नई दिल्ली 11 सितम्बर 2025
आरोप का विस्फोट: “हर सांसद को 15-20 करोड़ रुपये दिए गए”
तृणमूल कांग्रेस (TMC) के राष्ट्रीय महासचिव और सांसद अभिषेक बनर्जी ने भाजपा पर एक ऐसा आरोप लगाया है जिसने भारतीय लोकतंत्र की नींव को हिला दिया है। बनर्जी का कहना है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने विपक्षी सांसदों को खरीदने के लिए भारी-भरकम रकम बांटी। उनका दावा है कि भाजपा ने प्रत्येक सांसद को 15 से 20 करोड़ रुपये तक की पेशकश की ताकि वे विपक्षी उम्मीदवार के बजाय भाजपा समर्थित उम्मीदवार को वोट दें।
वोटिंग का गणित और विपक्ष की शंका
अभिषेक बनर्जी ने साफ किया कि TMC के सभी 41 सांसदों ने विपक्षी उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी के पक्ष में मतदान किया। लेकिन नतीजे में विपक्ष का गणित पूरी तरह बैठ नहीं पाया। विपक्षी खेमे को उम्मीद थी कि संयुक्त वोटों से नतीजा संतुलित होगा, लेकिन अंतिम परिणाम ने उन्हें चौंका दिया। बनर्जी ने आरोप लगाया कि क्रॉस-वोटिंग और “अमान्य घोषित” किए गए वोटों के पीछे भाजपा की साजिश है।
BJP का पलटवार: “गुप्त मतदान में खरीद-फरोख्त असंभव”
भाजपा ने इन आरोपों को बेबुनियाद और निराधार बताया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि उपराष्ट्रपति चुनाव गुप्त मतदान के जरिए होता है, जिसमें यह तय करना मुश्किल है कि किस सांसद ने किस उम्मीदवार को वोट दिया। भाजपा का तर्क है कि विपक्ष अपनी हार से बौखलाया हुआ है और अब बेबुनियाद आरोपों का सहारा लेकर जनता को गुमराह करना चाहता है।
लोकतंत्र में विश्वास का संकट
यह विवाद केवल एक चुनावी हार-जीत का मामला नहीं है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। अगर सांसद करोड़ों के बदले वोट बदल सकते हैं तो यह जनता के विश्वास के साथ सीधा विश्वासघात है। जिस तरह से अभिषेक बनर्जी ने “जनता बिक नहीं सकती” का नारा दिया, वह इस बात को दर्शाता है कि विपक्ष अब इस मुद्दे को जनआंदोलन का रूप देने की तैयारी में है।
विपक्षी एकता और 2026 का चुनावी मुद्दा
2026 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों की आहट पहले से सुनाई दे रही है। ऐसे में भाजपा पर लगा यह आरोप विपक्षी दलों को एकजुट करने का हथियार बन सकता है। कांग्रेस, TMC, सपा, राजद और अन्य दल इसे “वोट चोरी” और “जनादेश की खरीद-फरोख्त” के मुद्दे के तौर पर जनता के बीच ले जाएंगे। INDIA ब्लॉक पहले ही चुनाव आयोग और सरकारी संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है, और यह विवाद उनकी मुहिम को और तेज़ कर सकता है।
जांच की मांग और संभावित कानूनी जंग
अभिषेक बनर्जी और विपक्ष की ओर से यह भी मांग उठ रही है कि सुप्रीम कोर्ट या चुनाव आयोग को इस मामले में स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। अगर सांसदों की खरीद-फरोख्त के सबूत सामने आते हैं तो यह देश की संसदीय राजनीति में सबसे बड़ा घोटाला साबित हो सकता है। विपक्ष की रणनीति है कि इस मुद्दे को संसद से लेकर सड़क तक ज़ोर-शोर से उठाया जाए ताकि भाजपा पर दबाव बनाया जा सके।
लोकतंत्र का असली इम्तिहान
अभिषेक बनर्जी का यह आरोप सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा पर सीधा हमला है। अगर इन आरोपों में सच्चाई है तो यह चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न है। वहीं अगर यह केवल राजनीतिक बयानबाज़ी है, तो विपक्ष की साख भी दांव पर है। किसी भी स्थिति में यह विवाद आने वाले महीनों में भारतीय राजनीति का सबसे गर्म मुद्दा बनने जा रहा है।