नई दिल्ली, 13 अक्टूबर 2025
देश के लोकतंत्र में भरोसे और सुधार की एक नई मिसाल सामने आई है। जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम, जो पिछले पांच वर्षों से जेल में बंद हैं, ने अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की इच्छा जताई है। उन्होंने दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट में अंतरिम जमानत की अर्जी दी है ताकि वे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में हिस्सा ले सकें।
शरजील इमाम पर 2020 के CAA–NRC विरोध प्रदर्शनों के दौरान तथाकथित देशद्रोह और भड़काऊ भाषण देने के आरोप हैं। लेकिन अपनी याचिका में उन्होंने कहा है कि वे लोकतंत्र की शक्ति में विश्वास करते हैं और जनता के बीच जाकर शांति, शिक्षा और विकास की राजनीति करना चाहते हैं।
अदालत में दायर आवेदन में शरजील ने कहा, “मेरा उद्देश्य किसी से टकराव नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ बनना है। लोकतंत्र में हर व्यक्ति को सुधार का अवसर मिलना चाहिए, और मैं उसी रास्ते पर चलना चाहता हूं।”
उनके वकीलों ने दलील दी कि चुनाव लड़ना हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, और यदि कोई व्यक्ति सुधार की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है, तो न्यायालय को उसके लोकतांत्रिक अधिकार की रक्षा करनी चाहिए।
जानकारी के अनुसार, शरजील बिहार के जहानाबाद के रहने वाले हैं और उन्होंने जेएनयू से आधुनिक इतिहास में शोध (PhD) किया है। उनका कहना है कि वे बिहार की जनता के बीच शिक्षा और सामाजिक सौहार्द के मुद्दों पर काम करना चाहते हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षक इस कदम को एक सकारात्मक संकेत मान रहे हैं। उनका कहना है कि यह मामला केवल एक व्यक्ति की जमानत याचिका नहीं, बल्कि “लोकतंत्र में पुनर्वास और भागीदारी के अधिकार” की मिसाल है।
अगर अदालत इस पर सकारात्मक फैसला देती है, तो यह देश के लोकतंत्र की परिपक्वता और व्यापकता को भी दिखाएगा।
अभी अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा है और अगले सप्ताह इस पर सुनवाई होगी। पर एक बात साफ है — जेल की दीवारों के भीतर से भी अगर कोई व्यक्ति लोकतंत्र में विश्वास और बदलाव की राजनीति की बात कर रहा है, तो यह भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की सबसे बड़ी ताकत है।