हो।
इस फैसले को लेकर कानूनी और राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। जहां सरकार और सुरक्षा विशेषज्ञों ने फैसले को राष्ट्रीय हित में बताया है, वहीं कई मानवाधिकार संगठन और सिविल सोसायटी समूहों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया है। आलोचकों का कहना है कि UAPA और धारा 124A जैसे कानूनों का अतीत में दुरुपयोग हुआ है और इससे असहमति की आवाजों को कुचलने का रास्ता खुलता है। दूसरी ओर, कोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि इन कानूनों में पर्याप्त प्रक्रियात्मक सुरक्षा मौजूद है और किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार करने या प्रताड़ित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत का यह फैसला इस ओर संकेत करता है कि जब तक संसद द्वारा बनाए गए कानून स्पष्ट रूप से असंवैधानिक न हों, न्यायपालिका उनका समर्थन करेगी और विधायी विवेक में हस्तक्षेप से परहेज़ करेगी।