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बीजेपी प्रो. राकेश सिन्हा पर बड़ा सवाल — दो-दो राज्यों में वोट डालने वाला “संघी ठेकेदार” अब नैतिकता का पाठ पढ़ाएगा?

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दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और बीजेपी के पूर्व सांसद राकेश सिन्हा पर अब गंभीर आरोप लग चुके हैं। यह मामला कोई मामूली चूक नहीं बल्कि लोकतंत्र और संविधान दोनों के साथ सीधा खिलवाड़ है। फरवरी 2025 में राकेश सिन्हा और उनकी पत्नी ने दिल्ली में वोट डाला था — सबूत मौजूद हैं। उनकी पत्नी अब भी दिल्ली की मतदाता सूची में दर्ज हैं। फिर अप्रैल 2025 में राकेश सिन्हा ने अचानक दिल्ली का वोटर आईडी कैंसिल करवाया और बिहार में नया बनवा लिया, यह कहकर कि उन्होंने अब स्थायी रूप से बिहार में निवास शुरू कर दिया है। लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है — सितंबर 2025 तक वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के टीचर्स यूनियन (DUTU) चुनाव में मतदाता बने रहे, वहीं से सैलरी ले रहे थे और विभिन्न ‘संघी’ कॉन्क्लेव्स में बतौर “दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर” मंच साझा कर रहे थे।

यह कोई साधारण गलती नहीं बल्कि स्पष्ट फ्रॉड और चुनावी अपराध है। दो राज्यों में एक ही व्यक्ति द्वारा वोट डालना भारतीय चुनाव कानून की धारा 31 के तहत सीधा दंडनीय अपराध है। फिर भी, चूंकि बीजेपी की सरकार केंद्र और बिहार दोनों जगह है, तो कार्रवाई की उम्मीद करना बेमानी है। यह वही स्थिति है जिसे लोग कहते हैं — “चोर-चोर मौसेरे भाई।” बीजेपी के अनगिनत कार्यकर्ताओं ने भी यही किया — पहले दिल्ली में लोकसभा चुनाव में वोट डाला और अब बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाता बनकर मतदान कर रहे हैं। यह सिर्फ एक व्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि एक संगठित चुनावी घोटाला है जिसमें सत्ता पक्ष की शह और चुनाव आयोग की चुप्पी दोनों शामिल हैं।

उधर, जो असली मतदाता थे — यादव, पिछड़ा वर्ग, अतिपिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक — उन्हें मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया। यही कारण है कि चुनाव आयोग ने “SIR” के नाम पर बिहार में 67 लाख वोट डिलीट किए और बीजेपी के 33 लाख नए मतदाता जोड़ दिए। अब यह समझना मुश्किल नहीं कि खेल कहां से और किसके इशारे पर चल रहा है।

अब वक्त आ गया है कि ऐसे लोगों को केवल सार्वजनिक मंचों से नहीं, बल्कि सरकारी नौकरियों से भी बाहर का रास्ता दिखाया जाए। राकेश सिन्हा जैसे लोग जो संविधान, मतदाता प्रणाली और शिक्षा जगत की मर्यादा से खिलवाड़ करते हैं, उन्हें किसी भी हालत में दिल्ली यूनिवर्सिटी में नौकरी पर बने रहने का अधिकार नहीं है। उनकी पेंशन और सभी सुविधाएं तत्काल प्रभाव से बंद की जानी चाहिए, ताकि आने वाले समय में कोई और “संघी प्रोफेसर” लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाने की हिम्मत न करे।

सवाल साफ है — क्या दिल्ली यूनिवर्सिटी और चुनाव आयोग इस अपराध पर कार्रवाई करेंगे, या फिर एक बार फिर बीजेपी और उसके नुमाइंदों को “संघ सुरक्षा कवच” मिल जाएगा? जनता देख रही है, और देश याद रखेगा कि कैसे लोकतंत्र के नाम पर वोट की चोरी का नया अध्याय लिखा जा रहा है।

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