पूर्वोत्तर भारत को भारत का ‘ग्रीन गहना’ कहा जाता है, लेकिन यह गहना अब संकट में है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, और मणिपुर में कई जल विद्युत परियोजनाओं और राजमार्गों के निर्माण कार्य ने यहां की जैव विविधता को बुरी तरह प्रभावित किया है। यहीं पर क्लाउडेड लेपर्ड, लाल पांडा और कई ऑर्किड प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनकी संख्या तेजी से घट रही है।
जल विद्युत परियोजनाएं जंगलों को काटकर बनाई जा रही हैं, जिससे न केवल वनस्पतियों का विनाश हो रहा है, बल्कि स्थानीय जनजातियों की सांस्कृतिक पहचान भी खतरे में है। सैकड़ों गांवों को विस्थापित किया गया है और जल स्रोतों पर नियंत्रण निजी कंपनियों को सौंप दिया गया है। इससे पारंपरिक कृषि और जीवनशैली नष्ट हो रही है।
स्थानीय लोगों और छात्रों द्वारा कई बार विरोध प्रदर्शन किए गए हैं, और कुछ मामलों में हाईकोर्ट ने परियोजनाओं पर रोक भी लगाई है। लेकिन केंद्र सरकार की रणनीतिक दृष्टि से यह क्षेत्र ‘इंफ्रास्ट्रक्चर फोकस’ बना हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि विकास और संरक्षण के बीच संतुलन जरूरी है, अन्यथा यह क्षेत्र पारिस्थितिकीय पतन का उदाहरण बन जाएगा