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क्या महिलाओं के नाम पर ही हो रही है वोटर लिस्ट की सबसे बड़ी हेराफेरी? चौंकाने वाले आंकड़े

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शीतल पी सिंह | नई दिल्ली 9 नवंबर 2025

राहुल गांधी के ‘H-बम’ खुलासे के बाद उठे राष्ट्रीय सवाल”

राहुल गांधी की हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस, जिसे उन्होंने ‘H-बम’ नाम दिया, ने देश की चुनावी व्यवस्था की जड़ों को झकझोर दिया है। हरियाणा विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उन्होंने ऐसी विसंगतियाँ उजागर कीं, जिनका असर न सिर्फ हरियाणा पर, बल्कि पूरे भारत के लोकतंत्र पर पड़ सकता है। राहुल ने दावा किया कि वोटर लिस्ट में जिस तरह की गड़बड़ियाँ पाई गई हैं, वे चुनावी प्रणाली की विश्वसनीयता पर सीधा हमला हैं। सबसे हैरान करने वाली बात ब्राज़ीलियन मॉडल लरिसा नेरी की तस्वीर का हरियाणा की वोटर लिस्ट में 22 अलग-अलग स्थानों पर उपयोग। लरिसा ने खुद इसे “पागलपन” कहा—और यह सवाल छोड़ा कि आखिर एक विदेशी मॉडल की तस्वीर भारत की वोटर लिस्ट में इतनी बार कैसे घुस गई? इसके साथ राहुल ने यह भी बताया कि एक भारतीय महिला के नाम पर दर्जनों वोटर कार्ड कई विधानसभा क्षेत्रों में मौजूद हैं जिनमें से अधिकांश कभी उपयोग ही नहीं किए गए। राहुल का आरोप है कि यह कोई सामान्य त्रुटि नहीं बल्कि संगठित हेराफेरी का संकेत है और उनका दावा है कि हरियाणा में 25 लाख से अधिक फर्जी वोटर पाए गए हैं—एक ऐसी संख्या जो किसी भी चुनाव का परिणाम पलट सकती है।

यहाँ सबसे बड़ा सवाल उभर रहा है—क्या यह फर्जीवाड़ा महिलाओं के नामों पर केंद्रित है? चुनावी आँकड़ों की गहराई में जाएं तो यह संदेह और गहरा होता है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में महिलाओं का वोटर टर्नआउट 65.22% रहा, जो 2019 के मुकाबले 6% की उछाल है। न सिर्फ उछाल, बल्कि महाराष्ट्र की 15 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट डाले। महिलाओं की कुल संख्या पुरुषों के लगभग बराबर हो गई, जिसने चुनाव के नतीजों पर भारी असर डाला। हरियाणा में भी स्थिति कुछ ऐसी ही दिखी—2024 में 2.03 करोड़ वोटरों में से लगभग 63.91 लाख महिलाओं ने मतदान किया, और जबकि महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम थी, उनका टर्नआउट रेट पुरुषों से अधिक, लगभग 68%, रहा। ऐसे आँकड़े महिला भागीदारी में अचानक उछाल का संकेत देते हैं, पर राहुल गांधी के आरोपों के बाद यह उछाल ‘संदेह की खिड़की’ भी खोलता है।

अब बिहार 2025 के चुनावों में पहली फेज की तस्वीर और जटिल है। यहाँ मतदान में महिलाओं की हिस्सेदारी 50% से भी अधिक रही—जो पहली नजर में महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक लगती है, लेकिन चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के बाद महिला मतदाताओं का अनुपात 907 से घटकर 892 रह जाना, वह भी 15 सालों में पहली बार, बेहद गंभीर सवाल खड़े करता है। इतने बड़े पैमाने पर महिलाओं के अनुपात में गिरावट क्या दर्शाती है? क्या यह साफ संकेत नहीं देता कि वोटर लिस्ट में महिलाओं के नामों का उपयोग करके व्यापक हेराफेरी की संभावनाएँ बनी हुई हैं? क्या यह संभव है कि फर्जी वोटरों को ऐसे नामों से जोड़ा जा रहा है जिनकी सामाजिक पहचान कमजोर है, या जिनकी सत्यापन प्रक्रिया अपेक्षाकृत कठिन है?

महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में बीजेपी की जीत के पीछे महिलाओं पर केंद्रित योजनाओं को कारण बताया जाता है, लेकिन अब यह भी जांच का विषय है कि क्या यह जीत वास्तविक महिला भागीदारी से आई थी या फर्जी वोटिंग के ज़रिये घोषित की गई “महिला बढ़त” मात्र एक चुनावी परदा थी? उसी तरह बिहार में महिलाओं के वास्तविक अनुपात में भारी गिरावट यह प्रश्न उठाती है कि क्या महिला वोटरों का बड़ा हिस्सा सिर्फ कागज़ पर मौजूद था, जमीनी स्तर पर नहीं। यह एक गंभीर चिंता है, क्योंकि लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी गर्व की बात है—लेकिन उसी भागीदारी का इस्तेमाल अगर फर्जी वोटिंग के औजार के रूप में किया जा रहा है, तो यह लोकतंत्र के खिलाफ सबसे खतरनाक साजिश है।

इन आंकड़ों और आरोपों के बीच चुनाव आयोग की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। क्या आयोग इन विसंगतियों की पूरी पारदर्शिता के साथ जांच करेगा? क्या वह बताएगा कि एक विदेशी मॉडल की तस्वीर वोटर लिस्ट में कैसे पहुंच गई? क्या वह महिलाओं के अनुपात में अचानक आए उतार-चढ़ाव का वैज्ञानिक कारण देगा? या फिर यह मुद्दा भी चुनावी धूल में गुम हो जाएगा? देश के नागरिक, खासकर महिलाएँ, यह जानने का पूरा हक रखती हैं कि क्या उनका नाम लोकतंत्र की मजबूती के लिए इस्तेमाल हो रहा है—या हेराफेरी के लिए?

भारत का लोकतंत्र महिलाओं की शक्ति पर खड़ा है—पर अब वही शक्ति सवालों के घेरे में है। और यह जांच अब सिर्फ चुनाव आयोग की नहीं, बल्कि पूरे देश की जिम्मेदारी बन चुकी है।

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