देश की राजनीति में आज एक बड़ा मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश — राज्य में मनरेगा (MGNREGA) कार्यों को फिर से शुरू करने — को चुनौती दी थी। इस फैसले के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने इसे “जनता की ऐतिहासिक जीत” बताया है। यह फैसला न सिर्फ न्याय की जीत के रूप में देखा जा रहा है, बल्कि केंद्र सरकार के उस “आर्थिक हथियार” की पराजय भी है जिसे उसने राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में इस्तेमाल किया था।
नेता नहीं, जनता की जीत: अभिषेक बनर्जी का प्रहार
टीएमसी के वरिष्ठ सांसद और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को “बंगाल की जनता के स्वाभिमान की जीत” बताया। उन्होंने अपने बयान में कहा — “Another crushing defeat for the BOHIRAGOTO BANGLA-BIRODHI ZAMINDARS — यानी बंगाल विरोधी बाहरी ज़मींदारों की एक और करारी हार। सुप्रीम कोर्ट ने आज यह साफ़ कर दिया है कि दिल्ली का अहंकार और अन्याय बंगाल की जनता की इच्छाशक्ति को झुका नहीं सकता। यह फैसला उस बंगाल की जनता की जीत है जिसने हर अत्याचार, हर अपमान और हर अवरोध के बावजूद लोकतंत्र में अपनी आस्था नहीं छोड़ी।”
अभिषेक बनर्जी ने आगे कहा कि बीजेपी ने जब राजनीतिक रूप से बंगाल को पराजित नहीं कर सकी, तब उसने आर्थिक हमले का रास्ता चुना। “उन्होंने मनरेगा जैसी गरीबों की रोज़ी-रोटी की योजना पर रोक लगाई। मजदूरों की मेहनत की कमाई रोक ली। बंगाल को उसकी मेहनत का हक देने से इनकार किया। यह सिर्फ फंड रोकना नहीं था, यह गरीबों को सज़ा देना था — सिर्फ इसलिए कि उन्होंने माँ, माटी, मानुष के साथ खड़ा रहना चुना।”
उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केंद्र सरकार की नीयत और मानसिकता पर करारा जवाब है। “आज का फैसला उन लोगों के लिए लोकतांत्रिक तमाचा है जिन्होंने समझा था कि बंगाल को धमकाकर, डराकर या भूखा रखकर झुकाया जा सकता है। पर बंगाल न झुकता है, न बिकता है। जैसा मैंने पहले कहा था — चलबे ना अन्याय, टिकबे ना फंदि, जनगणेर अदालत-ए होते होबे बंदि! जय बंगला।”
साकेत गोखले का तंज — “मोदी सरकार की बुरी नीयत नाकाम”
टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने भी केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि यह फैसला मोदी सरकार की “दुर्भावना” और “जन विरोधी मानसिकता” की पोल खोलता है। “पिछले पांच सालों से मोदी सरकार ने बंगाल के मजदूरों का हक़ रोक रखा था। मनरेगा का पैसा बंद करके उन्होंने गरीबों से बदला लिया। उन्हें राजनीतिक सज़ा दी। यह किसी राज्य के खिलाफ नहीं, बल्कि देश के संविधान के खिलाफ अपराध था।”
गोखले ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने मोदी सरकार के “राजनीतिक अत्याचार” की सच्चाई को सामने रख दिया है। “आज उनकी बुरी नीयत को देश की सर्वोच्च अदालत ने खारिज कर दिया है। यह फैसला सिर्फ बंगाल के मजदूरों की नहीं, बल्कि भारत के हर मेहनतकश आदमी की जीत है। और अब, अगले साल बंगाल की जनता उन्हें एक और हार देगी — इस बार जनता के वोट से।”
केंद्र-राज्य टकराव की जड़ें
केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल के बीच यह टकराव साल 2023 से जारी है। केंद्र ने बंगाल में मनरेगा फंड रोकने का फैसला यह कहते हुए लिया था कि राज्य में योजना के तहत भारी अनियमितताएं हुई हैं। ममता सरकार ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया और कहा कि यह फैसला राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित है। इसके बाद राज्य सरकार ने कोलकाता हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने इस साल केंद्र को आदेश दिया कि वह राज्य में मनरेगा के तहत कार्य फिर से शुरू करे और मजदूरों का बकाया भुगतान करे।
केंद्र ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, पर आज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि गरीब मजदूरों का हक किसी राजनीतिक बहाने से छीना नहीं जा सकता।
टीएमसी में जश्न, बीजेपी में सन्नाटा
फैसले के बाद टीएमसी मुख्यालय में जश्न का माहौल देखा गया। कार्यकर्ताओं ने ढोल-नगाड़ों के साथ “जय बंगला” के नारे लगाए और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थन में रैली की। अभिषेक बनर्जी ने पार्टी कार्यालय में कहा कि यह सिर्फ न्यायिक जीत नहीं, बल्कि “संविधान की आत्मा” की पुनर्स्थापना है। उन्होंने कहा, “बीजेपी सत्ता तो चाहती है, पर जवाबदेही नहीं। वे बंगाल से लेते हैं, लेकिन लौटाते कुछ नहीं। बंगाल ने उन्हें जनता के वोट से हराया, और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें न्याय के कटघरे में हरा दिया।” बीजेपी की ओर से इस फैसले पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने कहा कि वे “फैसले की कॉपी का अध्ययन करने के बाद आगे की रणनीति पर विचार करेंगे।”
लोकतंत्र और न्याय की जीत — लेकिन सवाल बाकी
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लाखों मनरेगा मजदूरों को राहत मिली है, जो लंबे समय से अपने बकाया वेतन की प्रतीक्षा में थे। यह फैसला उन्हें न सिर्फ आर्थिक राहत देगा बल्कि न्याय में उनका भरोसा भी मज़बूत करेगा। फिर भी सवाल यह है कि क्या केंद्र और राज्य अब विकास के साझा रास्ते पर लौटेंगे या यह राजनीतिक टकराव और बढ़ेगा? राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बंगाल की राजनीति में यह फैसला “मोदी बनाम ममता” की जंग को और धार देगा, और 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा बंगाल के हर गांव तक गूंजेगा।
बंगाल ने फिर दिखाई अपनी रीढ़
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस बात का प्रमाण है कि जब सत्ता अन्याय का माध्यम बन जाती है, तो न्याय व्यवस्था जनता की ढाल बनती है। बंगाल ने एक बार फिर साबित किया है कि लोकतंत्र में अन्याय ज्यादा देर टिक नहीं सकता।
अभिषेक बनर्जी के शब्दों में “बंगाल को डराया नहीं जा सकता। बंगाल को खरीदा नहीं जा सकता। बंगाल अपने अधिकार की लड़ाई खुद लड़ना जानता है।” आज यह सिर्फ एक राज्य की जीत नहीं, बल्कि उस भारत की जीत है जो अब भी संविधान और न्यायपालिका में आस्था रखता है। जय बंगला — जय लोकतंत्र।





