हैदराबाद 11 अगस्त 2025
आंध्र प्रदेश के झींगा उत्पादकों पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ का गहरा असर दिखने लगा है। राज्य के लगभग 6.5 लाख मत्स्य किसान और इस उद्योग से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े करीब 50 लाख लोग अब आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़े हैं। झींगा, जिसे राज्य की “ब्लू रिवोल्यूशन” का आधार माना जाता है, भारत के कुल समुद्री निर्यात में अहम योगदान देता है और इसमें आंध्र प्रदेश का हिस्सा लगभग 70% है। लेकिन अब अमेरिकी बाजार, जो सबसे बड़ा आयातक है, अचानक महंगा हो जाने के कारण आंध्र के उत्पादक वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने लगे हैं। स्थानीय किसानों का कहना है कि पहले ही लागत बढ़ चुकी है, ऊपर से इतने बड़े टैरिफ ने उनका मुनाफा खत्म कर दिया है। बड़े आकार के झींगे—जिन्हें 30-काउंट या 40-काउंट कैटेगरी कहा जाता है—जो पहले 350–400 रुपये किलो बिकते थे, अब अमेरिकी खरीदारों को उतनी आकर्षक कीमत पर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।
बीते एक सप्ताह में ही झींगा की कीमतों में 6% से 19% तक की गिरावट दर्ज की गई है। 40-काउंट श्रेणी की झींगा, जिसकी कीमत हाल तक 450 रुपये किलो तक थी, अब घटकर लगभग 365 रुपये किलो रह गई है। किसानों का कहना है कि उत्पादन लागत लगभग स्थिर रहने के बावजूद बिक्री मूल्य में इतनी बड़ी गिरावट उनके लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। राज्य के मत्स्य अधिकारियों और उद्योग से जुड़े लोगों का अनुमान है कि यदि यह स्थिति बनी रही तो करीब 24,000–25,000 करोड़ रुपये के निर्यात कारोबार पर सीधा खतरा मंडराएगा। झींगा हैचरी, प्रोसेसिंग यूनिट्स, आइस प्लांट, कूल स्टोरेज और परिवहन जैसे सहायक क्षेत्रों में भी कामकाज ठप होने का डर है, जिससे हजारों मजदूर बेरोजगार हो सकते हैं।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ उच्च-स्तरीय वार्ता कर इस टैरिफ में राहत दिलाना जरूरी है, अन्यथा राज्य की मत्स्य अर्थव्यवस्था को अपूरणीय क्षति हो सकती है। राज्य सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए घरेलू बाजार पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बनाई है। इसके तहत झींगा को घरेलू उपभोक्ताओं के लिए रिब्रांड करने, पोषण संबंधी जागरूकता अभियान चलाने, फूड फेस्टिवल आयोजित करने और होटलों-ढाबों में झींगा को मेन्यू का नियमित हिस्सा बनाने की तैयारी है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि घरेलू खपत अभी इतनी नहीं है कि वह अमेरिकी बाजार में हुए घाटे की भरपाई कर सके।
उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति का सबसे बड़ा फायदा ईक्वाडोर, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे प्रतिस्पर्धी देशों को होगा, जिनकी निर्यात लागत कम है और जिन्हें अमेरिकी बाजार में बेहतर पहुंच मिल सकती है। ऐसे में भारतीय झींगा उत्पादकों का हिस्सा घटने की पूरी संभावना है। यह केवल एक व्यापारिक झटका नहीं है, बल्कि आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के लिए आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से गंभीर संकट है, जहां मत्स्य पालन ग्रामीण रोजगार और विदेशी मुद्रा का बड़ा स्रोत है। किसानों का दर्द साफ झलकता है—वे कह रहे हैं कि अगर स्थिति नहीं सुधरी तो उन्हें मजबूरन अपने तालाब सूखने देने पड़ेंगे और इस व्यवसाय से पूरी तरह हटना पड़ेगा।