देश की लोकतांत्रिक आत्मा पर अब खुला हमला हो चुका है। कांग्रेस की महिला इकाई ने सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयोग के बीच सीधा गठजोड़ बन चुका है ताकि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जनता के मताधिकार पर “वोटों की डकैती” की जा सके। महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अल्का लांबा ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि “यह कोई प्रशासनिक गलती नहीं, सुनियोजित राजनीतिक साजिश है — ताकि बिहार की जनता की आवाज़ को कमजोर किया जा सके और चुनावी परिणामों को पहले से ही नियंत्रित किया जा सके।”
लांबा ने कहा कि बिहार की करीब 23 लाख महिलाओं और 15 लाख पुरुषों के नाम चुनाव आयोग की नई मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं। यानी, करीब 38 लाख नागरिकों को बिना सूचना, बिना जांच और बिना किसी प्रक्रिया के लोकतंत्र से बाहर कर दिया गया है। यह संख्या किसी जिले या ब्लॉक की नहीं, बल्कि पूरे बिहार की महिला जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है। यह वही महिलाएं हैं जिन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में मतदान किया था, वही पुरुष जिनके वोट से सांसद चुने गए — अब अचानक यह सब “फर्जी” कैसे हो गए?
“वोट चोरी” का खेल — बिहार बना प्रयोगशाला
महिला कांग्रेस ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी सरकार और चुनाव आयोग ने मिलकर बिहार को एक चुनावी प्रयोगशाला बना दिया है। यह खेल सिर्फ नाम काटने का नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक अपराध है, जिसका उद्देश्य विपक्षी मतों को खत्म करना और महिला मतदाताओं को दरकिनार करना है।
लांबा ने कहा कि बिहार में SIR (Special Institutional Review) के नाम पर यह गड़बड़ी की गई — जिससे लाखों नाम एक ही झटके में हटा दिए गए। चुनाव आयोग ने दावा किया था कि इस बार अंतिम मतदाता सूची पूरी तरह “सुधारी गई” है, लेकिन अब वही सूची फर्जीवाड़े का सबसे बड़ा सबूत बन गई है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में लांबा ने कहा
नरेंद्र मोदी बिहार में एक तरफ महिलाओं के बैंक खातों में पैसे डालकर उन्हें ‘लुभाने’ का खेल खेल रहे हैं, और दूसरी तरफ उन्हीं महिलाओं के वोट काटकर उनके संवैधानिक अधिकार की हत्या कर रहे हैं। यह दोहरा चरित्र, यह दोहरी चाल अब जनता समझ चुकी है।”
गड़बड़ियों के चौंकाने वाले उदाहरण
अल्का लांबा ने अखबारों में प्रकाशित रिपोर्टों और स्थानीय जांचों का हवाला देते हुए कहा कि बिहार में अब मतदाता सूची एक मज़ाक बन चुकी है।
- जमुई जिले में एक ही घर के पते पर 247 मतदाताओं के नाम दर्ज हैं।
- मुजफ्फरपुर में एक व्यक्ति का नाम तीन-तीन जगह पर वोटर लिस्ट में मौजूद है।
- सासाराम, कटिहार, पूर्णिया, और बेगूसराय जैसे जिलों में मृत व्यक्तियों के नाम आज भी सूची में हैं, जबकि जीवित नागरिकों को “अवैध” बता कर हटा दिया गया।
- गोपालगंज, सारण, भोजपुर, समस्तीपुर और पूर्णिया — इन छह जिलों में महिला मतदाताओं के नाम सबसे अधिक हटाए गए हैं। ये वही जिले हैं जहां 2020 के चुनावों में INDIA गठबंधन ने करीबी अंतर से जीत दर्ज की थी।
यह साफ है कि जिस जगह विपक्ष ने मजबूती दिखाई, वहां से मतदाताओं को हटाया गया। यानी ये “सुधार” नहीं बल्कि एक सटीक राजनीतिक सफाई अभियान है।
“जब यही महिलाएं वोट डालती थीं, तब फर्जी नहीं थीं!”
अल्का लांबा का सवाल : “जब यही महिलाएं 2019 और 2020 में वोट डाल रही थीं, तब वे वैध थीं, उनके वोटों से सांसद और विधायक बने, सरकारें बनीं। अब अचानक वे फर्जी कैसे हो गईं? क्या उनका नाम काटना सिर्फ इसलिए है क्योंकि उन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिया?”
उन्होंने कहा कि यह मामला अब सिर्फ बिहार का नहीं रहा — यह भारत के लोकतंत्र पर हमला है। अगर आज बिहार की महिलाओं और पुरुषों का वोट छीना जा सकता है, तो कल किसी भी राज्य के नागरिकों का नंबर लग सकता है। यह मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन है, संविधान की आत्मा पर चोट है।
कांग्रेस का अभियान — “वोट चोरी नहीं चलेगी”
महिला कांग्रेस ने घोषणा की है कि वह पूरे देश में “वोट चोरी नहीं चलेगी” नाम से एक विशाल हस्ताक्षर अभियान शुरू करेगी। इसमें 5 करोड़ नागरिकों से हस्ताक्षर लेकर राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को सौंपे जाएंगे। कांग्रेस ने यह भी कहा है कि अगर इस साजिश पर तुरंत रोक नहीं लगी, तो वे अदालत और सड़कों दोनों पर इस “मतदाता डकैती” के खिलाफ जनआंदोलन छेड़ेंगे।
लांबा ने चेतावनी दी:
“चुनाव आयोग नरेंद्र मोदी और अमित शाह के इशारे पर काम कर रहा है। लोकतंत्र का प्रहरी अब सत्ता का सेवक बन गया है। पर हम खामोश नहीं रहेंगे — बिहार में वोट चोरी नहीं होने देंगे।”
जनता की अदालत में फैसला तय
बिहार की जनता यह सब देख रही है। जमुई से लेकर मुजफ्फरपुर तक लोग हैरान हैं कि उनके घरों से परिवार के वोट गायब हैं, कई इलाकों में पूरा मोहल्ला सूची से बाहर है। कांग्रेस का दावा है कि यह सब सिर्फ किसी खास पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है।
जनता के बीच अब यह सवाल गूंज रहा है — अगर आज चुनाव आयोग और सरकार मिलकर मतदाता सूची को हथियार बना सकते हैं, तो फिर चुनाव की निष्पक्षता कहां बची?
बिहार के लोगों में अब एक ही नारा फैल रहा है —“वोट चोरी नहीं चलेगी, अधिकार छीना तो सड़कों पर लड़ाई होगी। राज्यव्यापी सत्याग्रह होगा।”