नई दिल्ली/मुंबई 16 अक्टूबर 2025
सोने चांदी की नहीं, संघर्ष की दिवाली
दिवाली की तैयारियां ज़ोरों पर हैं, लेकिन इस बार दीयों की रौशनी से पहले लोगों की जेबें जल चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना और चांदी दोनों की कीमतों ने इतिहास रच दिया है। सोना अब $4,100 प्रति औंस (करीब ₹3.42 लाख प्रति 10 ग्राम) के पार जा चुका है, जबकि चांदी ने भी रिकॉर्ड तोड़ते हुए $53.60 प्रति औंस (करीब ₹6,200 प्रति 10 ग्राम) का स्तर छू लिया है। यानी इस बार त्योहार की चमक बाजार में नहीं, बल्कि महंगाई की मार में झिलमिला रही है।
कहा जाता है कि भारत में दिवाली का मतलब सोना-चांदी की खरीद, शुभ निवेश और समृद्धि का प्रतीक होता है। लेकिन इस बार हालत यह है कि लोग “सोने की नहीं, प्याज की कीमत” देखने में ही परेशान हैं। सोने के दामों में यह तेज़ी सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में देखी जा रही है। इसका कारण है अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की ब्याज दरों में संभावित कटौती, अमेरिका-चीन के बीच बढ़ता व्यापारिक तनाव, और वैश्विक निवेशकों की सुरक्षित संपत्ति (Safe Haven) की ओर भागने की प्रवृत्ति। यही कारण है कि सोना पहली बार $4,100 के “मनोवैज्ञानिक स्तर” को पार कर गया है। Nemo.money के मुख्य विश्लेषक हन तान (Han Tan) के मुताबिक, “वैश्विक व्यापार युद्ध की बढ़ती चिंता ने निवेशकों को डराया है, और उन्होंने सोने में भारी निवेश कर इसे ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंचा दिया है।”
सोने की इस उछाल को विशेषज्ञ “दिवाली से पहले की सुनहरी आग” कह रहे हैं। अब तक इस साल सोने की कीमतों में 57 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। बैंक ऑफ अमेरिका और Société Générale जैसी बड़ी वित्तीय संस्थाओं ने भविष्यवाणी की है कि अगर वैश्विक अनिश्चितता और ब्याज दरों में गिरावट जारी रही, तो 2026 तक सोना $5,000/oz (लगभग ₹4 लाख प्रति 10 ग्राम) के स्तर को भी छू सकता है। यानी आने वाले सालों में “सोने का सपना” सच होने के बजाय आम आदमी के लिए और भी दूर की बात बन जाएगा।
चांदी की बात करें तो वहां भी हालात अलग नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी ने $53.60 प्रति औंस का रिकॉर्ड बनाया, जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। लंदन के बाजारों में “शॉर्ट स्क्वीज़” यानी अचानक हुई भारी खरीदारी ने चांदी की कीमतों को आग लगा दी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह “सेफ हेवन रैली” (Safe Haven Rally) का हिस्सा है, जिसमें निवेशक सोने के साथ-साथ चांदी में भी पूंजी सुरक्षित रखते हैं। लेकिन भारत में इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ा है — अब दीवाली के चांदी के सिक्के, बर्तन और जेवर खरीदना मध्यम वर्ग के लिए लगभग असंभव हो गया है।
बाजार के हालात ने खुदरा उपभोक्ताओं को भी हिला दिया है। सर्राफा बाजारों में सन्नाटा है — पहले जहां दिवाली से दो हफ्ते पहले भीड़ उमड़ती थी, अब ज्वेलरी दुकानों पर ग्राहक पूछते हैं, खरीदते नहीं। एक ज्वेलर ने बताया, “लोग सिर्फ देखने आते हैं, खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। 50 ग्राम की चेन की कीमत में आज मोटरसाइकिल मिल जाती है।”
दूसरी ओर निवेशकों और अमीर वर्ग के लिए यह गोल्डन टाइम है — वे सोने में पैसा लगाकर महंगाई से बचाव का तरीका खोज रहे हैं। वहीं मध्यम और गरीब वर्ग के लिए यह “त्योहार की नहीं, तंगी की दीवाली” बन गई है।
अमेरिका और चीन के बीच नए सिरे से शुरू हुए व्यापारिक तनाव ने वैश्विक वित्तीय माहौल में और अनिश्चितता ला दी है। दोनों देशों ने शिपिंग कंपनियों पर नए शुल्क लगाए हैं, जिससे कच्चे तेल से लेकर त्योहारों के खिलौनों तक सबकी लागत बढ़ने की संभावना है। ऐसे में निवेशकों ने सुरक्षित रास्ता अपनाया — यानी सोने और चांदी में निवेश। फेडरल रिज़र्व की दर कटौती की उम्मीद ने भी निवेशकों को और प्रोत्साहित किया, क्योंकि कम ब्याज दर के माहौल में “बिना ब्याज वाले सोने” की कीमत बढ़ जाती है।
इस सबके बीच भारत के आम उपभोक्ता की स्थिति विडंबना से भरी है। एक तरफ IMF और सरकारें कह रही हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है, और दूसरी ओर आम जनता यह तय नहीं कर पा रही कि त्योहार में दीया जलाएं या बिजली का बिल भरें। दिवाली से पहले जिस समय लोगों के घरों में नई चूड़ियों की खनक और गहनों की चमक होती थी, अब वहां चिंता और सीमित खर्च की चर्चा है।
प्लैटिनम और पैलेडियम जैसी अन्य कीमती धातुओं की कीमतें भी बढ़ रही हैं — प्लैटिनम $1,648.32 पर और पैलेडियम $1,496.24 प्रति औंस पर पहुंच गया है। यानी कीमती धातुओं का पूरा बाजार “आग” पर है। लेकिन सवाल यह है कि इस आग की गर्मी कौन झेल रहा है? जवाब साफ है — आम आदमी।
कुल मिलाकर, इस बार दिवाली में घरों में रोशनी जरूर होगी, पर जेबों में अंधेरा है। सोने की चमक अब सिर्फ़ कागज़ों और रिपोर्टों में है, असल ज़िंदगी में लोग महंगाई की राख में हाथ ताप रहे हैं। यह दीवाली, सोने की नहीं — संघर्ष की दीवाली है।