काबुल 1 सितंबर 2025
मौत की दस्तक और तबाही का मंजर
अफगानिस्तान की धरती 31 अगस्त की रात अचानक कांप उठी और देखते ही देखते तबाही का मंजर फैल गया। रिक्टर स्केल पर 6 तीव्रता का यह भूकंप सतह से सिर्फ़ 8–10 किलोमीटर की गहराई में आया था, जिसकी वजह से इसका असर बेहद खतरनाक रहा। रात का सन्नाटा पलभर में चीखों और मातम में बदल गया। कच्चे मकान और मिट्टी की दीवारें चंद सेकंड में धराशायी हो गईं। कूनर और नंगरहार प्रांत सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए, जहां पूरा का पूरा इलाका मलबे में तब्दील हो गया। अब तक 800 से अधिक मौतों की पुष्टि हो चुकी है और आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है, हजारों लोग घायल हैं।
बार-बार तबाह होता अफगानिस्तान
यह पहली बार नहीं है जब अफगानिस्तान प्राकृतिक आपदा के इस भीषण रूप का शिकार हुआ हो। 2023 में आए भूकंप में 4,000 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। वह दर्द अभी तक कम नहीं हुआ था कि एक और त्रासदी ने इस मुल्क को झकझोर दिया। युद्ध, गरीबी और आतंकवाद से जूझते अफगानिस्तान में अब प्रकृति भी मौत की गहरी लकीरें खींच रही है। हर आपदा के बाद लोग उम्मीद बांधते हैं कि अब हालात सुधरेंगे, लेकिन फिर धरती कांपती है और सारी उम्मीदें मलबे में दब जाती हैं।
भारत ने बढ़ाया मदद का हाथ
इस भयावह आपदा के बीच भारत ने इंसानियत का फर्ज निभाते हुए अफगानिस्तान के लिए मदद का हाथ बढ़ाया। भारत सरकार ने 1,000 तंबू और 15 टन खाद्य सामग्री भेजी है। तंबुओं से बेघर परिवारों को अस्थायी छत मिलेगी और भोजन की किल्लत से जूझ रहे लोगों को राहत मिलेगी। भारत का यह कदम न केवल मानवीय संवेदनाओं का प्रतीक है बल्कि पड़ोसी देश के प्रति दोस्ती और रिश्तों की मजबूती का भी संदेश है।
दिल्ली की अफगान बस्ती में पसरा सन्नाटा
इस त्रासदी का असर भारत में बसे अफगान शरणार्थियों पर भी गहराई से पड़ा है। दिल्ली की अफगान बस्ती में भूकंप की खबर मिलते ही सन्नाटा छा गया। संचार व्यवस्था ठप होने के कारण वे अपने परिजनों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं। किसी को नहीं पता कि उनका परिवार जिंदा है या मलबे में दबा हुआ। बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं के चेहरों पर चिंता और बेचैनी साफ झलक रही है। यह सन्नाटा सिर्फ़ खामोशी नहीं, बल्कि बेबसी की चीख है।
दर्द और बेबसी की तस्वीर
मलबे में दबे लोगों को निकालने का सिलसिला जारी है। हर बार जब ईंट-पत्थरों के ढेर से कोई शव बाहर निकलता है, तो मातम और चीख-पुकार की लहर पूरे गांव में दौड़ जाती है। महिलाएं अपने गुमशुदा बच्चों को ढूंढती फिर रही हैं, तो बच्चे अपने माता-पिता को पुकार रहे हैं। अस्पतालों में घायलों की भीड़ लगी हुई है, लेकिन दवाइयां और साधन नाकाफी हैं। हजारों लोग खुले आसमान के नीचे बैठने को मजबूर हैं, इस डर के साथ कि कहीं धरती फिर से न हिल उठे।
इंसानियत के लिए चुनौती
यह त्रासदी केवल अफगानिस्तान का दर्द नहीं है, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक चेतावनी है। हर आंकड़े के पीछे एक अधूरी कहानी है—किसी बच्चे का बचपन, किसी मां की ममता, किसी पिता की जिम्मेदारी और किसी बूढ़े की आखिरी उम्मीद। यह केवल मौत का आंकड़ा नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगियों की वे करुण कहानियां हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। सवाल अब यह है कि क्या दुनिया अफगानिस्तान की इस पीड़ा को समझेगी और उसे संभलने में मदद करेगी?