संभल (उत्तर प्रदेश), 8 अक्टूबर 2025
उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में प्रशासन ने एक बड़ी कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी है। ज़िला प्रशासन ने ऐलान किया है कि शहर के हातिम सराय इलाके में स्थित 80 अवैध मकान और एक मस्जिद को जल्द ही ध्वस्त किया जाएगा। बताया जा रहा है कि ये निर्माण सरकारी तालाब की जमीन पर अवैध रूप से किए गए हैं। यह इलाका सांसद जियाउर्रहमान बरक के संसदीय क्षेत्र में आता है, जिससे प्रशासनिक कदम को लेकर स्थानीय राजनीति गरमा गई है।
अवैध कब्ज़े का आरोप और प्रशासनिक कार्रवाई की रूपरेखा
प्रशासन का कहना है कि हातिम सराय क्षेत्र में कई सालों से सरकारी भूमि, विशेषकर पुराने तालाब और उसके चारों ओर की जमीन पर अवैध कब्जे किए जा रहे थे। जांच में पाया गया कि दर्जनों मकान और एक मस्जिद बिना किसी स्वीकृत दस्तावेज़ या भू-स्वामित्व अधिकार के बनाई गई थी। तहसील प्रशासन ने इन सभी संरचनाओं को राजस्व रिकॉर्ड में अवैध घोषित कर दिया है और अब उन्हें हटाने की अंतिम तैयारी चल रही है।
तहसीलदार धीरेंद्र प्रताप सिंह के अनुसार, “इन मकानों और मस्जिद को लेकर हमने सभी पक्षों को 15 दिनों का नोटिस जारी किया है। यदि कोई भी पक्ष अपने स्वामित्व या वैध दस्तावेज़ पेश नहीं करता है, तो बुलडोज़र की कार्रवाई तय है।” प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कार्रवाई से पहले किसी भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का इरादा नहीं, बल्कि यह पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है।
12 साल पुरानी मस्जिद पर भी कार्रवाई का साया
इस क्षेत्र में बनी मस्जिद, जो करीब 12 वर्ष पहले बनाई गई थी, अब प्रशासन की नजर में है। तहसील प्रशासन के अनुसार, इस मस्जिद का निर्माण भी उसी सरकारी तालाब की भूमि पर हुआ है। मस्जिद प्रबंधन से कहा गया है कि वे निर्माण से जुड़े स्वीकृत दस्तावेज़ प्रस्तुत करें, अन्यथा उसे भी “अवैध निर्माण” की श्रेणी में शामिल किया जाएगा। मस्जिद कमेटी के कुछ सदस्यों ने प्रशासन से अतिरिक्त समय की मांग की है, ताकि दस्तावेज़ जुटाए जा सकें। लेकिन प्रशासन ने साफ कहा है कि समय सीमा बीतने के बाद किसी भी ढील की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।
80 मकानों पर लाल निशान, लोगों में दहशत और गुस्सा
हातिम सराय क्षेत्र में प्रशासन ने अब तक करीब 80 मकानों की पहचान की है जिन पर लाल निशान लगाकर ध्वस्तीकरण की चेतावनी दी गई है। कई घरों में रहने वाले परिवारों का कहना है कि उन्होंने प्लॉटिंग एजेंटों से भरोसे में आकर जमीन खरीदी थी, जिनके पास नकली या अधूरे दस्तावेज़ थे। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि प्रशासन ने असली दोषियों — यानी जमीन बेचने वाले भूमाफियाओं और एजेंटों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, जबकि साधारण लोग बेघर होने की कगार पर हैं।
इलाके में माहौल तनावपूर्ण है। महिलाएं और बुजुर्ग अपनी छतें बचाने के लिए अधिकारियों से रहम की गुहार लगा रहे हैं। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “हमने इस जगह को अपने बच्चों की परवरिश के लिए चुना था, अगर प्रशासन तोड़ देगा तो हम सड़कों पर आ जाएंगे।” प्रशासन ने हालांकि यह कहा है कि जिन परिवारों के पास वैध रिकॉर्ड हैं, उनके मकानों को नुकसान नहीं पहुँचाया जाएगा।
प्रशासन का सख्त रुख और राजनीतिक हलचल
संभल प्रशासन ने दावा किया है कि यह कार्रवाई पूरी तरह से न्यायालय के आदेशों और राजस्व विभाग के निर्देशों के अनुसार हो रही है। ज़िलाधिकारी ने कहा कि सरकारी भूमि पर कब्ज़ा किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और आने वाले दिनों में ज़िले के अन्य हिस्सों में भी इस तरह की अवैध निर्माण-विरोधी मुहिम चलाई जाएगी।
यह पूरा मामला अब राजनीतिक रंग भी पकड़ने लगा है। क्षेत्र के सांसद जियाउर्रहमान बरक, जो पहले भी प्रशासनिक कार्रवाईयों के विरोध में बयान दे चुके हैं, इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। लेकिन उनके समर्थक इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रहे हैं। वहीं, स्थानीय भाजपा और प्रशासन समर्थक समूहों का कहना है कि सरकारी जमीन पर कब्जा धर्म या राजनीति का नहीं, कानून का मामला है।
अवैध कब्ज़े पर कानून का बुलडोज़र या इंसाफ़ का इम्तिहान?
संभल में होने जा रही यह कार्रवाई सिर्फ 80 मकानों और एक मस्जिद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश में चल रहे “अवैध कब्ज़ा मुक्त अभियान” की अगली बड़ी कड़ी मानी जा रही है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन का बुलडोज़र वास्तव में न्याय का प्रतीक बनेगा या फिर यह कार्रवाई गरीब और असहाय लोगों की छत छीनने के रूप में देखी जाएगी।
फिलहाल संभल में हर घर में बेचैनी और सड़क पर हलचल है। सभी की निगाहें प्रशासन के अगले कदम पर टिकी हैं — क्या सच में बुलडोज़र गरजेगा, या कोई संवेदनशील समाधान निकलेगा?