Home » National » अमृत बना ज़हर: IRCTC की सफाई में छिपी सच्चाई

अमृत बना ज़हर: IRCTC की सफाई में छिपी सच्चाई

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

भारतीय रेल: लाइफ़लाइन परोस रही है ज़हर और भरोसे का टूटना

जिस भारतीय रेल को देश के सवा सौ करोड़ लोगों की “लाइफ़लाइन” और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक कहा जाता है, आज उसी की थाली में जनता का वर्षों का भरोसा ज़हर बनकर परोसा जा रहा है। हाल ही में ‘अमृत भारत एक्सप्रेस’ में यात्रियों को परोसे गए खाने के कंटेनरों के वायरल हुए वीडियो ने पूरे देश को गहरे सदमे और आक्रोश से भर दिया है। वीडियो में स्पष्ट और बिना किसी संदेह के यह देखा जा सकता है कि जूठे, गंदे और सड़े हुए कैसरोल डिब्बों को पैंट्री कार के अंदर अस्वच्छ पानी से धोकर, उन्हें फेंकने के बजाय दोबारा उपयोग के लिए जमा किया जा रहा था। यह घटना सिर्फ़ मामूली गंदगी या लापरवाही नहीं है; यह यात्रियों के स्वास्थ्य, स्वच्छता के अधिकार और उनके जीवन के साथ किया गया एक संगठित अपराध है, जो भारतीय रेल के खानपान नेटवर्क की सड़ांध को सतह पर लाता है। यह सवाल उठाता है कि जिस सिस्टम पर लाखों लोग आँख बंद करके भरोसा करते हैं, वह इस स्तर की आपराधिक लापरवाही कैसे कर सकता है।

सुबह जब यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और कांग्रेस सहित विपक्ष ने रेल मंत्री से जवाबदेही मांगी, तो IRCTC ने आनन-फानन में ट्वीट कर “कड़ी कार्रवाई” और जांच का ऐलान किया। लेकिन कुछ ही घंटों में सच्चाई को दबाने के प्रयास में वही ट्वीट डिलीट कर दिया गया—और उसकी जगह एक नई, हास्यास्पद सफाई प्रस्तुत की गई। नई सफाई में IRCTC ने दावा किया कि “कैसरोल का पुनः उपयोग नहीं किया गया, केवल डिस्पोज़ करने से पहले उन्हें साफ किया जा रहा था, इसलिए भ्रामक ख़बरें न फैलाएँ।” यह बयान अपने आप में एक मज़ाक बन गया। सवाल यह उठता है कि अगर ये कैसरोल डिब्बे केवल कचरे में फेंकने के लिए धोए जा रहे थे, तो फिर रेलवे की पैंट्री कार के अंदर इस तरह अस्वच्छ पानी से साफ़-सफ़ाई की नौटंकी क्यों की जा रही थी? IRCTC के अस्पष्ट और बचकाने तर्क से कहीं ज़्यादा सच्चाई उस वीडियो में थी, जिसमें वेंडर गंदे पानी से वही बर्तन धोकर दोबारा इस्तेमाल के लिए तैयार करता दिख रहा था, जो सीधे तौर पर यात्रियों के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है।

PIB Fact Check और ‘स्क्रैप डीलिंग’ का खेल: कबाड़ी की दुकान बनी पैंट्री कार

इस डैमेज कंट्रोल के खेल में जल्द ही PIB Fact Check भी मैदान में उतरा और IRCTC के तर्क को दोहराते हुए ट्वीट किया कि “यात्रियों को परोसे गए कंटेनरों का पुनः उपयोग नहीं किया गया। उन्हें केवल डिस्पोज करने से पहले साफ किया गया था।” इस सफाई ने स्पष्ट कर दिया कि अब सरकारी “फैक्ट चेक” भी ‘क्लीनिंग चेक’ या ‘डैमेज कंट्रोल’ का औजार बन गया है। IRCTC ने अपने एक और औपचारिक बयान में तर्क की सारी सीमाएँ पार करते हुए कहा: “वेंडर कंटेनर इसलिए साफ़ कर रहा था क्योंकि वह उन्हें कबाड़ (Scrap) में बेचकर मौद्रिक लाभ कमाना चाहता था।” इस बयान ने पूरे मामले को एक नए निचले स्तर पर पहुँचा दिया। अब सवाल यह है कि क्या भारतीय रेलवे की पैंट्री कारें, जो यात्रियों को स्वच्छ खाना परोसने के लिए बनी हैं, कबाड़ी की दुकान बन चुकी हैं? और अगर वेंडर का उद्देश्य सिर्फ़ कबाड़ बेचना था, तो यात्रियों की थाली में वही गंदे और धोए हुए डिब्बे दोबारा कैसे और क्यों पहुँच गए, जैसा कि वायरल वीडियो और कई यात्रियों के अनुभवों से स्पष्ट है?

‘अमृत’ में घुला जहर: यात्रियों के स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय आपदा का खतरा

रेलवे में खानपान की गुणवत्ता पहले भी कई बार विवादों में रही है, लेकिन यह वीडियो भारतीय रेल के प्रति जनता के भरोसे की आख़िरी दीवार को भी तोड़ देता है। भारतीय रेलवे में प्रतिदिन करीब 2.3 करोड़ यात्री सफर करते हैं, और इनमें से लाखों लोगों को IRCTC के ठेकेदारों के माध्यम से खाना उपलब्ध कराया जाता है। अगर यही खाना गंदे, जूठे या गंभीर रूप से संक्रमित बर्तनों में परोसा जा रहा है, तो यह किसी क्षेत्रीय समस्या से कम नहीं, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी स्वास्थ्य आपदा को न्यौता देना है। स्वच्छ भारत मिशन का नारा देने वाली सरकार के अधीन चल रही भारतीय रेल, आज इस घटना के कारण “सड़े भारत मिशन” की एक दुर्भाग्यपूर्ण मिसाल बन चुकी है। यह दर्शाता है कि यात्रियों की सुविधा और स्वास्थ्य की अनदेखी किस हद तक पहुँच चुकी है, जहाँ मुनाफ़ा और लापरवाही, साफ-सफ़ाई और सुरक्षा पर भारी पड़ रही है।

रेल मंत्री की ‘रील पॉलिटिक्स’ बनाम रेल की ‘रियलिटी’

वर्तमान रेल मंत्री जी अक्सर सोशल मीडिया पर ‘इंजन पर चढ़कर वीडियो’ बनाते हुए, या ‘कैमरे के साथ ट्रेन के केबिन’ में घूमते हुए “विकास की झलक” दिखाते हैं और रेलवे के प्रगतिशील होने के दावे करते हैं। लेकिन क्या उन्होंने कभी पैंट्री कार के गंदे कोनों का दौरा किया? क्या उन्होंने कभी यह जानने की कोशिश की कि लाखों यात्रियों की थाली तक पहुँचने वाला खाना और बर्तन किन अमानवीय और अस्वच्छ हालात में तैयार हो रहे हैं? सोशल मीडिया पर “विकास की रीलें” तो रोज़ बनती हैं, मगर ज़मीन पर रेलवे की “रियलिटी” इस गंदगी और भ्रष्टाचार के कारण पूरी तरह से सड़ चुकी है। जनता के बीच अब यह बहस तेज़ हो गई है कि रेल मंत्री को अब “रील मंत्री” कहना ज़्यादा उपयुक्त है—क्योंकि जब जनता बीमारियों से त्रस्त होकर अस्पताल पहुँचती है, तब उनके कैमरे का फ़्रेम बदला जाता है, न कि रेलवे खानपान व्यवस्था के ढांचे को सुधारा जाता है।

अब जांच नहीं, तत्काल इस्तीफ़ा और न्यायिक जवाबदेही चाहिए

IRCTC और रेलवे प्रशासन के अब तक के औपचारिक बयान और डैमेज कंट्रोल के प्रयास जनता को गुमराह नहीं कर सकते। यह मामला सिर्फ़ एक वेंडर को सस्पेंड करने या एक ट्रेन का नहीं है—यह पूरे रेलवे खानपान तंत्र की गहरी सड़ांध है, जो वर्षों से चल रही है। यह समय है कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस अत्यंत गंभीर विषय का खुद संज्ञान ले और इस पूरे रेलवे खानपान नेटवर्क की उच्च-स्तरीय न्यायिक जांच करवाई जाए। केवल जांच ही नहीं, बल्कि इस राष्ट्रीय शर्म और स्वास्थ्य जोखिम के कारण नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री से तत्काल इस्तीफ़े की मांग अब आवश्यक हो गई है। रेलवे केवल पटरियों पर नहीं चलती—वह करोड़ों भारतीयों के भरोसे पर चलती है, और जब यह भरोसा टूटा है, तो सिर्फ़ सफाई नहीं, तत्काल और कठोर जवाबदेही चाहिए।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *