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अभिनेता विजय की पार्टी TVK ने मांगी स्वतंत्र जांच, सरकार की लापरवाही पर सवाल

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चेन्नई 8 अक्टूबर 2025

तमिलनाडु के करूर जिले में 27 सितंबर को हुई दर्दनाक भगदड़ की घटना अब न्याय की दहलीज तक पहुंच चुकी है। इस हादसे में कई निर्दोष लोगों की जानें गईं और दर्जनों घायल हुए। अब अभिनेता से नेता बने विजय की पार्टी TVK ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है, यह मांग करते हुए कि इस पूरे मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच किसी स्वायत्त एजेंसी या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कराई जाए। पार्टी का कहना है कि करूर की यह त्रासदी सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि प्रशासनिक नाकामी और सरकारी तंत्र की बेरुख़ी का भयावह उदाहरण है।

यह घटना उस वक्त हुई जब विजय के जन्मदिन के मौके पर एक वितरण कार्यक्रम आयोजित किया गया था। हजारों की भीड़ कार्यक्रम स्थल पर जमा हुई, लेकिन सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई थी। गवाहों के मुताबिक़, जैसे ही कार्यक्रम शुरू हुआ, अव्यवस्था फैल गई और भगदड़ मच गई। महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग कुचले गए — एक-एक चीख में इंसानियत की असफलता झलक रही थी। मौके पर न तो पर्याप्त पुलिस बल था और न ही कोई तत्काल मेडिकल सुविधा। प्रशासनिक तैयारियों की पोल वहीं खुल गई, जहां लोगों की जानें दांव पर थीं।

TVK ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में तमिलनाडु सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने कहा है कि सरकार ने सिर्फ औपचारिक मुआवज़े का ऐलान किया, लेकिन असली जिम्मेदारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। याचिका में यह भी कहा गया है कि “यह घटना दर्शाती है कि जब जनता का जीवन सरकारी योजनाओं की अव्यवस्था में कुचला जाता है, तब जवाबदेही का कोई सिस्टम काम नहीं करता।” TVK ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि मृतकों के परिवारों को सम्मानजनक मुआवजा दिलाया जाए और भविष्य में ऐसे आयोजनों के लिए कड़े दिशानिर्देश तय किए जाएं।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई स्वीकार की, तो यह मामला तमिलनाडु ही नहीं बल्कि पूरे देश में भीड़ प्रबंधन और सरकारी जवाबदेही के लिए एक मिसाल बन सकता है। अदालत राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट तलब कर सकती है कि आखिर इतनी बड़ी त्रासदी के बावजूद किसी उच्च अधिकारी को क्यों नहीं जवाबदेह ठहराया गया। यह भी जांच का विषय है कि क्या यह महज़ लापरवाही थी या फिर राजनीतिक दबाव में सुरक्षा प्रोटोकॉल को नज़रअंदाज़ किया गया।

अभिनेता विजय ने इस घटना के बाद पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और संवेदना जताई। उन्होंने कहा कि “इस त्रासदी ने मुझे भीतर से तोड़ दिया है। मैं तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक हर पीड़ित को न्याय नहीं मिलता।” विजय ने राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसी घटनाओं को “दुर्भाग्यपूर्ण हादसा” कहकर टाला नहीं जा सकता। जनता की सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए, न कि किसी आयोजन की चमक-दमक।

अब सवाल यह है कि करूर की इस त्रासदी का अंत कहां होगा? क्या यह एक और कागज़ी जांच में दफन हो जाएगी, या फिर इस बार सुप्रीम कोर्ट एक मिसाल कायम करेगा कि जनता की जान से खेलने वालों को बख्शा नहीं जाएगा? करूर की यह घटना सिर्फ तमिलनाडु का नहीं, पूरे देश का आईना है — जो दिखाता है कि जब सत्ता की चुप्पी और प्रशासन की लापरवाही मिलती है, तो मौतें भी “सिस्टम” की फाइलों में गुम हो जाती हैं। अभिनेता विजय की यह कानूनी पहल अब उस न्यायिक लड़ाई की शुरुआत है, जो यह तय करेगी कि भारत में राजनीति बड़ी है या इंसान की जान।

 

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