नई दिल्ली/ रियाद 21 अक्टूबर 2025
बिरयानी की दो दुनिया: हैदराबाद का स्वाद, ओमान की खुशबू
बिरयानी—यह नाम मात्र भूख को शांत करने वाला शब्द नहीं है, बल्कि यह विरासत, कला और पहचान का एक सशक्त प्रतीक है। यह व्यंजन भारतीय उपमहाद्वीप और गल्फ (खाड़ी) क्षेत्र दोनों में गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है, मगर दोनों क्षेत्रों में इसके स्वाद, बनाने की शैली, उपयोग किए जाने वाले मसालों और इसके प्रतीकात्मक अर्थ में सूक्ष्म लेकिन गहरी भिन्नताएँ मौजूद हैं। भारतीय बिरयानी जहाँ अपने जटिल मसालों, ‘दम पुख्त’ की कला और सदियों पुरानी परंपराओं में बसी हुई है, वहीं गल्फ बिरयानी (जिसे अक्सर मजबूस/कब्सा से अलग लेकिन उससे प्रभावित माना जाता है) सादगी, शुद्ध सुगंध और मांस के विलासितापूर्ण उपयोग में लिपटी हुई है। आइए, भारत के प्रमुख केंद्र लखनऊ और हैदराबाद से लेकर खाड़ी के शहरों मस्कट और रियाद तक, इस पाक-कला के सांस्कृतिक सेतु को गहराई से समझते हुए दोनों शैलियों के बीच के अंतर को उजागर करें।
लखनऊ की नवाबी बिरयानी
लखनऊ (अवध) की बिरयानी को भारतीय बिरयानी परंपरा में सबसे सुरुचिपूर्ण और परिष्कृत माना जाता है। इस बिरयानी का स्वाद इसकी ‘नफ़ासत’ (बारीकी) और ‘तहज़ीब’ में है। इसे पारंपरिक रूप से “दम पुख्त” (धीमी आँच पर पकाना) शैली में बनाया जाता है, जहाँ सीलबंद देग में चावल और मांस को पकाया जाता है, ताकि प्रत्येक बासमती का दाना सुगंध और स्वाद के तेल से पूरी तरह सराबोर हो जाए। यहाँ की बिरयानी में मसालों का उपयोग अत्यंत हल्का और सुगंध-आधारित होता है—जैसे हरी इलायची, दालचीनी, लौंग और प्रीमियम केसर की खुशबू प्रमुख रहती है। मांस (विशेषकर बकरे का गोश्त) को दही और केवड़ा जल में अत्यंत सावधानी से मैरिनेट किया जाता है। यह बिरयानी स्वाद में तीखी नहीं होती, बल्कि नर्म (सौम्य) और सुरुचिपूर्ण होती है। यह दरअसल नवाबी तहज़ीब की झलक देती है—जहाँ स्वाद में सादगी, सुगंध और सौम्यता को महत्त्व दिया जाता है, और इसका प्रस्तुतीकरण किसी शाही दावत से कम नहीं होता।
हैदराबादी बिरयानी मसालों और सांस्कृतिक संगम का प्रतीक
हैदराबाद की बिरयानी निस्संदेह भारत की सबसे लोकप्रिय और विश्वविख्यात बिरयानी मानी जाती है। इसका उद्गम मुग़लई और दक्कनी रसोई (निजामों के शासनकाल) के अनूठे संगम से हुआ, जो इसे एक विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान देता है। यहाँ बिरयानी मुख्य रूप से दो विधियों से बनाई जाती है—कच्ची बिरयानी (जहाँ कच्चे मांस और कच्चे चावल को एक साथ मैरिनेट कर दम दिया जाता है) और पक्की बिरयानी (जहाँ मांस को पहले आंशिक रूप से पकाया जाता है और फिर पके चावल के साथ दम दिया जाता है)। इसमें मसाले का उपयोग भरपूर और बहुस्तरीय होता है—हरी मिर्च, पुदीना, धनिया, केसर, तले हुए प्याज (बरिस्ता) और घी का गाढ़ा उपयोग इसे एक तीव्र और गहरा स्वाद प्रदान करता है। हैदराबादी बिरयानी अपने मसालों की गर्मी (गरम मसाला) और जटिल खुशबू की शक्ति के लिए जानी जाती है। यह बिरयानी भारत की सांस्कृतिक विविधता की एक उत्कृष्ट मिसाल है—जहाँ मुस्लिम रसोई की तकनीक, तेलुगु परंपराओं और उत्तर भारतीय मसालों ने मिलकर एक तीखा, चटपटा और समृद्ध व्यंजन गढ़ा।
मस्कट की गल्फ बिरयानी: भारतीय तड़का, अरबी अंदाज़
ओमान (मस्कट) की बिरयानी, जिसे अक्सर ओमानी बिरयानी कहा जाता है, भारतीय पाक-कला के सीधे प्रभाव से उपजी है, लेकिन इसे स्थानीय अरबी स्वाद के अनुरूप ढाला गया है। यहाँ भी भारतीय बासमती चावल का उपयोग होता है, लेकिन मसाले बेहद सीमित और स्वच्छंद होते हैं। इलायची, दालचीनी और केसर के साथ-साथ सूखे मेवे (नट्स) और खजूर (Dates) का मीठा स्पर्श इसे एक अनोखी मिठास और सुगंध प्रदान करता है। मस्कट की बिरयानी में अक्सर चिकन या मटन के साथ स्थानीय रूप से ऊँट का मांस (Camel Meat) भी इस्तेमाल किया जाता है, जो इसे एक विशिष्ट अरबी पहचान देता है। यहाँ की बिरयानी में भारतीय ‘दम पुख्त’ तकनीक का प्रभाव तो है, लेकिन स्वाद में तीखेपन की जगह सौम्यता, गहराई और एक विशिष्ट अरबी महक का ठहराव है। यह व्यंजन उन भारतीय प्रवासियों की विरासत का प्रतीक है जो खाड़ी देशों में आकर बसे, और जो अरब की सादगी में हिंदुस्तान की खुशबू को घोल गए।
रियाद की शाही बिरयानी: इबादत में लिपटा ज़ायके का शाही अंदाज़
सऊदी अरब (रियाद) की बिरयानी वहाँ के धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों में एक विशेष और अनिवार्य स्थान रखती है। यह विशेष रूप से रमज़ान, ईद या बड़े शादी-ब्याह के मौकों पर एक ‘क़ुरबानी की दावत’ और विलासिता का प्रतीक बन जाती है। रियाद की बिरयानी में बासमती चावल का उपयोग तो हिंदुस्तानी है, पर स्वाद में यह मध्य-पूर्वी मिश्रण लिए होती है—इसमें बकरी या चिकन के साथ केसर, किशमिश, काजू और कभी-कभी दही में पकाया हुआ ऊँट का मांस भी शामिल होता है। सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि यहाँ शुद्ध घी (Clarified Butter) की जगह अक्सर जैतून का तेल (Olive Oil) या स्थानीय तेल का प्रयोग होता है, और तले हुए प्याज (बरिस्ता) की जगह कारमेलाइज़्ड खजूर (Dates) या किशमिश का प्रयोग मिठास और नमी के लिए होता है। रियाद की बिरयानी भारत से आई रेसिपी का एक शाही, सौम्य और धार्मिक रूप है—जहाँ स्वाद में सादगी और सुगंध पर ज़ोर है, और परंपरा में अतिथि सत्कार (मेहमाननवाज़ी) का आदर स्पष्ट है।
बिरयानी: स्वाद नहीं, सभ्यता की सुगंध
भारतीय बिरयानी भारत की जटिल विविधता, सह-अस्तित्व और क्षेत्रीयता का एक जीता-जागता प्रतीक है। यह मसालों की उस गूँज को दर्शाती है जो भारत की उपजाऊ और बहुरंगी धरती की तरह हर प्रांत में बदल जाती है—हर स्वाद, अपनी सुगंध और अपनी कहानी। यह भारतीय समाज की जटिल संरचना को दर्शाती है। वहीं, गल्फ बिरयानी (यानी ओमानी और सऊदी शैली) भारतीय उपमहाद्वीप की देन होते हुए भी अब अरब की संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन चुकी है। वहाँ यह एक विलासिता, अपनत्व और उदार मेहमाननवाज़ी का प्रतीक है—एक ओर यह भारतीय प्रवासियों की पुरानी यादों को ताज़ा करती है, तो दूसरी ओर यह अरबी पाक-कला की पहचान बन चुकी है। भारतीय बिरयानी जहाँ अपने जड़ों की गहराई और ऐतिहासिक परंपराओं को दिखाती है, वहीं गल्फ बिरयानी सांस्कृतिक आदान-प्रदान (Cultural Exchange) और वैश्वीकरण का एक स्वादिष्ट चेहरा बन गई है। दोनों के बीच बासमती चावल वह दूत है जिसने दो महान सभ्यताओं को मसालों के माध्यम से जोड़ दिया है।
बिरयानी: स्वाद का नहीं, संस्कृतियों का संगम
लखनऊ की नज़ाकत, हैदराबाद की गरमजोशी, मस्कट की मिठास और रियाद की रूहानी सौम्यता—इन सभी का संगम एक ही व्यंजन में होता है—बिरयानी। यह केवल मसालों और चावल के मिश्रण की बात नहीं है, बल्कि यह दो सभ्यताओं के रिश्तों की एक अनमोल कहानी है। यह स्पष्ट करती है कि भारत और गल्फ देशों के बीच केवल तेल, व्यापार और जनशक्ति का ही रिश्ता नहीं है, बल्कि रसोई का रिश्ता भी उतना ही गहरा और ऐतिहासिक है। बिरयानी, वह पाक-कला का पुल है जो मसालों की गर्मी से नहीं, सांस्कृतिक मोहब्बत से बनता है—और जब बासमती उसमें पककर घुलती है, तो इतिहास और संस्कृति दोनों की खुशबू एक साथ उठती है, जो लाखों लोगों को जोड़ती है।