8 राजनीतिक दलों की तरफ से सिब्बल और सिंघवी ने रखा पक्ष, अदालत ने कहा– राजनीतिक दलों को मतदाताओं से ज्यादा जागरूक रहना चाहिए, आयोग ने निभाई होती जिम्मेदारी तो इतनी गंभीर हालत न होती
बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के तहत मतदाता सूची से 65 लाख से अधिक नाम हटाए जाने के मामले ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा दिया है। शुक्रवार को हुई सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर गहरी नाराज़गी जताई और कहा कि जब लाखों मतदाताओं के अधिकार खतरे में हैं तो आखिर पार्टियां चुप क्यों हैं। अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है मानो मतदाता ही राजनीतिक दलों से अधिक जागरूक हैं।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग से पूछा कि “बिहार की 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियों में से कितनी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट आई हैं?” इस पर आयोग ने साफ कहा– “कोई नहीं।” यह जवाब सुनकर बेंच ने कहा कि अगर दल समय रहते अपनी ज़िम्मेदारी निभाते तो हालात इतने गंभीर न होते। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि दलों और स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच की दूरी लोकतंत्र के लिए घातक है।
हालाँकि इस बार विपक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी अदालत में मौजूद थे। सिब्बल ने बताया कि वे राजद सांसद मनोज झा की ओर से पक्ष रख रहे हैं, जबकि सिंघवी ने कहा कि वे सात अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की ओर से बहस कर रहे हैं। दोनों ने अदालत को आश्वस्त किया कि यह मुद्दा सिर्फ कानूनी प्रक्रिया तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि दल इसे राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी गंभीरता से उठाएंगे।
अदालत ने इस दौरान 1.6 लाख बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) की भूमिका पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि यदि हर एजेंट केवल 10 नामों पर आपत्ति दर्ज करता तो लाखों मतदाताओं को न्याय मिल सकता था। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “राजनीतिक दलों को केवल चुनावी मौसम में सक्रिय नहीं होना चाहिए। जनता के अधिकारों की रक्षा उनकी पहली ज़िम्मेदारी है।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अब बहिष्कृत मतदाता ऑनलाइन आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं और उन्हें आधार कार्ड समेत 11 अन्य मान्य दस्तावेज प्रस्तुत करने का विकल्प दिया गया है। अदालत ने कहा कि आयोग को दावों और आपत्तियों के चरण में पारदर्शिता रखनी होगी ताकि कोई भी वास्तविक मतदाता मताधिकार से वंचित न हो।
यह मामला अब केवल बिहार तक सीमित नहीं रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया देश भर के लिए एक सबक है। लोकतंत्र में हर नागरिक का मताधिकार सर्वोपरि है और इसे लेकर कोई समझौता स्वीकार्य नहीं होगा। अदालत ने संकेत दिए कि अगली सुनवाई में, जो 8 सितंबर को होगी, राजनीतिक दलों की भूमिका और भी सख्ती से जांची जाएगी।