लखनऊ 23 सितंबर 2025
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और रामपुर से विधायक आज़म ख़ान की रिहाई एक बार फिर टल गई है। हैरानी की बात यह है कि हाईकोर्ट से उन्हें बेल मिले कई दिन बीत चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके वह अभी तक जेल से बाहर नहीं आ पाए। वजह है लगातार नए केसों का दर्ज होना और प्रशासनिक पेच, जिसने उनकी रिहाई की राह रोक दी है।
आज़म ख़ान को हाल ही में रामपुर की अदालत और इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी थी। कानूनी तौर पर उन्हें जेल से बाहर होना चाहिए था, लेकिन जैसे ही एक मामले में बेल का रास्ता साफ हुआ, वैसे ही उन पर नई एफआईआर दर्ज कर दी गई। नतीजा यह हुआ कि उनकी रिहाई हर बार रुक गई।
कानूनी जानकारों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह सिलसिला महज़ संयोग नहीं हो सकता। एक तरफ अदालतें बेल दे रही हैं, तो दूसरी तरफ पुलिस और प्रशासन नए मामले जोड़कर जेल के दरवाजे बंद कर दे रहे हैं। इससे यह सवाल गहराता है कि क्या यह कानूनी प्रक्रिया है या फिर एक सोची-समझी साज़िश?
आज़म ख़ान लंबे समय से सत्ता और प्रशासन के निशाने पर बताए जाते रहे हैं। उनके समर्थक आरोप लगाते हैं कि यह पूरा मामला “राजनीतिक प्रतिशोध” का हिस्सा है। उनका कहना है कि जब बेल मिल गई है तो नए केसों की आड़ में रिहाई रोकना लोकतांत्रिक मूल्यों और न्याय की बुनियाद पर सीधा हमला है।
रामपुर और पश्चिमी यूपी में आज़म ख़ान के समर्थक गुस्से में हैं। लोग पूछ रहे हैं कि अगर हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी कोई नेता जेल से बाहर नहीं आ सकता, तो आम आदमी का न्याय तंत्र पर भरोसा कैसे कायम रहेगा? साफ है कि आज़म ख़ान की जेल से रिहाई का मामला अब सिर्फ कानूनी नहीं रहा, बल्कि यह सीधे-सीधे सिस्टम की पारदर्शिता, न्याय की निष्पक्षता और लोकतांत्रिक ढांचे पर सवाल खड़ा कर रहा है।