चाँद से कवर तक: विकास की नई परिभाषा पर उठे गंभीर सवाल
देश ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में बड़ी सफलताएँ हासिल करने के बाद, अब रेल यात्रा के ‘बिस्तर सेवा’ क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक छलांग लगाई है— रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आज खातीपुरा (राजस्थान) से “जयपुर-असारवा ट्रेन में कंबल के कवर” का विधिवत शुभारंभ कर दिया है! हाँ, आपने बिल्कुल सही सुना— यह उद्घाटन मात्र कंबल के कवर (लिफ़ाफ़े) का किया गया है! लोग जानना चाह रहे हैं कि मंत्री जी कंबल कवर के बाद अब क्या टॉयलेट की मग्गी, ब्रश या तकिए के खोल का भी रिबन काटेंगे?
इतिहास में पहली बार… हम कहां से कहां आ गए
यह घटना इसलिए भी विशेष हो जाती है क्योंकि जिस देश की राजनीति कभी लाल बहादुर शास्त्री के “जय जवान जय किसान” जैसे गंभीर और राष्ट्रव्यापी उद्घोषों से प्रेरित होती थी, वहीं आज देश की प्रमुख प्रशासनिक हस्तियाँ “जय कंबल जय कवर” जैसे प्रतीकात्मक और व्यंग्यपूर्ण उद्घोषों के केंद्र में आ गई हैं। रेल मंत्री के अनुसार, यह पहल “यात्रियों की सुविधा के लिए एक नई शुरुआत” है, लेकिन यह भव्य उद्घाटन देश में प्राथमिकताएँ तय करने के तरीके पर गंभीर सवाल खड़े करता है, खासकर तब जब देश का रेल नेटवर्क सुरक्षा और समयबद्धता जैसी मूलभूत चुनौतियों से जूझ रहा है।
अमृत काल की प्राथमिकताएँ: सुरक्षा नहीं, कवर का रिबन कटवाना
यह घटना उस दौर की प्रतीक बन गई है जिसे सरकार ‘अमृत काल’ कहती है, जहाँ देश के मंत्री रेल नेटवर्क की सुरक्षा, ट्रेनों की समय पर आवाजाही और स्वच्छता जैसी वास्तविक और गंभीर समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, चादर, तकिया और कंबल के कवर के उद्घाटन जैसे प्रतीकात्मक और कम महत्व के आयोजनों में व्यस्त हैं।
सोशल मीडिया पर नागरिक इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं और व्यंग्यात्मक सवाल पूछ रहे हैं— “अगली बार क्या टॉयलेट की मग्गी, ब्रश या तकिए के खोल का भी रिबन काटेंगे?” राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह वही सरकार है जो 100 स्मार्ट सिटी बनाने के अपने प्रमुख वादे को पूरा नहीं कर पाई है, लेकिन अब कंबल के कवर को ‘विकास’ का एक नया और हास्यास्पद प्रतीक बनाने में जुटी है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दिखाती है कि रेल मंत्रालय की प्राथमिकताएँ बदल गई हैं, जहाँ बिस्तर सेवा को भी 78 साल में पहली बार एक भव्य इवेंट बना दिया गया है।
बुलेट ट्रेन से बकवास ट्रेन तक: विकास की बदलती हुई रेलगाड़ी
यह उद्घाटन समारोह भारतीय रेल के विकास मॉडल पर एक तीखा कटाक्ष प्रस्तुत करता है। देश को लंबे समय से बुलेट ट्रेन के चलने का इंतजार है, जिसके वादे वर्षों से किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि देश के ट्रैक पर बुलेट ट्रेन तो नहीं चली, पर बकवास ट्रेन पूरी रफ्तार पर है, जिसका नवीनतम स्टेशन ‘कंबल कवर का उद्घाटन’ है। यह प्रतीकात्मकता बताती है कि रेलवे जैसे विशाल और महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपक्रम में भी प्राथमिकताओं का भ्रम व्याप्त है।
विकास और नवाचार के नाम पर, रेलवे उन चीजों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जिनका उद्घाटन करना निरर्थक और अनावश्यक है। यह स्थिति कई नागरिकों को व्यंग्यपूर्वक कहने पर मजबूर कर रही है कि, “बधाई हो भारत! अब चादर भी आत्मनिर्भर हो गई है।” यह घटना केवल रेलवे का मजाक नहीं उड़ाती, बल्कि यह “मोदी है तो मुमकिन है” जैसे नारों के तहत हो रहे प्रतीकात्मक ‘रेल विकास की नई परिभाषा’ पर भी गहरा प्रश्नचिह्न लगाती है।