भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में हाल के वर्षों में तीव्र वृद्धि हुई है। 2024-25 में लगभग 60 लाख से अधिक ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) पंजीकृत किए गए हैं। यह देश को ग्रीन मोबिलिटी की दिशा में ले जाने वाला कदम माना जा रहा है, लेकिन इसके साथ ही एक नई चुनौती खड़ी हो गई है — बैटरी वेस्ट यानी इलेक्ट्रिक बैटरियों का अपशिष्ट।
इन वाहनों में प्रयुक्त लिथियम-आयन बैटरियाँ जब निष्क्रिय हो जाती हैं तो उन्हें पुनः उपयोग या सुरक्षित निपटान की ज़रूरत होती है। लेकिन भारत में अभी तक बैटरियों के लिए व्यापक रीसायक्लिंग या डिस्पोजल नीति लागू नहीं हो सकी है। नतीजतन ये बैटरियाँ कूड़े में फेंकी जाती हैं, जिनसे निकेल, कोबाल्ट और लिथियम जैसे भारी धातुएं ज़मीन और जल को विषैला बना सकती हैं।
सरकार ने अब एक नई “बैटरी रीसायक्लिंग नीति” का मसौदा तैयार किया है जिसमें Extended Producer Responsibility (EPR) के तहत निर्माताओं को बैटरियाँ वापस लेने की ज़िम्मेदारी दी जाएगी। साथ ही राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया गया है कि वे विशेष ई-वेस्ट जोन बनाएं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते यह नीति लागू नहीं हुई तो यह ग्रीन इनिशिएटिव खुद एक प्रदूषण बम बन जाएगा।