मुंबई, महाराष्ट्र
17 जुलाई 2025
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर में है। उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस द्वारा हाल ही में दिए गए एक कथन – जिसमें उन्होंने उद्धव ठाकरे को एक सियासी प्रस्ताव देने की बात कही थी – के बाद से अटकलों का बाज़ार गर्म है। इस प्रस्ताव के कुछ ही दिन बाद देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे के बीच हुई एक गुप्त मुलाकात ने न सिर्फ महाविकास अघाड़ी (MVA) के भीतर हलचल मचाई है, बल्कि बीजेपी खेमे में भी नई रणनीतिक चर्चाओं को जन्म दिया है। यह मुलाकात ऐसे वक्त पर हुई है जब राज्य में विपक्षी INDIA गठबंधन की एकता पहले ही चुनौतियों से जूझ रही है और लोकसभा चुनाव 2024 में शिवसेना (उद्धव गुट) और कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के कारण अंदरूनी बेचैनी साफ झलक रही है।
इस गुप्त बैठक की जानकारी अब सामने आते ही महाराष्ट्र की राजनीतिक गलियों में खलबली मच गई है। राजनीतिक विश्लेषक और दलों के भीतर मौजूद सूत्रों का कहना है कि यह कोई साधारण शिष्टाचार भेंट नहीं थी, बल्कि इसके पीछे एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है। फडणवीस द्वारा उद्धव ठाकरे को ‘भारत जोड़ो’ की राह से अलग होने की शर्त पर बातचीत का ऑफर देना एक तरफ तो उनकी पुरानी मित्रता और सियासी समझ का संकेत देता है, लेकिन दूसरी ओर यह भी दर्शाता है कि बीजेपी इस समय एनडीए और राज्य की राजनीति में नए समीकरण तलाश रही है। यह मुलाकात अगर महज़ शिष्टाचार होती, तो इसे इस कदर गोपनीय नहीं रखा जाता। सवाल यह है कि क्या उद्धव ठाकरे एक बार फिर वही रास्ता चुनने जा रहे हैं, जिसे उन्होंने 2019 में नकार दिया था?
इस संभावित सियासी समीकरण ने महाविकास अघाड़ी के दो प्रमुख घटक – कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी – को मुश्किल में डाल दिया है। कांग्रेस पहले ही उद्धव के एजेंडे को लेकर सतर्क रही है और राहुल गांधी के नेतृत्व में जारी भारत जोड़ो यात्रा को लेकर असहजता भी दिखती रही है। वहीं एनसीपी, जो खुद दो धड़ों में बंटी हुई है, उद्धव के संभावित फैसले से खुद को फिर से एक सियासी संकट में पा सकती है। अगर शिवसेना (उद्धव गुट) बीजेपी के साथ पुनर्मिलन की ओर बढ़ती है, तो न सिर्फ MVA का अस्तित्व संकट में आ जाएगा, बल्कि विपक्षी INDIA गठबंधन को भी बड़ा झटका लग सकता है। यह स्थिति उन तमाम राजनीतिक दलों के लिए चेतावनी है जो एकजुटता की बात तो करते हैं, लेकिन अपने-अपने राज्य में अपने हितों के अनुसार चाल चलते हैं।
देवेंद्र फडणवीस की यह रणनीति, अगर सच साबित होती है, तो यह साबित करेगी कि वे केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि रणनीतिक मामलों में भी मास्टर स्ट्रोक खेलते हैं। लोकसभा चुनावों में शिंदे गुट और बीजेपी की पराजय, मुंबई सहित शहरी क्षेत्रों में वोटों का विभाजन और जनाधार की गिरावट ने भाजपा को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उन्हें फिर से ‘पुराने दोस्तों’ को जोड़ना होगा। फडणवीस भले ही पर्दे के पीछे हों, लेकिन यह तय है कि उनका हर कदम योजनाबद्ध और दूरगामी उद्देश्य वाला होता है।
अब सबकी निगाहें उद्धव ठाकरे पर हैं – क्या वह अपने पिता बालासाहेब ठाकरे के मूल विचारों की ओर लौटेंगे और हिंदुत्व की राह पर भाजपा के साथ कदम मिलाएंगे? या फिर विपक्षी गठबंधन में रहकर राष्ट्रीय स्तर पर खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश करेंगे? यह फैसला न सिर्फ महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों का ट्रेलर भी बन सकता है।
राजनीति में कभी भी कुछ स्थायी नहीं होता – न दोस्त और न दुश्मन। महाराष्ट्र में यह कहावत एक बार फिर सच साबित होती दिख रही है। उद्धव और फडणवीस की यह मुलाकात, भले ही निजी हो, लेकिन इसके पीछे छिपे मायने बहुत सार्वजनिक हैं। आने वाले दिनों में यदि कोई बड़ा ‘खेला’ होता है, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि राजनीति में कोई दरवाजा हमेशा बंद नहीं होता — बस वक्त और परिस्थिति उसका ताला खोलने का तरीका तय करते हैं।