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EC को बड़ा झटका : सुप्रीम कोर्ट का आदेश, बिहार के 65 लाख वोटरों की सूची 19 अगस्त तक जारी करें

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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनाव आयोग (ECI) को बड़ा झटका देते हुए बिहार के विशेष गहन संशोधन (SIR) के तहत मतदाता सूची से हटाए गए लगभग 65 लाख लोगों के नाम और उनके हटाने के कारणों को 19 अगस्त तक सार्वजनिक करने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यह सूची प्रत्येक जिला निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर अपलोड की जाए और बूथ-वार सूची पंचायत भवनों, ब्लॉक विकास कार्यालयों और पंचायत कार्यालयों में प्रदर्शित की जाए। इसके साथ ही, स्थानीय समाचार पत्रों, दूरदर्शन, रेडियो और आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से व्यापक प्रचार करने का आदेश दिया गया है।

पृष्ठभूमि और सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्या कांत और जॉयमाला बागची की पीठ ने यह फैसला बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया। कोर्ट ने कहा कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए हटाए गए प्रत्येक मतदाता के नाम के साथ हटाने का कारण स्पष्ट रूप से उल्लेख करना आवश्यक है। जस्टिस सूर्या कांत ने टिप्पणी की, “यदि 22 लाख लोग मृत हैं, तो यह बूथ स्तर पर स्पष्ट होना चाहिए। सार्वजनिक डोमेन में जानकारी लाने से गलत धारणाएं खत्म होंगी।”

चुनाव आयोग ने बताया कि 65 लाख हटाए गए मतदाताओं में से 22 लाख की मृत्यु हो चुकी है, 36 लाख लोग स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए या गैर-मौजूद हैं, और 7 लाख डुप्लिकेट प्रविष्टियां थीं। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि इन हटाए गए नामों के साथ कारणों को सार्वजनिक नहीं किया गया, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठे।

याचिकाकर्ताओं की चिंताएं

यह मामला राष्ट्रीय जनता दल (RJD), तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), CPI, सपा, शिवसेना (उद्धव ठाकरे), JMM, CPI (ML), PUCL, ADR और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव द्वारा दायर याचिकाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने 24 जून को शुरू किए गए SIR के तहत बड़े पैमाने पर नाम हटाए, जिसमें कई जीवित लोगों को गलत तरीके से ‘मृत’ या ‘स्थानांतरित’ घोषित किया गया।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने कोर्ट में दावा किया कि चुनाव आयोग ने 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की सूची में कारणों को छिपाया, जिससे यह जांचना असंभव हो गया कि क्या ये लोग वास्तव में मृत हैं या स्थानांतरित हुए हैं।

चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग ने अपने बचाव में कहा कि यह संशोधन प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत उसकी शक्तियों के अंतर्गत है। आयोग ने दावा किया कि शहरी प्रवास और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के कारण मतदाता सूची में अशुद्धियां थीं, और लगभग 20 वर्षों में कोई गहन संशोधन नहीं हुआ था। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी नाम बिना उचित प्रक्रिया के नहीं हटाया गया और गलत तरीके से हटाए गए लोग सुधार के लिए अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं।

राहुल गांधी का बयान और वैश्विक सुर्खियां

कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने बिहार के उन मतदाताओं से मुलाकात की, जिन्हें चुनाव आयोग ने ‘मृत’ घोषित कर मतदाता सूची से हटा दिया, जबकि वे जीवित हैं। राहुल गांधी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में तंज कसते हुए लिखा, “मैं मृत लोगों के साथ चाय पी रहा हूँ”, जिसे वैश्विक मीडिया ने प्रमुखता से कवर किया। इस बयान ने बिहार में मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए और इसे एक राजनीतिक मुद्दा बना दिया।

राहुल गांधी के इस ‘वोट चोरी’ अभियान ने सोशल मीडिया पर तूफान मचा दिया है। उनके पोस्ट्स और बयानों ने विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर 1.5 अरब से अधिक व्यूज़ प्राप्त किए हैं, जिससे यह अभियान वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है।

आगे की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को सभी बूथ-स्तरीय और जिला-स्तरीय अधिकारियों से अनुपालन रिपोर्ट प्राप्त करने और अगली सुनवाई, जो 22 अगस्त को होगी, से पहले इसे दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रभावित लोग आधार कार्ड के साथ दावा दायर कर सकते हैं।

यह मामला बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठा रहा है। राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष ने इसे ‘वोट चोरी’ का मामला करार दिया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप इस मुद्दे पर पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस घटनाक्रम ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में मतदाता अधिकारों और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर चर्चा को तेज कर दिया है।

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