नई दिल्ली 21 अक्टूबर 2025
स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार और ‘मेक इन इंडिया’ के सपनों के बीच छिपा एक ऐसा कारपोरेट-राजनीतिक गठजोड़ है, जो न सिर्फ उद्योग-नीति बल्कि लोकतंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है। इस रिपोर्ट में हम Adani Green Energy Ltd (एडानी ग्रीन) और Azure Power Global Ltd (एज़्योर पावर) के संदर्भ में सामने आए अमेरिकी अभियोजन (भारत-केंद्रित) के आरोपों का विश्लेषण करेंगे — जिसमें कहा गया है कि अरबों रुपये के सौर सौदे को सुरक्षित करने के लिए सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दी गई, और निवेशकों को गुमराह किया गया।
प्रमुख तथ्य एवं साक्ष्य
- आरंभिक समझौते एवं समस्या
दिसंबर 2019 से जुलाई 2020 के बीच Solar Energy Corporation of India (SECI) ने 12 GW सोलर पावर के लिये समझौते दिए: एडानी ग्रीन (8 GW) तथा एज़्योर पावर (4 GW)।
हालांकि, 2020 में तय ऊँची दरों और खरीदारों की कमी के कारण इन योजनाओं को राज्य-डिस्कॉम्स द्वारा स्वीकार करना मुश्किल हुआ।
अमेरिकी अभियोगदाताओं का दावा है कि इस बाधा को पार करने के लिए एडानी पक्ष ने “सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने, व वादे करने” की साजिश रची।
- रिश्वत का नेटवर्क
अगस्त–नवंबर 2021 के बीच गौतम अडानी ने आंध्र प्रदेश के एक शीर्ष अधिकारी से कई बैठकें कीं। इस दौरान लगभग ₹1,750 करोड़ (~US$200 मिलियन) की रिश्वत देने का प्रस्ताव किया गया, ताकि राज्य की डिस्कॉम्स SECI के साथ 7 GW की पावर खरीद समझौता करें।
दस्तावेज़ बताते हैं कि जुलाई 2021 से फरवरी 2022 के बीच ओडिशा, तमिल नाडु, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर और आंध्र प्रदेश में SECI ने पावर सप्लाई समझौते (Power Supply Agreements) कर लिए, जिनके बाद पावर पर्चेज़ समझौते (PPAs) किए गए — इस अवधि में कथित रूप से रिश्वत की कार्रवाई हुई।
अमेरिकी U.S. Securities and Exchange Commission (SEC) ने अभियोग दर्ज करते हुए कहा कि एडानी ग्रीन ने 2021 में अमेरिकी निवेशकों से $750 मिलियन जुटाए, जिसमें से ~$175 मिलियन संयुक्त राज्य अमेरिका से था, और उस समय उन्होंने “हमारी एंटी-ब्राइबरी नीति” का दावा किया था — जबकि कथित किया गया है कि वे रिश्वत प्रक्रिया में शामिल थे।
संदिग्ध रिकॉर्ड बताते हैं कि एडानी ग्रीन के वरिष्ठ अधिकारी और एज़्योर पावर के कर्मचारी “ब्राइब नोट्स” मोबाइल फोन और एक्सेल शीट पर रख रहे थे — जिसमें यह लिखा था कि कौन-कौन से अधिकारियों को कितना देना है, कोडनाम “मिस्टर ए”, “न्यूमेरो वन” इत्यादि इस्तेमाल हुआ।
- सौदों का पुनर्वितरण एवं लाभांश
मार्च 2024 में SECI ने आधिकारिक रूप से 2.3 GW की खरीद-डील्स एज़्योर पावर से हटाकर एडानी ग्रीन के नाम कर दी थीं, जिसे अमेरिकी अभियोगदाताओं ने रिश्वत लेन-देने की प्रक्रिया का हिस्सा माना है।
अमेरिकी अभियोजन यह भी दावा करते हैं कि इन सौदों के परिणामस्वरूप एडानी ग्रीन को “अत्यधिक लाभदायक दरों पर पावर बेचने” की सुविधा मिली — जो सामान्य सौर बाजार दरों की तुलना में बहुत ऊँची थीं।
- बहु-स्तरीय जवाबदेही और निष्कर्ष
SECI ने कथित रूप से अपने नियम-प्रक्रिया (Rule Book) सार्वजनिक नहीं किए और एडानी समूह के साथ समझौते में पारदर्शिता की कमी दिखी है।
अमेरिकी अभियोजन में कहा गया है कि एडानी ग्रीन ने निवेश दौर में यह झूठा दावा किया कि उन्हें कोई रिश्वत देना नहीं पड़ी, जबकि असल में ऐसा हुआ था — यह निवेशकों को गुमराह करना माना गया है।
यह मामला सिर्फ़ कारोबारी विवाद नहीं — नीति-निर्माण, सार्वजनिक संसाधन और शासन-प्रक्रिया में गहन विफलता का द्योतक है। निम्नलिखित बिंदु विशेष रूप से चिंता-जनक हैं:
सरकारी एजेंसी SECI द्वारा बड़ी मात्रा में सौर सौदे देना जहाँ खरीदारों का स्थायित्व नहीं था — यह दर्शाता है कि विकास नीति और वित्तीय व्यवहार में संतुलन नहीं था।
जब बाजार प्रतिस्पर्धा और दरें ठीक नहीं थीं, तब रिश्वत-मार्ग अपनाया जाना यह संकेत है कि विजेता कंपनियों को सरकारी सौदों को सुनिश्चित करने का माध्यम मिला।
निवेशकों के सामने विज्ञापित “एंटी-ब्राइबरी” राजनीति जबकि आंतरिक रूप से अरेंजमेंट चल रहा — यह कॉर्पोरेट शासन (corporate governance) और निवेश संरक्षण की दृष्टि से गंभीर त्रुटि है।
राज्य-डिस्कॉम्स और सरकारें, पंचायत से लेकर केन्द्रीय स्तर तक, नीतिगत दृष्टि से सक्रिय नहीं दिखीं; इसके परिणामस्वरूप न सिर्फ़ सौर विस्तार धीमा हुआ बल्कि सार्वजनिक संसाधनों का जोखिम बढ़ा।
यह प्रमाणित हो चुका है कि बड़े उद्योग-सत्ता गठजोड़ में पारदर्शिता की कमी और जिम्मेदारी की अनुपस्थिति कितनी घातक हो सकती है। इस क्रम में निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:
- SECI तथा राज्य-डिस्कॉम्स को अपनी निर्णय-प्रक्रियाओं और सौदेबाजी व्यवहार को सार्वजनिक करना चाहिए — टेंडर से लेकर समझौते तक की संपूर्ण श्रृंखला को।
- कंपनियों को किन्हीं भी सार्वजनिक सौदों में भाग लेने से पहले तीसरे-पक्ष ऑडिट और एंटी-ब्राइबरी प्रमाणपत्र देना अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- निवेशकों को सूचित करना चाहिए कि “दृढ़ एंटी-ब्राइबरी रख-रखाव” का दावा केवल विज्ञापन नहीं, बल्कि प्रमाणित सत्यापन-प्रक्रिया द्वारा समर्थित हो।
- संसद में एक जॉइंट-पालीतरी कमेटी (JPC) गठित हो, जिसका दायित्व हो इन बड़े सार्वजनिक-नीति-सौदों की गहरी पड़ताल करना — न सिर्फ कॉरपोरेट अफ़ेयर्स बल्कि ऊर्जा नीति और सार्वजनिक हित की दिशा से।
- नागरिक समाज, मीडिया एवं शुद्ध निवेशकों को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए — जैसे खुली सूचना-मुक्ति कानून (RTI) का उपयोग कर, सुचीबद्ध सौदों-व लेन-देनों को सार्वजनिक रूप से उजागर करना।
इस प्रकार, यह मामला सिर्फ़ एक ‘सौर घोटाला’ नहीं — यह भारत के ऊर्जा-उद्योग-नीति मॉडल, सार्वजनिक जवाबदेही और लोकतंत्र की जाँच का मामला है। अगर हम इस तरह की घटनाओं को समय रहते नहीं सुलझाते, तो ‘स्वच्छ ऊर्जा’ का सपना सिर्फ़ स्लोगन रह जाएगा — और असल में, सरकार-उद्योग-बड़ी कंपनियों का गठजोड़ देश के संसाधनों को नियंत्रित करने का मंच बन जाएगा।
अगर चाहें, तो मैं इस रिपोर्ट के अनुलग्नक तैयार कर सकता हूँ — जिसमें मुख्य अभियोजन दस्तावेज़ों से उद्धरण, तारीख-संख्या-नाम, और संबंधित राज्य-डिस्कॉम सौदों की सूची शामिल होगी।