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गाज़ा में सन्नाटे के बीच राहत की आहट लेकिन दिल अब भी बेचैन

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गाज़ा । अंतरराष्ट्रीय डेस्क रिपोर्ट 

9 अक्टूबर 2025

गाज़ा की सड़कों और गलियों में पहली बार कई महीनों के बाद गोलियों की भयानक आवाज़ की जगह पर हँसी और आँसुओं का एक अजीब मिश्रण सुनाई दे रहा है। जैसे ही युद्धविराम (सीज़फ़ायर) लागू हुआ, लोग फौरन अपने अस्थायी ठिकानों से निकलकर सड़कों पर आ गए, एक-दूसरे को गले लगाया और कई लोगों ने “हम अब भी ज़िंदा हैं” लिखी तख्तियाँ उठाईं। लेकिन यह जो जश्न था, वह बहुत अधूरा था, क्योंकि हर चेहरे के पीछे एक खोए हुए परिवार, उजड़े हुए घर या टूटे हुए सपने का गहरा दर्द छिपा हुआ था। 

युद्धविराम की घोषणा होने के बाद फ़िलिस्तीनी जनता ने भले ही एक लंबी और गहरी राहत की साँस ली हो, मगर उनके दिलों में एक ही सवाल बार-बार गूंज रहा है — “हम खुशी मनाएँ या अपने मरे हुए बच्चों का मातम करें?” यह विराम केवल अस्थायी है, जो गाज़ा के लोगों के लिए जीत का संकेत नहीं, बल्कि ज़िंदा बच जाने के सुकून का एक क्षण है, जिसके पीछे दस महीने के संघर्ष की भयानक छाप है।

गाज़ा की सड़कों पर जश्न नहीं, गहरी सिसकियाँ हैं। लोग अपने आप से कह रहे हैं — ‘हमने जंग नहीं जीती, बस ज़िंदा रह गए।’यह युद्धविराम नहीं है, यह तो केवल दर्द के बीच कुछ देर की साँस लेने का मौका है।”

सीज़फ़ायर लागू होने के कुछ ही घंटे बाद, गाज़ा के उत्तर और खान यूनिस जैसे उन इलाकों में जहाँ सबसे ज़्यादा तबाही हुई थी, लोग पहली बार अपने घरों के मलबे तक लौटने लगे हैं। जहाँ पहले हर पल बमों की भीषण गर्जना हुआ करती थी, अब वहाँ एक गहन सन्नाटा और धुएँ में घुली उम्मीद महसूस की जा सकती है। लोग अपने टूट चुके मकानों के बीच फटे कपड़ों में अपने बच्चों को ढूँढ़ते हुए एक-दूसरे को दिलासा दे रहे थे — “कम से कम अब रातें डरावनी नहीं होंगी और हमें मौत का डर नहीं सताएगा।”

 जिन हज़ारों परिवारों ने इस युद्ध में अपना सब कुछ खो दिया है, उनके लिए यह विराम केवल एक अस्थायी साँस भरने जैसा है, क्योंकि उनका नुकसान इतना बड़ा है कि उसकी भरपाई नहीं हो सकती। अल-जज़ीरा की रिपोर्टों के अनुसार, कई जगहों पर छोटे बच्चे टूटी-फूटी दीवारों के बीच “फ्री गाज़ा” और “हम फिर से बनेंगे” जैसे उम्मीद भरे नारे लगाते दिखाई दिए। वहीं, महिलाएँ राहत कैंपों में एक-दूसरे को खाना बाँटकर सहारा दे रही थीं, जबकि पुरुष खंडहरों के बीच अपने लापता रिश्तेदारों के शवों की पहचान करने का दर्दनाक काम कर रहे थे। गाज़ा सिटी की एक विधवा महिला फातिमा ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा — “युद्ध खत्म हुआ या नहीं, मुझे नहीं पता। लेकिन मेरा बेटा अब नहीं है। मेरे लिए तो हर दिन वही मातम का दिन रहेगा।”

जश्न के साथ मातम — ‘विराम’ नहीं, ‘विलाप’ का पल

यह युद्धविराम जहाँ एक तरफ़ राहत का संदेश लेकर आया है, वहीं दूसरी ओर इसने अपने पीछे शोक और आघात का एक बहुत बड़ा और गहरा सागर भी छोड़ दिया है। हज़ारों परिवारों ने इस संघर्ष में अपने प्रियजनों को खो दिया है, और लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित होकर दर-दर भटक रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टें बताती हैं कि गाज़ा में 30,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है — जिनमें से 60% से भी ज़्यादा संख्या महिलाओं और बच्चों की है। कई लोग अभी भी ध्वस्त हो चुकी इमारतों के मलबे में अपने रिश्तेदारों के शवों की तलाश कर रहे हैं। 

गाज़ा के डॉक्टरों ने बताया है कि अस्पतालों में अब केवल शारीरिक घायलों का इलाज ही ज़रूरी नहीं है, बल्कि सबसे ज़्यादा ज़रूरत “मनोवैज्ञानिक घावों की मरहमपट्टी” करने की है। राहत कैंपों में बच्चे अब भी नींद में डरकर चौंककर उठ जाते हैं, क्योंकि बमों की भयानक आवाज़ उनके मन के भीतर लगातार गूंजती रहती है। एक स्थानीय शिक्षक ने इस दर्द को व्यक्त करते हुए कहा — “यह युद्धविराम हमारे कानों के लिए है, पर हमारे दिल और आत्मा अब भी उसी भयानक जंग में फँसे हुए हैं।”

 ‘घर लौटने’ की कोशिश — जो अब घर नहीं रहे

गाज़ा के जिन इलाक़ों पर बमबारी सबसे अधिक हुई थी, वहाँ अब लोग धीरे-धीरे लौट रहे हैं, लेकिन उन्हें निराशा ही मिल रही है क्योंकि उनके घर अब केवल पत्थरों और मलबे का ढेर बन चुके हैं। गाज़ा के बीचोंबीच अब ऐसे सैकड़ों इलाक़े हैं जहाँ एक भी इमारत सीधी खड़ी नहीं बची है। संयुक्त राष्ट्र की राहत एजेंसियों का कहना है कि लगभग 15 लाख लोग अपने घरों से विस्थापित हो चुके हैं, जिनमें से कई परिवार अभी भी खुले आसमान के नीचे या अस्थायी टेंटों में रह रहे हैं।

 इज़राइल के साथ हुए समझौते में “मानवीय सहायता” पहुँचाने की अनुमति तो दी गई है, लेकिन स्थानीय नागरिकों का दर्द यह है कि “खाना आ जाएगा, पानी आ जाएगा, लेकिन हमारे मरे हुए बच्चों को कौन लौटाएगा?” कई परिवारों ने अपने मृत रिश्तेदारों की तस्वीरें हाथ में लेकर जश्न मनाया — उनका यह जश्न शांति का नहीं, बल्कि उनकी याद का था, जिनकी वजह से उन्हें यह उम्मीद मिली कि वे यह दिन देखने के लिए ज़िंदा बच गए।

दुनिया ने राहत की सांस ली, पर ज़मीन पर दर्द जारी

संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अमेरिका सहित पूरी दुनिया ने इस युद्धविराम का ज़ोरदार स्वागत किया है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी यह अच्छी तरह जानता है कि यह कोई स्थायी समाधान नहीं है, बल्कि यह केवल एक बेहद नाज़ुक और अस्थायी समझौता है। क़तर और मिस्र की सफल मध्यस्थता से बने इस करार ने बंधक रिहाई और मानवीय सहायता के लिए रास्ता तो खोल दिया है, मगर किसी को भी इस बात पर पूरा भरोसा नहीं है कि यह शांति कितने समय तक टिकेगी। 

यरुशलम, वाशिंगटन और काहिरा जैसे राजनीतिक केंद्रों में उम्मीदें हैं कि यह समझौता भविष्य की स्थायी शांति की एक मज़बूत नींव बनेगा। लेकिन गाज़ा में बैठे आम लोगों के लिए यह “नींव” नहीं, बल्कि टूटने वाला सुकून का बस एक छोटा-सा टुकड़ा है — जो कभी भी ढह सकता है और उन्हें फिर से जंग के ख़तरे में धकेल सकता है।

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