Home » National » SIR की लिस्ट से असम बाहर — चुनाव आयोग ने बताई वजह, CEC बोले: ‘राज्य में मतदाता सूची पर पहले से चल रही है संवेदनशील प्रक्रिया’

SIR की लिस्ट से असम बाहर — चुनाव आयोग ने बताई वजह, CEC बोले: ‘राज्य में मतदाता सूची पर पहले से चल रही है संवेदनशील प्रक्रिया’

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

नई दिल्ली, 27 अक्टूबर 2025 | विशेष रिपोर्ट

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा हाल ही में घोषित SIR (Systematic Information Reporting) योजना के दूसरे चरण में देश के कुल 12 राज्यों को शामिल किया गया है, जिसके तहत मतदाता सूचियों को और अधिक सटीक बनाने के लिए व्यापक घर-घर सत्यापन की प्रक्रिया चलाई जाएगी। हालांकि, इस सूची से पूर्वोत्तर राज्य असम को बाहर रखने का फैसला किया गया है। चुनाव आयोग के इस विशिष्ट निर्णय ने राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में कई प्रकार की चर्चाओं और सवालों को जन्म दिया है। इस संबंध में स्पष्टीकरण देते हुए, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जोर देकर कहा कि असम को फिलहाल SIR की प्रक्रिया में इसलिए शामिल नहीं किया गया है क्योंकि राज्य में मतदाता सूची से संबंधित एक बेहद संवेदनशील, जटिल और बहु-स्तरीय प्रक्रिया पहले से ही चल रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस चल रही प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से दोहराने या SIR को लागू करके उसे किसी भी प्रकार से प्रभावित करने से बचना आयोग के लिए प्राथमिक आवश्यकता है, ताकि किसी भी प्रकार का नया विवाद या भ्रम उत्पन्न न हो।

चुनाव आयोग का तर्क — ‘दो समानांतर प्रक्रियाएँ असम में भ्रम और विरोधाभास पैदा कर सकती हैं’

CEC ज्ञानेश कुमार ने इस निर्णय के पीछे के प्रशासनिक और तार्किक आधार को स्पष्ट करते हुए कहा कि “असम की स्थिति देश के अन्य सभी राज्यों से बिल्कुल भिन्न है और कहीं अधिक संवेदनशील है।” उन्होंने बताया कि असम में मतदाता सूची के सत्यापन और नागरिकता सत्यापन से जुड़े कई मामले अभी भी कानूनी और प्रशासनिक रूप से लंबित हैं। इन प्रक्रियाओं में NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) और D-Voter (संदिग्ध मतदाता) मामलों से संबंधित जटिल जांचें भी शामिल हैं, जो अभी अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुँची हैं। 

CEC ने तर्क दिया कि यदि आयोग SIR योजना, जिसमें घर-घर जाकर मतदाता सत्यापन किया जाता है, को फिलहाल वहाँ लागू करता है, तो यह राज्य में “दो समानांतर प्रणालियाँ एक साथ चलने जैसी स्थिति” होगी। उन्होंने कहा कि इससे मतदाताओं, राजनीतिक दलों और प्रशासनिक तंत्र के बीच गहरा भ्रम और विरोधाभास पैदा हो सकता है, जिसका अंतिम परिणाम मतदाता सूचियों की सटीकता को बढ़ाना नहीं, बल्कि उन्हें और जटिल बनाना होगा। ज्ञानेश कुमार ने स्पष्ट किया कि आयोग का प्राथमिक उद्देश्य हर राज्य में पारदर्शिता और सटीकता बनाए रखना है, लेकिन असम जैसे अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों में राजनीतिक और सामाजिक सावधानी बरतना अनिवार्य है।

असम का राजनीतिक संदर्भ — NRC और D-Voter का गहरा साया अब भी कायम

असम का राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ देश के अन्य राज्यों से मौलिक रूप से अलग है और अत्यधिक संवेदनशील बना हुआ है। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को अद्यतन करने की प्रक्रिया ने राज्य में वर्षों तक गहन सामाजिक और राजनीतिक तनाव पैदा किया था, जिसका प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है। NRC की अंतिम सूची, जो 2019 में प्रकाशित हुई थी, उसमें लगभग 19 लाख लोगों के नाम मतदाता सूची से बाहर हो गए थे, और इनमें से बड़ी संख्या में लोग अभी भी अपने नागरिक अधिकारों और पहचान के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

 इसके अतिरिक्त, राज्य में “D-Voter (Doubtful Voter)” यानी संदिग्ध मतदाता की पहचान से जुड़ा विवाद भी दशकों पुराना है और यह अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। कई क्षेत्रों में, एक ही व्यक्ति का नाम NRC, मतदाता सूची, और अन्य सरकारी सूचियों में अलग-अलग स्थिति दिखाता है, जिससे स्थिति बेहद जटिल बनी हुई है। इसी अत्यंत जटिल और विस्फोटक पृष्ठभूमि को देखते हुए चुनाव आयोग का यह निर्णय लिया गया है कि फिलहाल असम को SIR के दायरे से बाहर रखा जाए, ताकि मतदाता पहचान और नागरिकता से जुड़े पुराने, अनसुलझे विवादों पर कोई नई, अनावश्यक प्रशासनिक परत न चढ़ जाए और कानून-व्यवस्था की स्थिति प्रभावित न हो।

राजनीतिक हलचल — विपक्ष का आरोप: ‘बहाना नहीं, यह असम में मतदाता अनदेखी है’

चुनाव आयोग द्वारा असम को SIR सूची से बाहर रखे जाने की इस घोषणा के बाद राज्य की राजनीति में तुरंत उबाल आ गया। विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस और एआईयूडीएफ (AIUDF) ने इस फैसले को “तकनीकी बहाना बनाकर की गई राजनीतिक चयन की कार्रवाई” बताते हुए तीखे आरोप लगाए। कांग्रेस विधायक दल के नेता देबब्रत सैकिया ने सीधे आरोप लगाया कि यह फैसला तकनीकी नहीं, बल्कि राजनीतिक मंशा से प्रेरित है। उन्होंने तर्क दिया कि असम में ही मतदाता सूची की गड़बड़ियाँ और त्रुटियाँ सबसे अधिक हैं, और आयोग को यहाँ SIR के माध्यम से पारदर्शिता लानी चाहिए थी। 

सैकिया ने कहा कि “असम को SIR से बाहर रखना यह साबित करता है कि बीजेपी-शासित केंद्र सरकार और आयोग जानबूझकर असम में मतदाता सत्यापन की संवेदनशील प्रक्रिया से डरते हैं।” इसके विपरीत, बीजेपी प्रवक्ता ने विपक्ष के इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि आयोग का निर्णय पूरी तरह से “प्रशासनिक विवेक, कानूनी अनिवार्यता और राज्य की सामाजिक संवेदनशीलता” पर आधारित है। उन्होंने जोर देकर कहा कि “असम का मामला अद्वितीय रूप से संवेदनशील है और यहाँ कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं है। आयोग ने एक समझदारी भरा फैसला लिया है ताकि कोई अनावश्यक विवाद न खड़ा हो।”

CEC ज्ञानेश कुमार की स्पष्टीकरणपूर्ण अपील — ‘असम में बाद में लागू होगा SIR’

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने राजनीतिक विवाद को शांत करने के लिए यह स्पष्ट संकेत भी दिया कि SIR योजना से असम को स्थायी रूप से बाहर नहीं रखा गया है। उन्होंने दोहराया कि “SIR की प्रक्रिया देशव्यापी है और इसका लक्ष्य भारत के हर नागरिक को सटीक मतदाता अधिकार सुनिश्चित करना है।” उन्होंने आगे कहा कि असम में इसे फिलहाल के लिए टालना कोई अंतिम या स्थायी निर्णय नहीं है। “जैसे ही राज्य की वर्तमान मतदाता समीक्षा प्रक्रियाएँ पूरी हो जाएँगी, और जब NRC एवं D-Voter मामलों से जुड़ी कानूनी तथा प्रशासनिक स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगी, तब SIR योजना वहाँ भी बिना किसी देरी के लागू की जाएगी,” CEC ने कहा। 

उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि चुनाव आयोग असम की संपूर्ण स्थिति पर लगातार और बारीकी से निगरानी रखेगा और नागरिक अधिकारों से जुड़ी हर प्रक्रिया को सर्वोच्च पारदर्शिता के साथ बनाए रखेगा। उन्होंने निष्कर्ष में कहा कि “असम देश का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा है, और वहाँ भी समान मतदाता अधिकार तथा सूचियों की सटीकता सुनिश्चित करना आयोग का परम कर्तव्य है।” यह बयान इस बात का संकेत है कि आयोग भविष्य में इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए सही समय का इंतजार कर रहा है।

संवेदनशीलता और पारदर्शिता के बीच चुनाव आयोग की संतुलन साधने की कोशिश

असम को SIR योजना के दूसरे चरण से बाहर रखने का फैसला एक बार फिर से यह दर्शाता है कि भारत निर्वाचन आयोग एक बेहद नाजुक और आवश्यक संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है। एक ओर, आयोग को मतदाता सूचियों में अधिकतम पारदर्शिता और सटीकता लाने की राष्ट्रीय आवश्यकता पूरी करनी है, और दूसरी ओर, असम की सामाजिक-सांस्कृतिक संवेदनशीलता और अतीत के अनसुलझे कानूनी विवादों को भड़काने से बचना है। जहाँ बाकी राज्यों में BLO (बूथ लेवल अधिकारी) तीन-तीन बार घर-घर जाकर मतदाता सत्यापन का कार्य करेंगे, वहीं असम में आयोग फिलहाल सतर्कता और यथास्थिति की नीति अपना रहा है।

 राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि SIR योजना को असम में विलंबित किया जाना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि राज्य अभी भी NRC और D-Voter जैसे अत्यंत गंभीर और संवेदनशील विवादों की छाया से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है। और जब तक यह कानूनी तथा सामाजिक छाया बरकरार रहेगी, असम में “मतदाता सूची” केवल एक प्रशासनिक दस्तावेज नहीं, बल्कि एक ज्वलंत राजनीतिक और सामाजिक विस्फोट का विषय बनी रहेगी। CEC ज्ञानेश कुमार के शब्दों में यह निर्णय आयोग की बुद्धिमत्ता को दर्शाता है: “असम के लिए हम जल्दबाजी नहीं करेंगे — वहाँ की हर प्रक्रिया को समझकर, सही समय पर ही SIR लागू किया जाएगा। यह देश की एकता और मजबूत लोकतंत्र दोनों के हित में है।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *