स्पेशल रिपोर्ट : सुनील कुमार | नई दिल्ली 1 नवंबर 2025
अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप (एडीएजी) की कंपनियों पर सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों का बकाया अब एक आर्थिक अपराध की कहानी बन चुका है। 2020 से लेकर 2025 तक का सफर सिर्फ आंकड़ों और जांचों का नहीं, बल्कि एक ऐसे सिस्टम की कमजोरी का भी प्रतीक है जो बड़े उद्योगपतियों की चूक को सार्वजनिक धन की हानि में बदल देता है। एलआईसी, एसबीआई, बैंक ऑफ बड़ौदा और कैनरा बैंक जैसे दिग्गज पीएसयू संस्थानों के हजारों करोड़ रुपये अब तक फंसे हैं, और सवाल वही है — क्या यह पैसा कभी लौटेगा?
कई बार लोन वेवऑफ हो चुका है
अनिल अंबानी समूह (ADAG) की कंपनियों को लेकर पिछले कुछ वर्षों में लोन माफी और कर्ज पुनर्गठन का खेल बेहद जटिल और विवादास्पद रहा है। 2020 से 2023 के बीच कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने करीब 10,000 से 12,000 करोड़ रुपये तक के लोन को “राइट-ऑफ” यानी बट्टे खाते में डाल दिया, जिसमें रिलायंस कम्युनिकेशंस, रिलायंस कैपिटल और रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी कंपनियां शामिल थीं। इनमें से अधिकांश रकम अब तक वसूल नहीं हो सकी है। बैंकों का कहना था कि यह “तकनीकी राइट-ऑफ” है ताकि बैलेंस शीट साफ दिखाई दे, लेकिन असलियत यह है कि जनता का पैसा फिर से जोखिम में चला गया। विशेष रूप से एसबीआई, बैंक ऑफ बड़ौदा और आईडीबीआई बैंक ने बड़े हिस्से को नुकसान मानकर खातों से बाहर कर दिया — जिससे यह सवाल और तेज हुआ कि क्या बड़े उद्योगपतियों के लिए “लोन माफी” एक प्रथा बन चुकी है, जबकि आम आदमी के लिए छोटे कर्ज पर भी वसूली के नोटिस झट से पहुंच जाते हैं।
2020 की तस्वीर: जब जनता का पैसा कॉर्पोरेट कर्ज में फंसा
साल 2020 में जब देश कोविड-19 की मार झेल रहा था, तब एडीएजी साम्राज्य आर्थिक संकट में डूब चुका था। रिपोर्ट्स के मुताबिक एलआईसी का रिलायंस कैपिटल, रिलायंस कम्युनिकेशंस और रिलायंस होम फाइनेंस जैसी कंपनियों में लगभग 7,950 करोड़ रुपये का एक्सपोजर था। वहीं, एसबीआई का आरकॉम पर करीब 3,000 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ बड़ौदा का 14,000 करोड़ रुपये तक का बकाया, और कैनरा बैंक का 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का जोखिम सामने आया। कुल मिलाकर सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों पर 90,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का बोझ था — जो आम भारतीय करदाताओं के पसीने की कमाई से बना कोष है।
2025 में मामला और गहराया: जांच, धोखाधड़ी और सीबीआई छापे
पांच साल बाद, 2025 में, एडीएजी के खिलाफ कार्रवाई तेज हो चुकी है — लेकिन परिणाम अभी भी धुंधले हैं। अगस्त 2025 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 17,000 करोड़ रुपये के बैंक लोन फ्रॉड की जांच शुरू की। इसके बाद सीबीआई ने एडीएजी से जुड़े परिसरों पर छापेमारी की, और अनिल अंबानी को पूछताछ के लिए बुलाया गया। हाल ही में कोब्रापोस्ट की रिपोर्ट ने बम फोड़ा कि एडीएजी पर कुल 28,874 करोड़ रुपये का फ्रॉड हुआ, जो अक्टूबर 2025 तक बढ़कर 41,921 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। रिपोर्ट में आरोप है कि शेल कंपनियों के जरिए सार्वजनिक धन को डायवर्ट किया गया — यानी सरकारी पैसा निजी हितों की भेंट चढ़ गया।
बैंकों ने अब आरकॉम और अंबानी को घोषित किया ‘फ्रॉड’
एसबीआई ने जून 2025 में आरकॉम और अनिल अंबानी को ‘फ्रॉड लिस्ट’ में डाल दिया, जबकि बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक ऑफ इंडिया ने भी इसी रास्ते पर चलते हुए अपनी रिपोर्टें सीबीआई को सौंप दीं। आरकॉम के 2,227 करोड़ रुपये के फंड-बेस्ड लोन और 786 करोड़ रुपये की गारंटी राशि को संदिग्ध माना गया है। यह कार्रवाई दिखाती है कि बैंक अब ‘कॉर्पोरेट कर्ज माफी’ के दौर से निकलकर जवाबदेही की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन सवाल अब भी वही है — वसूली कब तक?
आईबीसी प्रक्रिया और अधूरी वसूली की कहानी
रिलायंस कैपिटल को फरवरी 2025 में आईआईएचएल ने 9,650 करोड़ रुपये में खरीदा, जिससे कर्ज का एक हिस्सा निपट गया। लेकिन रिलायंस कम्युनिकेशंस और होम फाइनेंस की वसूली अब भी अधर में लटकी है। एनसीएलटी के फैसले लंबित हैं, जबकि बैंकों को अब तक सिर्फ आंशिक रिफंड मिला है। विशेषज्ञों का कहना है कि “यह वसूली प्रक्रिया इतनी लंबी है कि कई बार वसूली से ज्यादा खर्च जांचों पर हो जाता है।”
राफेल डील का विवाद और कॉर्पोरेट राजनीति
एडीएजी की कहानी सिर्फ कर्ज और वसूली तक सीमित नहीं रही। 2016 में राफेल डील के दौरान डसॉल्ट एविएशन द्वारा रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर बनाने के फैसले ने ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ के आरोपों को जन्म दिया। विपक्ष ने कहा कि यह साझेदारी बिना अनुभव के सिर्फ राजनीतिक निकटता का नतीजा थी। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद तक ने कहा कि भारत सरकार ने रिलायंस को पार्टनर चुनने पर दबाव डाला था। हालांकि 2023 में यह संयुक्त उपक्रम खत्म हो गया, लेकिन छवि का नुकसान एडीएजी के लिए स्थायी हो गया।
आगे की राह: वसूली या इतिहास में एक और नाम?
वित्त मंत्रालय का कहना है कि जांच एजेंसियां सक्रिय हैं और आईबीसी के जरिए वसूली संभव है। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि अदालतों में फंसे केस, लंबी कानूनी प्रक्रियाएं और कॉर्पोरेट लॉबी के दबाव ने इस मामले को ‘अनंत प्रतीक्षा’ की स्थिति में ला दिया है। एडीएजी की कंपनियों के शेयर — रिलायंस पावर और रिलायंस इंफ्रा — 2025 में 70% तक उछले, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि “यह उछाल कागज़ी है, असल ताकत खो चुकी है।”
क्या अनिल अंबानी अगला नीरव मोदी बनेंगे या सिस्टम सीख लेगा सबक?
यह सबसे बड़ा सवाल है। 2020 में जो मामला आर्थिक गलती था, 2025 में वही कॉर्पोरेट धोखाधड़ी और राजनीतिक संरक्षण की मिसाल बन गया है। सरकारी बैंकों का धन अब भी फंसा है, जांचें जारी हैं, और जनता अब भी इंतजार में है — कि आखिर कोई तो आए जो सिस्टम को जवाबदेह बनाए।




