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हमास अलग-थलग, इज़रायल थका — ट्रंप की ‘शांति चाल’ को मिला नया मौका”

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तेल अवीव / वॉशिंगटन 5 अक्टूबर 2025

मध्य पूर्व में महीनों से जारी युद्ध के बीच एक अप्रत्याशित राजनीतिक मोड़ सामने आया है — पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की युद्ध समाप्ति योजना को अब अचानक “संभावना” के रूप में देखा जाने लगा है। इज़रायल के लगातार हमलों और हमास की गिरती पकड़ के बीच ऐसा प्रतीत होता है कि अब दोनों ही पक्ष थक चुके हैं — एक युद्ध के दबाव से, और दूसरा अंतरराष्ट्रीय अलगाव से। इसी थकान और तनाव के बीच ट्रंप की “नया सौदा” (New Deal) नीति की चर्चा फिर से जोर पकड़ रही है, जो कि गाज़ा संघर्ष के स्थायी समाधान की दिशा में एक संभावित रास्ता खोल सकती है।

हमास की हालत: अलग-थलग और कमजोर होती पकड़

गाज़ा में महीनों से जारी संघर्ष ने हमास को न केवल सैन्य रूप से बल्कि राजनीतिक रूप से भी कमजोर कर दिया है। लगातार बमबारी, आपूर्ति रूट्स के कटने और जन समर्थन के घटने से उसकी स्थिति पहले जैसी नहीं रही। कई अरब देश, जो पहले हमास के समर्थन में बयान देते थे, अब चुप्पी साधे हुए हैं। मिस्र और जॉर्डन जैसे देशों ने मानवीय संकट पर चिंता तो जताई है, लेकिन हमास के प्रति कोई खुला समर्थन नहीं दिया। अलगाव का फायदा अमेरिका और इज़रायल को मिल सकता है — विशेषकर उस स्थिति में जब एक नया राजनयिक ढांचा प्रस्तुत किया जाए जो युद्धविराम के साथ नियंत्रित शासन व्यवस्था की रूपरेखा पेश करे।

इज़रायल की थकान: विजय के बावजूद राहत नहीं

दूसरी ओर, इज़रायल के भीतर भी थकान गहराने लगी है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार पर युद्ध की अवधि को लेकर तीखा विरोध बढ़ रहा है। नागरिकों में असुरक्षा, सैनिकों में मानसिक थकान और वैश्विक दबाव ने इस युद्ध को राजनैतिक बोझ बना दिया है। इज़रायल को यह अहसास होने लगा है कि भले ही हमास को पूरी तरह नष्ट करने का लक्ष्य घोषित किया गया था, लेकिन अब यह युद्ध धीरे-धीरे कूटनीतिक गतिरोध में बदलता जा रहा है। अमेरिका, यूरोप और संयुक्त राष्ट्र लगातार “मानवीय युद्धविराम” की बात कर रहे हैं, और नेतन्याहू की लोकप्रियता तेजी से गिर रही है। इस बीच ट्रंप का बयान — “मुझे मौका दो, मैं 24 घंटे में डील कर दूंगा” — अब सिर्फ चुनावी नारा नहीं लग रहा, बल्कि एक संभावित योजना के रूप में सुर्खियों में है।

ट्रंप की ‘शांति योजना’: पुरानी पर अब प्रासंगिक

ट्रंप की जो योजना पहले “कठोर और इज़रायल-झुकी हुई” कही जाती थी, वही अब यथार्थवादी विकल्प बनती दिख रही है। उनकी टीम के सूत्रों के अनुसार, नई रूपरेखा में तीन बिंदु अहम हैं —

  1. हमास का पूर्ण निरस्त्रीकरण,
  2. गाज़ा में एक अंतरराष्ट्रीय प्रशासनिक तंत्र,
  3. अरब देशों द्वारा पुनर्निर्माण फंड की निगरानी।

यह योजना इज़रायल को सुरक्षा गारंटी देती है, वहीं अरब देशों को “मानवीय सम्मान” का स्पेस भी। ट्रंप की इस नई पहल को सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से ‘सावधानीपूर्ण समर्थन’ भी मिलना शुरू हो गया है।

विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप अपने पुराने अब्राहम समझौते (Abraham Accords) मॉडल को फिर से सक्रिय करना चाहते हैं, जिसमें अरब-इज़रायल सहयोग का आधार “आर्थिक साझेदारी” और “राजनैतिक स्थिरता” था।

अमेरिकी रणनीति: बाइडन की कमजोरी, ट्रंप का अवसर

बाइडन प्रशासन की मध्य पूर्व नीति को लेकर अमेरिका में तीखी आलोचना हो रही है। डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर भी यह स्वीकार किया जा रहा है कि गाज़ा युद्ध में अमेरिका ने इज़रायल पर पर्याप्त दबाव नहीं बनाया। ट्रंप इस असंतोष को अपने चुनावी अभियान का हथियार बना रहे हैं। उन्होंने हाल ही में फ्लोरिडा में कहा था, “बाइडन ने अमेरिका को कमजोर और दुनिया को अस्थिर बना दिया। मैं आता हूँ तो युद्ध नहीं, डील होती है।” उनका यह बयान अब सिर्फ चुनावी प्रचार नहीं बल्कि एक सक्रिय भू-राजनैतिक प्रस्ताव बनता जा रहा है। अमेरिका के रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इज़रायल-बाइडन संबंधों में दरार गहराती है, तो ट्रंप की मध्यस्थता को कई अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिल सकता है।

अरब देशों की भूमिका और नए समीकरण

सऊदी अरब, मिस्र और कतर की भूमिका इस संभावित शांति प्रक्रिया में निर्णायक हो सकती है। कतर, जो पहले हमास का समर्थन करता रहा, अब धीरे-धीरे ‘मध्यस्थ’ की भूमिका में आ गया है। वहीं सऊदी अरब इज़रायल के साथ अपने राजनयिक संबंधों को औपचारिक रूप देने की दिशा में फिर से विचार कर सकता है, अगर ट्रंप की डील में उसके आर्थिक और धार्मिक हितों को जगह मिलती है। यह परिदृश्य मध्य पूर्व की राजनीति में एक ‘नए शक्ति समीकरण’ की झलक देता है — जहां हमास का अस्तित्व सिकुड़ रहा है, इज़रायल की सैन्य नीति थक रही है, और अमेरिकी राजनीतिक इच्छाशक्ति फिर से निर्णायक बनती दिख रही है।

संभावनाओं और जोखिमों का संगम

हालांकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि ट्रंप की योजना में “सादगी ज्यादा, व्यावहारिकता कम” है। गाज़ा की जमीन पर नियंत्रण, मानवीय राहत, और पुनर्निर्माण जैसे मुद्दों पर कोई ठोस ढांचा अब तक नहीं दिखा। लेकिन वास्तविकता यह है कि इस समय कोई और योजना अस्तित्व में नहीं है। ऐसे में अगर ट्रंप अपनी “डीलमेकिंग पॉलिटिक्स” को कूटनीति में बदल पाते हैं, तो यह मध्य पूर्व की सबसे बड़ी राजनीतिक वापसी साबित हो सकती है।

हमास का अलग-थलग पड़ना और इज़रायल की थकान ने उस स्थिति को जन्म दिया है, जहां ट्रंप की भूली-बिसरी योजना अब एकमात्र संभव विकल्प लगने लगी है।

अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बार शांति का कोई ढांचा अपनाने को तैयार होता है, तो यह न सिर्फ गाज़ा बल्कि पूरे मध्य पूर्व के लिए एक नए संतुलन युग की शुरुआत हो सकती है। लेकिन सवाल वही है — क्या यह “ट्रंप डील” वास्तव में शांति ला पाएगी, या फिर यह भी इतिहास के किसी असफल अध्याय की तरह रह जाएगी?

 

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