पटना, 4 अक्टूबर 2025
बिहार की सियासत एक बार फिर गर्माने लगी है। आगामी विधानसभा चुनाव 2025 से पहले पटना में हुई निर्वाचन आयोग की अहम बैठक में सत्ताधारी गठबंधन के दोनों प्रमुख घटक — जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) — ने अपनी-अपनी मांगें रखीं। इन प्रस्तावों ने न सिर्फ चुनावी माहौल को गरम कर दिया है, बल्कि प्रशासनिक और सामाजिक हलकों में भी गहन चर्चा शुरू कर दी है। जेडीयू ने पूरे राज्य में “एक ही चरण में मतदान” कराने की मांग रखी, बीजेपी ने “बूथों पर बुर्का पहनने पर अस्थायी प्रतिबंध” लगाने का सुझाव देकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। दोनों दलों के तर्क अपने-अपने राजनीतिक और रणनीतिक दृष्टिकोण को उजागर करते हैं — एक ओर शासन-प्रशासन की सुगमता का मुद्दा, तो दूसरी ओर सुरक्षा और पारदर्शिता का सवाल।
जेडीयू का तर्क: एक चरण में चुनाव से विकास कार्य नहीं रुकेंगे, मतदाताओं में उत्साह भी बना रहेगा
बैठक के बाद जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा कि बिहार जैसे विशाल और जनसंख्या-घनत्व वाले राज्य में बहु-चरणीय चुनाव कराना न केवल प्रशासनिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण होता है, बल्कि इससे विकास कार्यों पर भी असर पड़ता है। उन्होंने कहा, “जब पूरा राज्य महीनों तक चुनाव प्रक्रिया में उलझा रहता है, तब सरकारी मशीनरी का ध्यान जनसेवा और योजनाओं के क्रियान्वयन से हटकर चुनावी प्रबंधन में लग जाता है। एक चरण में मतदान कराने से यह समस्या खत्म होगी और मतदाताओं में भी मतदान के प्रति उत्साह बना रहेगा।”
नीतीश कुमार की सरकार की यह मांग केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में जेडीयू लगातार यह संदेश देना चाहती रही है कि वह “सुशासन” की प्रतीक पार्टी है। ऐसे में “एक चरण में मतदान” की मांग, उस छवि को और मजबूत करने का प्रयास है। जेडीयू का मानना है कि इस कदम से सरकारी योजनाएं बाधित नहीं होंगी, सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा और मतदाता turnout में भी वृद्धि होगी।
बीजेपी का रुख: सुरक्षा सर्वोपरि, मतदान बूथों पर बुर्का बैन से पहचान प्रक्रिया होगी पारदर्शी
बीजेपी ने भी इस बैठक में बहु-चरणीय चुनाव प्रक्रिया पर असंतोष जताते हुए एक या अधिकतम दो चरणों में चुनाव कराने की बात कही। हालांकि, पार्टी का मुख्य प्रस्ताव जिसने सबसे अधिक चर्चा बटोरी, वह था मतदान केंद्रों पर बुर्का पहनने पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने का सुझाव। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा, “हमारी प्राथमिकता चुनावी पारदर्शिता और सुरक्षा है। कई बार बूथों पर पहचान सत्यापन में मुश्किलें आती हैं। कुछ असामाजिक तत्व चेहरे ढककर धांधली करने की कोशिश करते हैं। इसलिए, हमने सुझाव दिया है कि मतदान के दौरान चेहरा पूरी तरह ढकने की अनुमति न हो ताकि पहचान स्पष्ट रूप से हो सके।”
बीजेपी का यह प्रस्ताव, हालांकि सुरक्षा और पारदर्शिता के आधार पर दिया गया है, लेकिन इसके सामाजिक और धार्मिक असर भी गहरे हैं। बिहार के कुछ मुस्लिम-बहुल इलाकों में बुर्का एक सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा का हिस्सा है। ऐसे में इस प्रस्ताव ने अल्पसंख्यक समुदायों और विपक्षी दलों के बीच असंतोष को जन्म दे दिया है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बीजेपी इस मुद्दे को “सुरक्षा बनाम संवेदना” के तौर पर पेश करेगी, जो चुनावी रणनीति का हिस्सा बन सकता है।
विपक्ष का पलटवार: आरजेडी ने कहा – बुर्का बैन प्रस्ताव लोकतांत्रिक भावनाओं के खिलाफ
विपक्षी दलों ने बीजेपी के इस प्रस्ताव को तुरंत भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक करार दिया। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा, “एक चरण का चुनाव प्रशासनिक दृष्टि से उचित हो सकता है, लेकिन बूथों पर बुर्का बैन जैसा सुझाव लोकतंत्र को कमजोर करने वाला है। सुरक्षा के नाम पर धार्मिक पहचान पर हमला स्वीकार्य नहीं।”
आरजेडी ने निर्वाचन आयोग से मांग की है कि वह इस प्रस्ताव को गंभीरता से न ले और सुनिश्चित करे कि मतदान प्रक्रिया में सभी नागरिकों को समान सम्मान और स्वतंत्रता मिले। कांग्रेस और वामपंथी दलों ने भी बीजेपी के सुझाव की आलोचना करते हुए कहा कि यह “ध्रुवीकरण की राजनीति” का एक नया तरीका है, जिसका उद्देश्य मतदाताओं को भावनात्मक रूप से विभाजित करना है।
चुनाव आयोग की स्थिति: रिपोर्ट तैयार, निर्णय जल्द संभव
निर्वाचन आयोग ने अभी तक इन प्रस्तावों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। सूत्रों के अनुसार, आयोग ने जेडीयू और बीजेपी दोनों के सुझावों को रिकॉर्ड में लिया है और उस पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जा रही है। यह रिपोर्ट अगले सप्ताह दिल्ली स्थित मुख्यालय को भेजी जाएगी, जिसके बाद आयोग बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों और चरणों की घोषणा करेगा। हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा कारणों से बिहार जैसे बड़े राज्य में एक ही चरण में मतदान कराना संभवतः कठिन होगा, लेकिन यह संभावना पूरी तरह खारिज नहीं की जा सकती।
साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव तीन चरणों में संपन्न हुए थे और उस समय करीब 7 करोड़ 18 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इस बार भी मतदाता संख्या में वृद्धि हुई है, जिससे आयोग को सुरक्षा और लॉजिस्टिक्स की नई रणनीति बनानी होगी।
राजनीतिक विश्लेषण: सुशासन बनाम सुरक्षा — बिहार में नया चुनावी विमर्श
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जेडीयू और बीजेपी के ये दो अलग-अलग प्रस्ताव बिहार में एक नया चुनावी विमर्श तैयार कर रहे हैं। जेडीयू प्रशासनिक दक्षता और विकास के एजेंडे पर केंद्रित रहना चाहती है, जबकि बीजेपी कानून-व्यवस्था और सुरक्षा के मुद्दे पर अपना जनाधार मजबूत करने की कोशिश कर रही है। यह परस्पर पूरक रणनीति एनडीए के भीतर शक्ति-संतुलन को दर्शाती है। वहीं, विपक्ष इस बहस को सामाजिक और संवैधानिक दिशा में मोड़ने की कोशिश करेगा ताकि धार्मिक ध्रुवीकरण के खतरे को राजनीतिक रूप से भुनाया जा सके।
दो प्रस्ताव, एक सियासी चुनौती — आयोग के फैसले पर टिकी निगाहें
अब निगाहें निर्वाचन आयोग के अगले कदम पर हैं। क्या बिहार में पहली बार पूरे राज्य में एक ही दिन मतदान संभव होगा? क्या आयोग बीजेपी के बुर्का बैन जैसे संवेदनशील प्रस्ताव पर कोई स्पष्ट रुख अपनाएगा? और क्या इन प्रस्तावों से बिहार का राजनीतिक वातावरण और ज्यादा विभाजित होगा या मतदाता इन मुद्दों से ऊपर उठकर विकास को प्राथमिकता देंगे?
इन सभी सवालों के जवाब आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति की दिशा तय करेंगे। यह साफ है कि बिहार में 2025 का चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि सामाजिक समझ, प्रशासनिक दक्षता और लोकतांत्रिक परिपक्वता की भी परीक्षा बनने जा रहा है।