नई दिल्ली 24 सितंबर 2025
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में दोषी बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बेहद सख्त रुख अपनाया। अदालत ने केंद्र सरकार से सीधा सवाल किया कि यदि यह अपराध इतना गंभीर है तो फिर दोषी को अब तक फाँसी क्यों नहीं दी गई। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने एक बार फिर न्यायिक प्रक्रिया की धीमी रफ्तार और सरकार की दोहरी नीति को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
राजोआना को 1995 में चंडीगढ़ में हुए उस आत्मघाती विस्फोट का दोषी पाया गया था जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित 16 लोग मारे गए थे। पंजाब को आतंकवाद की जकड़न से बाहर निकालने वाले बेअंत सिंह की हत्या को पूरे देश ने लोकतंत्र पर सीधा हमला माना था। ट्रायल के बाद राजोआना को फाँसी की सज़ा सुनाई गई, लेकिन पिछले 29 साल से यह सज़ा सिर्फ कागज़ों में दर्ज है। उसकी दया याचिका लगातार केंद्र सरकार के पास पड़ी रही और आज तक कोई ठोस फैसला नहीं लिया गया।
सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने यह दलील दी कि मामला बेहद गंभीर अपराध से जुड़ा हुआ है और संवेदनशीलता के कारण निर्णय लंबित है। इस पर अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि अपराध इतना ही गंभीर है, तो फिर आखिरकार सज़ा पर अमल क्यों नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि न्याय में देरी अपने आप में न्याय से इनकार के समान है। अदालत का यह बयान उन हजारों परिवारों के दर्द को भी दर्शाता है जो सालों तक न्याय की प्रतीक्षा करते रहते हैं।
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की सज़ा का सवाल नहीं है, बल्कि देश की पूरी न्याय व्यवस्था और सरकार की नीयत पर सवाल उठाता है। क्या सरकार राजनीतिक दबाव और वोट-बैंक की राजनीति के कारण इतनी बड़ी आतंकी वारदात के दोषी को फाँसी देने से बच रही है? क्या दया याचिका पर फैसला टालकर सरकार और व्यवस्था शहीद हुए मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और उस विस्फोट में मारे गए 16 निर्दोष लोगों की शहादत का अपमान नहीं कर रही? यह स्थिति लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले हर नागरिक के लिए चिंताजनक है।
बेअंत सिंह जैसे नेता की हत्या ने उस दौर में पंजाब की राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को गहरी चोट पहुंचाई थी। उनकी शहादत के बाद ही पंजाब धीरे-धीरे शांति और विकास की ओर लौट सका। लेकिन तीन दशक बीत जाने के बाद भी उनके हत्यारे को कानून के मुताबिक अंतिम सज़ा न देना सिर्फ न्याय में देरी नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की असफलता का प्रतीक है। इससे आम जनता के मन में यह संदेश जाता है कि चाहे अपराध कितना भी बड़ा क्यों न हो, अगर राजनीति आड़े आ जाए तो सज़ा टल सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की यह सख्त टिप्पणी केंद्र सरकार के लिए एक चेतावनी है। अब यह मामला सिर्फ कानूनी बहस तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल उठाता है कि क्या हमारा लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था इतने बड़े अपराधों पर भी निष्क्रिय रह सकती है। यदि दोषी को अब भी फाँसी नहीं दी जाती, तो यह न केवल शहीद मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के बलिदान का अपमान होगा, बल्कि पूरे देश की न्याय प्रणाली और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गहरी चोट होगी।