26 जनवरी 2025 को दिल्ली के कर्तव्य पथ पर आयोजित गणतंत्र दिवस परेड में एक बेहद खास और गौरवशाली क्षण तब सामने आया जब 8 वर्षों के अंतराल के बाद बिहार की झांकी को पूरे भव्यता और सम्मान के साथ प्रदर्शित किया गया। इस झांकी ने केवल राज्य का प्रतिनिधित्व नहीं किया, बल्कि बिहार की प्राचीन शिक्षा परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया जिसने दर्शकों को इतिहास की गहराइयों में ले जाकर गर्व से भर दिया। इस वर्ष झांकी का मुख्य विषय था — “ज्ञान की धरोहर: नालंदा विश्वविद्यालय”।
झांकी के अग्र भाग में गुप्तकालीन वास्तुकला शैली में बने नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन तोरण द्वार को दर्शाया गया था, जो न केवल स्थापत्य की दृष्टि से अद्भुत था, बल्कि बिहार की शिक्षावादी विरासत का प्रतीक भी था। इसके मध्य भाग में विद्यार्थियों और बौद्ध भिक्षुओं के अध्ययन-अध्यापन के दृश्य, ग्रंथालय की भव्यता, और देश-विदेश से आए जिज्ञासुओं को दिखाया गया — जिससे यह संदेश गया कि बिहार सदियों से ज्ञान, तर्क और शांति का केंद्र रहा है। झांकी के अंतिम हिस्से में ‘पुनरुद्धार की ओर बढ़ता बिहार’ की झलक दिखाते हुए राज्य सरकार की ओर से नालंदा जैसे केंद्रों को आधुनिक रूप में पुनर्जीवित करने की कोशिशों को भी दर्शाया गया।
इस झांकी को लेकर पूरे बिहार में सामूहिक उत्साह और भावनात्मक जुड़ाव देखने को मिला। सोशल मीडिया पर #ProudOfBihar और #NalandaAtKartavyaPath जैसे ट्रेंड चलने लगे। मुख्यमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि यह झांकी केवल अतीत का गौरव नहीं, बल्कि भविष्य की प्रेरणा है। झांकी दल के संयोजकों ने बताया कि इस प्रस्तुति को अंतिम रूप देने में इतिहासकारों, शिल्पकारों, कलाकारों और शिक्षा विभाग के प्रतिनिधियों की एक समर्पित टीम ने महीनों मेहनत की थी।
कर्तव्य पथ पर बिहार की इस झांकी ने न केवल राज्य की सांस्कृतिक पहचान को मजबूती दी, बल्कि देशभर के लोगों को उसकी गौरवशाली विरासत और बौद्धिक परंपरा से परिचित कराया। यह उस बिहार का प्रतिनिधित्व था जिसे कभी विश्वगुरु कहा गया था — जहाँ ज्ञान के दीप जलाए जाते थे, और जहाँ से वैश्विक विचारों की लौ फैली थी। यह झांकी नालंदा की दीवारों से निकलते विचारों, ताड़पत्रों में संचित ज्ञान और आत्मा को छू जाने वाले वैचारिक विमर्शों का ऐसा दृश्यात्मक संवाद बन गई, जिसने सिर्फ आंखों को ही नहीं, हृदय को भी छू लिया।
2025 का यह गणतंत्र दिवस इसलिए विशेष हो गया क्योंकि इसमें बिहार ने केवल हिस्सा नहीं लिया — बल्कि उसने अपनी आत्मा, अपनी सभ्यता और अपनी शिक्षा परंपरा का परचम फहराया।