पटना 9 अक्टूबर 2025
बिहार की राजनीति में नई करवट — और इस बार मोर्चा संभाला है चुनाव रणनीतिकार से जननेता बने प्रशांत किशोर (PK) ने। जनसुराज पार्टी ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अपनी पहली सूची जारी कर दी है, जिसमें 51 उम्मीदवारों के नाम शामिल हैं। खास बात यह है कि इस सूची में मुस्लिम समुदाय के 8 नेताओं को भी टिकट दिया गया है, जो बिहार के सामाजिक संतुलन और जन प्रतिनिधित्व की दृष्टि से एक बड़ा और प्रतीकात्मक कदम माना जा रहा है।
यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब बिहार का राजनीतिक माहौल पूरी तरह गरम है — नीतीश कुमार की सत्ता पर जनता का मोहभंग, तेजस्वी यादव का वादों का नया दौर, और बीजेपी की लगातार कोशिश कि वो ‘डबल इंजन’ का नैरेटिव फिर से जिंदा कर सके। लेकिन इस भीड़भाड़ के बीच प्रशांत किशोर का यह कदम यह दिखा रहा है कि वह जनता के एजेंडे को राजनीति के केंद्र में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
जनसुराज का जनआधारित प्रयोग: जनता के बीच से नेता, जनता के बीच के मुद्दे
प्रशांत किशोर ने कहा कि यह सूची केवल नामों की घोषणा नहीं, बल्कि एक वैचारिक संकल्प है — जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता के बीच से निकली राजनीति का। उन्होंने स्पष्ट किया कि जनसुराज पार्टी का मकसद पारंपरिक जातीय समीकरण या सत्ता की राजनीति नहीं, बल्कि “ग्राम स्तर से लेकर नीति स्तर तक जनता की भागीदारी” सुनिश्चित करना है।
लिस्ट में शामिल 51 उम्मीदवारों में किसान नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक, चिकित्सक और स्थानीय स्तर के जनसेवक शामिल हैं। पार्टी ने दावा किया है कि सभी उम्मीदवारों का चयन “ग्राम पंचायत संवाद” और “जन सुझाव अभियान” के माध्यम से किया गया है। इस प्रक्रिया में 10,000 से अधिक गांवों से राय ली गई और 2 लाख से अधिक लोगों की भागीदारी दर्ज की गई।
8 मुस्लिम चेहरे — जनसुराज का समावेशी संदेश
जनसुराज पार्टी की लिस्ट में 8 मुस्लिम उम्मीदवारों को जगह देना एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति मानी जा रही है। बिहार के 38 जिलों में लगभग 17% मुस्लिम आबादी है, और कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां यह समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है। यह कदम प्रशांत किशोर के उस व्यापक राजनीतिक विजन का हिस्सा है, जो धार्मिक या जातीय राजनीति से ऊपर उठकर समावेशी नेतृत्व की बात करता है।
विश्लेषक मानते हैं कि PK ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि जनसुराज सिर्फ़ एक पार्टी नहीं, बल्कि एक “जन-भागीदारी आंदोलन” है जो सभी समुदायों को बराबरी का अवसर देना चाहता है। इस घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर “#जनसुराजकीपहलीसूची” ट्रेंड करने लगी और कई राजनीतिक पंडितों ने इसे “बिहार की नई राजनीति की शुरुआत” कहा।
बिहार में टूटता भरोसा, बनता नया विकल्प
बिहार की राजनीति लंबे समय से दो ध्रुवों में बंटी रही है — एक ओर नीतीश कुमार और बीजेपी का गठबंधन, और दूसरी ओर तेजस्वी यादव का महागठबंधन। लेकिन लगातार 20 वर्षों की इस खींचतान ने जनता को निराश किया है। बेरोजगारी, शिक्षा की बदहाली, पलायन और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर कोई भी दल ठोस समाधान नहीं दे पाया। ऐसे में प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी खुद को “तीसरा रास्ता” बताती है — एक ऐसा रास्ता जो वादों और जातीय समीकरणों से नहीं, बल्कि “सच्चे जनसंवाद और सुशासन” से निकलता है।
बिहार की राजनीति में नई हवा
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जनसुराज की यह पहली सूची इस बात की घोषणा है कि बिहार में अब केवल “परिवार आधारित राजनीति” का दौर नहीं रहेगा।
प्रशांत किशोर की पहचान एक “राजनीतिक इंजीनियर” की रही है — लेकिन इस बार वे मैदान में खुद उतरकर “राजनीतिक सुधारक” की भूमिका निभा रहे हैं।
उनका संदेश साफ है — “जनता को अब खुद अपनी सरकार बनानी होगी, अपने नेताओं को तय करना होगा, और अपनी दिशा खुद तय करनी होगी।”
प्रशांत किशोर ने कहा, “यह लिस्ट किसी कमरे में नहीं बनी, यह जनता के बीच बनी है। हमने हर उम्मीदवार को जनता से जोड़ने की शर्त रखी है। हमारा लक्ष्य सत्ता नहीं, सुशासन है। हम बिहार को फिर से शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मॉडल राज्य के रूप में खड़ा करेंगे।”