नई दिल्ली 11 सितम्बर 2025
पाकिस्तान ने बेचा बलूचिस्तान का खजाना?
पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली ने एक बार फिर उसके सबसे संवेदनशील इलाके बलूचिस्तान को अंतरराष्ट्रीय सौदों के बाजार में ला खड़ा किया है। खबरों के मुताबिक पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ 500 मिलियन डॉलर का बड़ा निवेश करार किया है जिसके तहत बलूचिस्तान में मौजूद Rare Earth Minerals यानी दुर्लभ खनिजों की खोज और खनन पर समझौता हुआ है। यह समझौता पाक आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर की हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान फाइनल हुआ।
अमेरिका के हाथ में आया रणनीतिक ‘खजाना’
इन दुर्लभ खनिजों का महत्व सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि रणनीतिक भी है। Rare Earth Minerals का इस्तेमाल ड्रोन, मिसाइल गाइडेंस सिस्टम, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, बैटरियों और 5G टेक्नोलॉजी तक में होता है। अब तक पाकिस्तान इस खजाने को मुख्य रूप से चीन के साथ साझा करता रहा है, मगर स्थिति यह बन गई कि अब अमेरिका को भी इसमें सीधी हिस्सेदारी मिल गई है।
बलूचिस्तान और स्थानीय विरोध
बलूचिस्तान लंबे समय से पाकिस्तान सरकार के लिए सिरदर्द रहा है। बलूच अलगाववाद और लगातार राजनीतिक असंतोष इस प्रांत को अस्थिर बनाए रखते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक आम जनता का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार उनकी कीमत पर अंतरराष्ट्रीय सौदे कर रही है और स्थानीय लोगों को इन ‘खनिज समझौतों’ से कोई लाभ नहीं मिलता। इससे बलूचिस्तान में नया असंतोष और हिंसा भड़कने की आशंका जताई जा रही है।
चीन की चिंता भी बढ़ी
अब तक बलूचिस्तान चीन-पाक रिश्तों की अहम कड़ी माना जाता था, खासकर CPEC (चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) और ग्वादर पोर्ट प्रोजेक्ट की वजह से। लेकिन मुनीर की अमेरिका यात्रा के बाद अमेरिका का इसमें दखल बढ़ना चीन के लिए भू-रणनीतिक चिंता का विषय बन गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान अपने आर्थिक संकट से निकलने के लिए एक के बाद एक ताकतवर देशों को बलूचिस्तान गिरवी रख रहा है।
पाकिस्तान की ‘गिरवी नीति’ पर सवाल
पाकिस्तानी आर्मी और सरकार अमेरिका से आर्थिक राहत और निवेश की उम्मीद में यह समझौता कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि पाकिस्तान अपने ही संसाधनों का मालिकाना हक विदेशी ताकतों को सौंपकर अंततः खुद को रणनीतिक दबाव में धकेल रहा है।
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