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ज़हरीली सिरप और सरकारी झूठ: मासूमों की मौत पर BJP की आपराधिक चुप्पी—यह ठेकेदारों का राज है

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मासूमों की मौत और बीजेपी की संवेदनहीनता: ‘सब चंगासी’

राजस्थान और मध्य प्रदेश में दर्जनों मासूम बच्चों की मौत ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था और भाजपा शासित राज्यों की संवेदनहीनता की पोल खोलकर रख दी है। ये मौतें किसी सामान्य स्वास्थ्य संकट या दुर्योग का परिणाम नहीं हैं, बल्कि सीधे तौर पर ज़हरीली कफ सिरप के कारण हुई हैं। बावजूद इसके, दोनों राज्यों की भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकारें एक शर्मनाक चुप्पी साधे हुए हैं और ‘सब ठीक है’ का झूठा राग अलाप रही हैं। यह घटना सिर्फ इन दो राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस लापरवाही और भ्रष्टाचार के घातक गठजोड़ को दर्शाती है जिसका पोषण राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है। राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टिकराम जुली ने भाजपा सरकार पर सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि “जब बच्चे मर रहे हैं, तब राजस्थान सरकार दवा कंपनियों को बचाने में लगी है। 

यह सरकार इंसानियत खो चुकी है।” यह त्रासदी तब और भी भयावह लगती है जब हमें याद आता है कि 2019 में जम्मू-कश्मीर में, और हाल ही में गांबिया तथा उज्बेकिस्तान में भी भारतीय कफ सिरप से बच्चों की मौतें हो चुकी हैं। इसके बावजूद, मोदी सरकार और उसकी राज्य सरकारें बार-बार सिर्फ जांच की आड़ में उन कंपनियों को बचाने का अक्षम्य खेल खेलती रही हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बच्चों के जीवन से अधिक उनके लिए ठेकेदारी और कमीशनखोरी का नेटवर्क महत्वपूर्ण है।

कुपोषण और सरकारी बेरुख़ी: मध्य प्रदेश में ‘मौत का तीन गुना गठजोड़’

मध्य प्रदेश, जो पहले से ही उच्च कुपोषण दर (7.79%) से जूझ रहा है—जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है—वहाँ बच्चों की मौतें सरकारी प्राथमिकता पर गंभीर सवाल खड़ा करती हैं। कुपोषण की उच्च दर के बावजूद, राज्य सरकार जनता के स्वास्थ्य पर ध्यान देने के बजाय प्रचार और आयोजनों में व्यस्त है। छिंदवाड़ा में अब तक 16 बच्चों की मौत हो चुकी है, लेकिन भयावह स्थिति यह है कि जब यह संकट चरम पर था तब राज्य के मुख्यमंत्री काजीरंगा पार्क घूमने में व्यस्त थे। 

स्थानीय विधायकों की बार-बार की चेतावनियों को भी अनसुना कर दिया गया। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सच्चाई जानने के लिए एक बच्ची का शव कब्र से निकालकर पोस्टमॉर्टम कराना पड़ा। वहीं दूसरी ओर, डिप्टी सीएम लगातार यह कहते रहे कि “कफ सिरप से कोई मौत नहीं हुई,” और उन्होंने जल्दबाज़ी में संबंधित कंपनी को क्लीनचिट दे दी। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने इस पर सीधा सवाल पूछा, “क्या यही संवेदनशील शासन है? आखिर डिप्टी सीएम का रिश्ता उस कंपनी से क्या है?” यह दर्शाता है कि राजनीतिक संरक्षण के आगे सरकारी तंत्र पूरी तरह से निष्क्रिय और संवेदनहीन हो चुका है।

भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का ज़हर: ब्लैकलिस्टेड कंपनियों से सौदा

राजस्थान और मध्य प्रदेश में बच्चों की जान लेने वाली दवाओं की सप्लाई के पीछे केवल दवा कंपनी नहीं, बल्कि ठेकेदारी और भ्रष्टाचार का एक गंदा नेटवर्क काम कर रहा है। राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता टिकराम जुली और मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता विपक्ष उमंग सिंगार ने चौंकाने वाला खुलासा किया कि सरकारों ने ब्लैकलिस्टेड कंपनियों से बच्चों की दवाइयां खरीदीं। 

यह गंभीर आरोप है कि “जो कंपनियां पहले से बदनाम हैं, उनसे बच्चों की जान के साथ सौदा क्यों किया गया? क्या कोई बड़ा घोटाला छिपाया जा रहा है?” मध्य प्रदेश में तो कफ सिरप माफियागिरी का अड्डा बन गया है, जहाँ 40% तक कमीशन लेकर सप्लाई का ठेका दिया गया। सरकार ने जहरीले बैच की पुष्टि तो कर दी, लेकिन बिक्री बंद करने का कोई आदेश जारी नहीं किया। राजस्थान ने केवल “जांच समिति” बनाकर मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश की, जबकि मध्य प्रदेश में 9 मौतों के बाद ही प्रतिबंध लगाया गया। यह तथ्य स्वयं चीख-चीखकर कह रहा है कि बीजेपी सरकारें मौत के बाद ही जागती हैं, और वह भी दबाव पड़ने पर।

राजस्थान अस्पताल हादसा: प्रशासन भागा, मानवता का अपमान

राजस्थान की स्वास्थ्य व्यवस्था में व्याप्त घोर लापरवाही केवल ज़हरीली सिरप तक सीमित नहीं है। राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में हालिया आगजनी ने कुप्रबंधन को खुलकर उजागर कर दिया। गवाहों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, भयानक हादसे के दौरान अस्पताल स्टाफ मरीजों को छोड़कर भाग गया, जिससे कई मरीज़ खतरे में पड़ गए। यह मरीजों के प्रति उनके पेशेवर कर्तव्य और मानवीय जिम्मेदारी का सरासर उल्लंघन था। 

इसके विपरीत, परिजनों ने अपनी जान पर खेलकर मरीजों को बचाया। टिकराम जुली ने इस पर गंभीर आरोप लगाए कि “चिकित्सा मंत्री 24 घंटे बाद मौके पर पहुंचे। मुख्यमंत्री आए तो परिजनों को धमकाया, उन्हें पीटा गया और अस्पताल को तुरंत साफ कर सबूत मिटा दिए गए।” यह घटना केवल प्रशासनिक असफलता नहीं है; यह सरकारी तंत्र के नैतिक पतन का प्रतीक है, जहाँ अपनी नाकामी छुपाने के लिए मानवता के खिलाफ अपराध किया जाता है।

ठेकेदारों की जेबें, गरीबों की कब्रें: बीजेपी के ‘कमीशन राज’ का चेहरा

राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीजेपी की स्वास्थ्य नीतियां अब गरीबों की सेवा करने का माध्यम नहीं, बल्कि ठेकेदारों और दलालों की जेबें भरने का जरिया बन चुकी हैं। सरकारी अस्पतालों में घटिया दवाओं की सप्लाई, फर्जी टेंडर, और कमीशनखोरी का पूरा नेटवर्क सत्ताधारी दल के राजनीतिक संरक्षण में फल-फूल रहा है। मध्यप्रदेश तो अब शराब के साथ कफ सिरप के अवैध व्यापार का अड्डा बन चुका है। हर बार जब ऐसी भयावह मौतें होती हैं, सरकारें हमेशा की तरह एक जांच समिति का गठन करती हैं।

इस रटे-रटाए नाटक के बावजूद, न कोई मंत्री दोषी ठहरता है, न कोई वरिष्ठ अधिकारी बर्खास्त होता है। जनता इस पैटर्न को समझ चुकी है और पूछ रही है, “जब बच्चे मरते हैं, तब मंत्री क्यों गायब हो जाते हैं? क्या बीजेपी के लिए इंसानियत से बड़ा ठेका है?” यह दोहरा मापदंड और जवाबदेही का अभाव दर्शाता है कि सरकार के लिए सत्ता का खेल और आर्थिक लाभ बच्चों के जीवन से अधिक मूल्यवान हैं, और यह स्वास्थ्य व्यवस्था को गरीबों की कब्रगाह बना रहा है।

डबल इंजन सरकार का झूठ: मंत्री भागे, कंपनियां बचीं—विनाश का मॉडल

जब पत्रकारों ने राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री से जहरीली सिरप की बिक्री जारी रहने पर सवाल किया, तो वे प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़कर भाग निकले। यह कृत्य सरकारी जवाबदेही से भागने और अपनी नाकामी छुपाने का सबसे बड़ा प्रमाण है। इस पर टिकराम जुली ने तीखा तंज कसा, “मंत्री भाग गए, पर कंपनियों को क्लीनचिट दे गए। यही है ‘डबल इंजन सरकार’ का विकास मॉडल!” 

यह विडंबना है कि राजस्थान में आज तक कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं हुआ है कि जहरीली सिरप को बाजार से तुरंत हटाया जाए। न कोई व्यापक सर्वे किया गया है, न कोई पारदर्शी रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है—बस मौतों की लाशों के बीच झूठी बयानबाजी और सरकारी सफाई का नाटक चल रहा है। इस चुप्पी और निष्क्रियता ने यह साबित कर दिया है कि यह ‘डबल इंजन’ विकास के बजाय विनाश की गति को तेज कर रहा है, जहाँ मंत्री और अधिकारी ठेकेदारों के हितों की रक्षा में व्यस्त हैं।

‘मोदी मॉडल’ या ‘मौत का मॉडल’? केंद्र की चुप्पी और वैश्विक साख पर संकट

कांग्रेस पार्टी ने इस त्रासदी के लिए सीधे केंद्र सरकार को भी घेरा है। पार्टी के प्रवक्ताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि “2019 से लेकर अब तक भारत की दवाओं से दुनिया भर में बच्चों की मौतें हुईं, लेकिन मोदी सरकार हर बार कंपनियों को बचाने में लगी रही।” विदेशों में भारतीय फार्मास्युटिकल उत्पादों की साख गिरती रही, लेकिन केंद्र सरकार हमेशा “देश की छवि” बचाने का बहाना बनाकर सच्चाई को दबाती रही। 

अब जब मौतें भारत के भीतर, खासकर बीजेपी शासित राज्यों में हो रही हैं, तो वही पुरानी स्क्रिप्ट दोहराई जा रही है—”सब ठीक है।” कांग्रेस का सीधा आरोप है कि ‘मोदी मॉडल’ अब ‘मौत का मॉडल’ बन गया है, जहाँ व्यापारिक हितों को मानवीय जीवन से ऊपर रखा जाता है। केंद्र सरकार की यह चुप्पी न केवल राजनीतिक रूप से घातक है, बल्कि यह संवैधानिक और नैतिक रूप से भी अक्षम्य है, क्योंकि यह लाखों बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल रहा है।

इंसानियत को ठेके पर क्यों बेचा? जवाब दें प्रधानमंत्री जी—यह आपराधिक उदासीनता है

राजस्थान और मध्य प्रदेश में मासूम बच्चों की मौत BJP सरकार की घोर लापरवाही, नैतिक दिवालियापन और आपराधिक उदासीनता का सबसे बड़ा प्रमाण है। एक ओर सरकारें ‘विश्वगुरु’ बनने और ‘विकास’ के बड़े-बड़े दावे करती हैं, दूसरी ओर उनके ही राज्य में अस्पताल जल रहे हैं, दवाइयों में ज़हर मिल रहा है, बच्चे मर रहे हैं, और मंत्री सवालों से भाग रहे हैं। यह स्थिति अस्वीकार्य है और संवैधानिक जवाबदेही की मांग करती है। 

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सीधा और कठोर जवाब देना होगा: “आपकी सरकारें बचपन को क्यों मार रही हैं? इंसानियत को ठेके पर क्यों बेच दिया गया है?” टिकराम जुली का बयान इस त्रासदी की सच्चाई को उजागर करता है: “BJP की सरकारें बच्चों की मौतों की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकतीं। यह लापरवाही नहीं—यह अपराध है।” अब वक्त आ गया है कि मौत की राजनीति बंद हो, और सरकार कफ सिरप माफियागिरी पर कड़े नियम बनाकर बच्चों के जीवन को ठेकेदारों के मुनाफे से ऊपर रखे।

प्रेस वार्ता के दौरान, राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टिकराम जुली ने राज्य की बीजेपी सरकार पर स्वास्थ्य सेवाओं को तहस-नहस करने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने याद दिलाया कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार देश में सबसे पहले ‘राइट टू हेल्थ’ स्कीम लाई थी, साथ ही फ्री दवा योजना, फ्री जांच योजना और चिरंजीवी योजना (जिसमें ₹25 लाख तक का मुफ्त इलाज और ₹10 लाख तक का दुर्घटना बीमा दिया जाता था) जैसी जनकल्याणकारी योजनाएं शुरू की थीं। 

जुली ने आरोप लगाया कि आज बीजेपी सरकार ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि लोगों को सही इलाज न मिलने के कारण जान गंवानी पड़ रही है। उन्होंने ज़हरीली कफ सिरप से बच्चों की मौत के मामले में बीजेपी सरकार पर संवेदनहीनता दिखाते हुए आरोप लगाया कि “मृतक बच्चों के परिजनों पर यह दबाव बनाया जा रहा है कि वे यह न बताएं कि उन्होंने सरकारी अस्पताल से कफ सिरप ली थी।” जुली ने तीखा तंज कसते हुए कहा कि यह सरकार हर घटना की जिम्मेदारी से भाग रही है, और यह पहला मामला नहीं है, इससे पहले स्कूल गिरने से भी कई बच्चों की मौत हुई थी। उन्होंने मुख्यमंत्री को घेरते हुए कहा कि राजस्थान की यह ‘पर्ची सरकार’ आज ‘उड़न खटोला सरकार’ बन चुकी है, जिसके मुख्यमंत्री प्रदेश से अधिक दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने और राजधानी में व्यस्त रहने में समय बिताते हैं।

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