गया, बिहार
26 जुलाई 2025
बिहार के गया ज़िले से आई यह घटना न सिर्फ राज्य की कानून-व्यवस्था पर गहरी चोट करती है, बल्कि पूरे समाज को झकझोर देने वाली है। 26 वर्षीय एक महिला, जो बिहार मिलिट्री पुलिस (होम गार्ड) की भर्ती परीक्षा में हिस्सा लेने के लिए आई थी, परीक्षा के दौरान अत्यधिक गर्मी और थकान के कारण बेहोश हो गई। आयोजकों द्वारा उसे तत्काल अस्पताल भेजने का निर्णय लिया गया, जिसके लिए एक एंबुलेंस बुलाई गई। लेकिन इस एंबुलेंस ने जिस तरह से अपनी नैतिक और संवैधानिक ज़िम्मेदारी को कुचला, वह मानवता को शर्मसार कर देने वाला है। रास्ते में पीड़िता ने आरोप लगाया कि ड्राइवर और तकनीशियन ने न केवल उसकी बेहोशी का फायदा उठाया, बल्कि एंबुलेंस को सुनसान इलाके में ले जाकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। युवती का कहना है कि वह पूरी तरह बेहोश नहीं थी—उसकी चेतना आंशिक रूप से बनी हुई थी, और उसे वहशियों की हर हरकत का आभास हो रहा था, मगर उसका शरीर प्रतिक्रिया देने में असमर्थ था।
इस मामले ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि जब आपातकालीन सेवा देने वाले ही भक्षक बन जाएं, तब एक आम नागरिक किस पर भरोसा करे? एक युवती, जो अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए एक सरकारी भर्ती परीक्षा में भाग लेने आई थी, उसे सुरक्षा की सबसे बुनियादी उम्मीद भी नहीं मिल सकी। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए एंबुलेंस ड्राइवर विनय कुमार और तकनीशियन अजीत कुमार को गिरफ्तार कर लिया है, और प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है। इस बीच, स्थानीय प्रशासन ने दावा किया है कि मामले की गहराई से जांच की जा रही है और CCTV फुटेज और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाएगी। परंतु यह सवाल बना हुआ है कि एक संवेदनशील परीक्षा आयोजन में सुरक्षा के इतने गंभीर इंतज़ाम क्यों नदारद थे, और क्यों एक अकेली युवती को किसी महिला कर्मी की उपस्थिति के बिना एकांत एंबुलेंस में भेजा गया?
राजनीतिक हलकों में भी इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने इस घटना को “बिहार के लिए कलंक” बताते हुए कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। उन्होंने मुख्यमंत्री से पूछा है कि जब एक लड़की भर्ती परीक्षा में भाग लेने आई हो और सरकारी सेवा के सपने देख रही हो, तब भी अगर वह सुरक्षित न रहे, तो राज्य किस ओर जा रहा है? इस घटना ने न केवल बिहार पुलिस और भर्ती बोर्ड की जवाबदेही पर सवाल उठाए हैं, बल्कि पूरे राज्य में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भय और अविश्वास का माहौल बना दिया है। सवाल यह भी है कि जो सिस्टम युवाओं को अवसर देने की बात करता है, वह उनकी गरिमा की रक्षा क्यों नहीं कर पा रहा?
इस भीषण प्रकरण ने आमजन को झकझोर दिया है। यह कोई साधारण आपराधिक मामला नहीं, बल्कि उस पूरी प्रणाली पर सवाल है जो आपातकालीन सेवा को न्यूनतम नैतिकता और मानवीय गरिमा से जोड़ती है। जब एक एंबुलेंस, जो जीवन बचाने के लिए होती है, बलात्कार का स्थान बन जाए, तो यह लोकतंत्र, स्वास्थ्य व्यवस्था, सुरक्षा तंत्र और मानवीय संवेदनशीलता सभी पर एक साथ हमला है। इस मामले में सरकार को केवल अपराधियों को सज़ा दिलवाने की ज़िम्मेदारी नहीं निभानी चाहिए, बल्कि एंबुलेंस सेवाओं की निगरानी, मेडिकल इमरजेंसी में महिला कर्मचारियों की अनिवार्य तैनाती, भर्ती परीक्षाओं में महिला-प्रार्थियों के लिए सुरक्षा मानकों की अनिवार्यता जैसे कदम तत्काल उठाने चाहिए। वरना ऐसी घटनाएँ दोहराई जाती रहेंगी, और भरोसे की हर डोर कटती रहेगी।
निष्कर्षत: गया की घटना हमें सिर्फ एक लड़की की पीड़ा नहीं दिखाती, बल्कि उस पूरे तंत्र की विफलता उजागर करती है जो जनता की सेवा का दावा करता है। अगर अब भी व्यवस्था नहीं जागी, तो यह दरिंदगी किसी और की बेटी, बहन या मां को भी निगल सकती है। यह समय है जब सरकार, समाज और सिस्टम मिलकर आत्ममंथन करें और महिला-सुरक्षा को नारे से निकालकर प्राथमिकता बनाएं।