जनवरी 2025 में पश्चिम बंगाल सरकार ने एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय पहल के तहत राज्य भर में वायु गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए एक व्यापक अध्ययन आरंभ किया, जिसका नेतृत्व पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (WBPCB) ने किया। यह अध्ययन न केवल कोलकाता, आसनसोल और हुगली जैसे शहरी क्षेत्रों तक सीमित रहा, बल्कि ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में भी प्रदूषण की गहराई को समझने की दिशा में एक सर्वांगीण प्रयास था।
इस अध्ययन में 250 से अधिक निगरानी स्टेशनों से प्राप्त डेटा के माध्यम से PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कणीय प्रदूषण का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया। इन सूक्ष्म कणों को श्वसन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक माना जाता है, और रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि ग्रामीण इलाकों में भी प्रदूषण के कई ‘हॉटस्पॉट’ मौजूद हैं, जिनकी स्थिति कई शहरी क्षेत्रों से भी अधिक चिंताजनक है। इससे यह स्पष्ट हुआ कि वायु प्रदूषण अब केवल महानगरों या औद्योगिक क्षेत्रों की समस्या नहीं रही, बल्कि यह राज्यव्यापी और सार्वभौमिक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है।
WBPCB द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट ने वायु प्रदूषण के मौसमी रुझानों, औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन-जनित धुएं, और निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल जैसे कारणों को भी विस्तार से रेखांकित किया। कई क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) “खतरनाक” या “बहुत खराब” श्रेणी में पाया गया, जिससे जनस्वास्थ्य पर पड़ने वाले संभावित दीर्घकालिक प्रभावों की ओर नीति निर्माताओं का ध्यान गया।
इस अध्ययन का सबसे बड़ा योगदान यह है कि अब राज्य सरकार के पास एक डेटा-संचालित रोडमैप है, जिसके आधार पर वह लक्षित नीतियाँ बना सकती है—जैसे औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण, हरित क्षेत्र बढ़ाना, इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देना, और ग्रामीण रसोईघरों में स्वच्छ ईंधन की पहुँच सुनिश्चित करना। विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट को एक “वेक-अप कॉल” करार दिया है जो बताती है कि जलवायु परिवर्तन की लड़ाई केवल वैश्विक मंचों पर भाषणों से नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर पर ठोस कदमों से जीती जा सकती है।
यह अध्ययन इस बात का प्रमाण है कि पश्चिम बंगाल ने पर्यावरणीय सतर्कता की दिशा में गंभीरता से कदम बढ़ा दिए हैं और यदि रिपोर्ट के निष्कर्षों को अमल में लाया गया, तो आने वाले वर्षों में राज्य के नागरिक स्वच्छ हवा में सांस लेने के अपने अधिकार को और मजबूत होता देख सकते हैं।