बिहार की मतदाता सूची पर एक बार फिर गहरी राजनीतिक बहस छिड़ गई है। कांग्रेस पार्टी की विशेष समिति EAGLE (Empowered Action Group of Leaders and Experts) ने चुनाव आयोग (ECI) पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है कि बिहार की वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर हेराफेरी, मनमानी और पारदर्शिता की कमी देखी गई है। कांग्रेस का कहना है कि जिस तरह से “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR)” के नाम पर लाखों मतदाताओं के नाम गायब किए गए हैं, उससे लोकतंत्र की बुनियाद पर सीधा प्रहार हुआ है।
EAGLE समिति, जिसमें अजय माकन, दिग्विजय सिंह, अभिषेक मनु सिंघवी, प्रवीण चक्रवर्ती, पवन खेड़ा, गुरदीप सिंह सप्पल और नितिन राऊत जैसे वरिष्ठ नेता शामिल हैं, ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में कहा कि बिहार की वोटर लिस्ट में मौजूद गड़बड़ियों के पीछे या तो “गंभीर लापरवाही” है या “जानबूझकर की गई राजनीतिक हेराफेरी।”
कांग्रेस ने सबसे पहले यह बताया कि लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार में 7.72 करोड़ मतदाता पंजीकृत थे, लेकिन विधानसभा चुनाव के लिए जारी की गई नई सूची में यह संख्या घटकर 7.42 करोड़ रह गई है। इसका सीधा अर्थ है कि 30 लाख मतदाता अचानक लिस्ट से गायब हो गए हैं। पार्टी ने सवाल उठाया है कि आखिर ये 30 लाख लोग कौन हैं, और क्या उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदान किया था? अगर हाँ, तो उन्हें इस बार सूची से हटाने का क्या आधार था? कांग्रेस का यह भी कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर मतदाताओं का लुप्त होना कोई साधारण त्रुटि नहीं, बल्कि यह सुनियोजित हटाना प्रतीत होता है।
दूसरा बड़ा सवाल कांग्रेस ने उठाया है कि चुनाव आयोग ने 67.3 लाख मतदाताओं के नाम डिलीट कर दिए हैं। यह संख्या बिहार के कुल मतदाताओं का लगभग दसवां हिस्सा है। और इनमें से भी एक-तिहाई डिलीशन केवल 15 विधानसभा क्षेत्रों में हुए हैं। इसका मतलब यह है कि कुछ क्षेत्रों में विशेष रूप से मतदाताओं के नाम हटाने का खेल चला है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह एक सुनियोजित रणनीति है, जिसमें खास वर्गों, समुदायों या इलाकों को चुनाव से बाहर करने की कोशिश की जा रही है। EAGLE ने कहा कि चुनाव आयोग ने न तो डिलीट किए गए मतदाताओं की अंतिम सूची जारी की है, न ही बूथ और श्रेणीवार विवरण सार्वजनिक किया है। इससे यह संदेह और गहरा हो गया है कि कुछ क्षेत्रों को जानबूझकर प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है।
तीसरा बड़ा मुद्दा कांग्रेस ने वोटर जोड़ने की प्रक्रिया में उठाया है। चुनाव आयोग का दावा है कि बिहार में 21.53 लाख नए मतदाता जोड़े गए हैं, लेकिन रिकॉर्ड के अनुसार Form 6 केवल 16.93 लाख लोगों के ही जमा हुए हैं। यानी 4.6 लाख मतदाताओं को बिना किसी औपचारिक फॉर्म या प्रक्रिया के जोड़ दिया गया। कांग्रेस ने पूछा कि ये मतदाता कौन हैं? क्या ये बिना जांच के जोड़े गए फर्जी वोटर हैं? क्या इनकी पहचान और पते की पुष्टि हुई है? पार्टी ने इसे मतदाता सूची के साथ “प्रणालीगत छेड़छाड़” बताया है और कहा है कि जब तक इस विसंगति की जांच नहीं होती, तब तक पूरी वोटर लिस्ट की विश्वसनीयता पर सवाल रहेगा।
चौथा और सबसे गंभीर सवाल कांग्रेस ने पारदर्शिता पर उठाया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट को मशीन-पठनीय (machine-readable) फॉर्मेट में जारी नहीं किया। बल्कि इसे 90,000 अलग-अलग इमेज फ़ाइलों में जारी किया गया, ताकि कोई भी संगठन या नागरिक इस पर विश्लेषण न कर सके। कांग्रेस ने कहा कि यह चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर गहरा प्रश्नचिह्न है। अगर सब कुछ सही है, तो वोटर लिस्ट को खुले रूप में उपलब्ध कराने में दिक्कत क्या है? EAGLE ने कहा कि इस तरह का डेटा फॉर्मेट देना केवल जांच से बचने का तरीका है। उन्होंने पूछा — “ECI आखिर किससे डर रहा है? क्या उसे अपने ही बनाए रिकॉर्ड पर भरोसा नहीं?”
पांचवां और अंतिम सवाल कांग्रेस ने डुप्लीकेट वोटरों को लेकर उठाया है। EAGLE की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की मतदाता सूची में 5 लाख से अधिक डुप्लीकेट नाम पाए गए हैं — यानी एक ही नाम, उम्र, पता या रिश्तेदारी वाले कई वोटर। कांग्रेस ने पूछा कि जब विशेष पुनरीक्षण (SIR) का उद्देश्य वोटर लिस्ट को साफ़ और सटीक बनाना था, तो फिर इतने बड़े पैमाने पर डुप्लीकेट नाम कैसे रह गए? कांग्रेस ने कहा कि अगर ये डुप्लीकेट वोटर मतदान करते हैं, तो चुनाव परिणामों की निष्पक्षता पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। पार्टी ने मांग की है कि चुनाव आयोग तुरंत इन डुप्लीकेट नामों की जांच करे और यह स्पष्ट करे कि भविष्य में इस तरह की गलतियों से बचाव कैसे होगा।
कांग्रेस ने इस पूरे मुद्दे को लोकतंत्र की विश्वसनीयता से जोड़ते हुए कहा है कि मतदाता सूची की पारदर्शिता लोकतांत्रिक व्यवस्था की आत्मा है। अगर वोटर लिस्ट ही संदिग्ध है, तो पूरा चुनावी तंत्र अविश्वसनीय हो जाता है। EAGLE ने चुनाव आयोग को चेतावनी दी है कि नामांकन की अंतिम तारीख से पहले मतदाता सूची को फ्रीज़ (freeze) किया जाए, ताकि उसके बाद कोई नया डेटा जोड़ा या बदला न जा सके। साथ ही, किसी भी “Supplementary” या “Additional” सूची को चुनाव प्रक्रिया में शामिल न किया जाए।
राहुल गांधी ने भी इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यह मामला केवल बिहार का नहीं बल्कि भारत के लोकतंत्र की बुनियाद का है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस बार-बार चेतावनी देती रही है कि वोटर लिस्ट की हेराफेरी चुनावी नतीजों को प्रभावित करने का एक नया और खतरनाक हथियार बन चुकी है। राहुल गांधी ने कहा, “वोटर लिस्ट की पारदर्शिता लोकतंत्र की आत्मा है। जब वोटर लिस्ट में ही झोल होगा, तो परिणाम कैसे ईमानदार होंगे?”
कांग्रेस पार्टी ने यह भी कहा है कि चुनाव आयोग को इन सवालों के तत्काल उत्तर देने चाहिए, क्योंकि यह केवल किसी पार्टी का मुद्दा नहीं, बल्कि जनता के मताधिकार का प्रश्न है। बिहार में अगर 30 लाख मतदाता गायब हैं, 67 लाख नाम डिलीट हुए हैं, लाखों फॉर्म गायब हैं और लाखों डुप्लीकेट नाम मौजूद हैं, तो यह किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए गहरी चिंता की बात है।
EAGLE की इस रिपोर्ट ने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया है। एक तरफ बीजेपी और जेडीयू इसे “राजनीतिक आरोप” कहकर खारिज कर रही हैं, वहीं विपक्षी दलों का कहना है कि कांग्रेस ने जो मुद्दा उठाया है, वह लोकतंत्र की रक्षा से जुड़ा हुआ है। आने वाले दिनों में यह मामला चुनाव आयोग के लिए बड़ी परीक्षा साबित हो सकता है, क्योंकि सवाल अब केवल मतदाता सूची का नहीं बल्कि जनता के विश्वास का है। अब बिहार में सवाल सिर्फ इतना है — वोट देंगे कौन, और गिने जाएंगे कौन? कांग्रेस का सीधा संदेश: “लोकतंत्र बचाना है तो वोटर लिस्ट को पारदर्शी बनाना होगा।”