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महात्मा गांधी होना क्या होता है? बापू की विरासत और जीवित आदर्श

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लेखक : निपुणिका शाहिद, असिस्टेंट प्रोफेसर, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी  | नई दिल्ली 2 अक्टूबर 2025

गांधी होना एक विचार है, व्यक्ति नहीं

महात्मा गांधी होना क्या होता है? यह सवाल हमें केवल इतिहास की गलियों में नहीं, बल्कि हमारे वर्तमान और भविष्य की गहराई में झाँकने को मजबूर करता है। गांधी होना केवल एक व्यक्ति का नाम नहीं है, बल्कि एक विचार, एक दर्शन और जीवन जीने का तरीका है। गांधी होना का मतलब है अहिंसा को हथियार बनाना, सत्य को धर्म मानना और सेवा को राजनीति का केंद्र बनाना। जब आज हम गांधी जयंती पर यह सोचते हैं कि गांधी होना क्या है, तो हमें याद रखना चाहिए कि गांधी कोई दूर बैठे महापुरुष नहीं, बल्कि हर उस इंसान के भीतर मौजूद हैं जो सत्य, अहिंसा और न्याय की राह चुनता है।

गांधी का बचपन: सादगी और सत्य की पहली शिक्षा

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ। बचपन में वे साधारण लेकिन संवेदनशील स्वभाव के थे। एक सच्ची घटना है—गांधी ने अपने किशोरावस्था में एक बार धूम्रपान की आदत अपनाने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने पिता के पैसे चुराए। बाद में उन्हें इतनी ग्लानि हुई कि उन्होंने चोरी और बीड़ी पीने की बात अपने पिता को लिखकर स्वीकार कर ली। जब पिता ने पत्र पढ़ा तो उनके आँसू बह निकले। उन आँसुओं ने गांधी के मन पर गहरी छाप छोड़ी। उसी क्षण उन्होंने ठान लिया कि वे जीवनभर सच बोलेंगे और अपने दोषों का प्रायश्चित करेंगे। यही उनकी पहली शिक्षा थी कि सत्य और स्वीकारोक्ति सबसे बड़ा साहस है।

दक्षिण अफ्रीका: अपमान से जन्मा सत्याग्रह

गांधी का असली रूप तब सामने आया जब वे वकालत के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ एक घटना ने उनका जीवन हमेशा के लिए बदल दिया। 1893 में उन्हें ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे से केवल इसलिए बाहर फेंक दिया गया क्योंकि वे भारतीय थे और उनकी त्वचा का रंग गहरा था। ठंडी रात में प्लेटफ़ॉर्म पर बैठे गांधी के भीतर एक आग जल उठी—अपमान सहने की आग। लेकिन यह आग हिंसा की नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ अहिंसक विद्रोह की थी। यहीं से गांधी ने “सत्याग्रह” का प्रयोग शुरू किया। उन्होंने वहाँ भारतीय मजदूरों और प्रवासियों के हक के लिए आंदोलन छेड़ा। उन्होंने दिखाया कि बिना हिंसा के भी अन्याय को हराया जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका में 21 साल तक चले उनके संघर्ष ने उन्हें विश्व स्तर पर एक नेता बना दिया।

भारत वापसी: आम आदमी का मसीहा बनने की शुरुआत

1915 में गांधी भारत लौटे और गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें कहा कि पहले देश को समझो। गांधी ने रेल से गाँव-गाँव का दौरा किया और जाना कि असली भारत शहरों में नहीं, बल्कि गाँवों में बसता है। किसानों और गरीबों की हालत देखकर उनका दिल द्रवित हो गया। 1917 में बिहार का चंपारण सत्याग्रह उनका पहला बड़ा आंदोलन था। यहाँ अंग्रेज किसानो को नीली खेती करने पर मजबूर करते थे। गांधी ने सत्य और अहिंसा की ताक़त से किसानों की लड़ाई लड़ी और आखिरकार अंग्रेजों को झुकना पड़ा। यह घटना बताती है कि गांधी होना मतलब आम लोगों की आवाज़ बनना है।

नमक सत्याग्रह: जब नमक बना आज़ादी का प्रतीक

1930 का दांडी मार्च गांधी के जीवन का सबसे प्रतीकात्मक आंदोलन था। अंग्रेजों ने नमक पर कर लगाया था, जो गरीब से गरीब आदमी की ज़रूरत थी। गांधी ने घोषणा की कि वे इस अन्याय के खिलाफ “नमक कानून” तोड़ेंगे। 12 मार्च 1930 को उन्होंने साबरमती आश्रम से 390 किलोमीटर की पदयात्रा शुरू की। हज़ारों लोग उनके साथ हो गए। 6 अप्रैल को समुद्र किनारे उन्होंने मुट्ठी भर नमक उठाकर अंग्रेजी हुकूमत को खुली चुनौती दी। यह आंदोलन इतना शक्तिशाली था कि पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे एक फकीर ने नमक से साम्राज्य हिला दिया। गांधी होना मतलब छोटी से छोटी चीज़ में भी अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना।

असहयोग और नौजवानों का जागरण

1920 का असहयोग आंदोलन गांधी की अगुवाई में देशव्यापी बन गया। उन्होंने कहा—“अगर हम अंग्रेजों के साथ सहयोग करना बंद कर दें, तो उनका शासन अपने आप गिर जाएगा।” लाखों नौजवानों ने सरकारी स्कूल-कॉलेज छोड़ दिए, नौकरी छोड़ दी और खादी पहनने लगे। गांधी ने राजनीति को जनता के हाथों में पहुँचा दिया। यह गांधी की सबसे बड़ी देन थी कि उन्होंने आज़ादी की लड़ाई को केवल नेताओं तक सीमित नहीं रखा, बल्कि हर किसान, हर महिला और हर नौजवान को उसका हिस्सा बनाया। गांधी होना मतलब जनता की ताक़त पर भरोसा करना।

गांधी और उनकी मानवीय कहानियाँ

गांधी केवल नेता नहीं, बल्कि इंसानियत के पैग़ंबर थे। एक घटना है—एक माँ अपने बेटे को गांधी के पास लाई और कहा कि यह बच्चा बहुत चीनी खाता है, इसे समझाइए। गांधी ने बच्चे को तुरंत कुछ नहीं कहा। उन्होंने माँ से कहा कि दो हफ्ते बाद आना। जब वे दोबारा आईं तो गांधी ने बच्चे से कहा—“बेटा, चीनी कम खाओ।” माँ ने पूछा, “पहले क्यों नहीं कहा?” गांधी ने जवाब दिया, “क्योंकि मैं खुद चीनी खाता था, पहले मुझे अपने ऊपर विजय पानी थी।” यह घटना दिखाती है कि गांधी होना मतलब पहले खुद पर अनुशासन लाना और फिर दूसरों को सीख देना।

आज़ादी और बंटवारे का दर्द

1947 में जब देश आज़ाद हुआ, तो गांधी सबसे खुश नहीं थे, क्योंकि आज़ादी खून और बंटवारे के साथ आई थी। हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। दिल्ली में आग लगी थी। गांधी ने भूख हड़ताल शुरू की। लोग रोने लगे कि “बापू मर जाएंगे तो खून हमारे सिर पर होगा।” गांधी ने अकेले खड़े होकर नफ़रत की आग को बुझाया। गांधी होना मतलब नफरत के बीच इंसानियत का दीया जलाना है।

गांधी की शिक्षा और नयी तालीम

गांधी का मानना था कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। वे कहते थे कि शिक्षा का मतलब है सिर, हाथ और दिल—तीनों का विकास। उन्होंने ‘नयी तालीम’ का विचार दिया, जिसमें बच्चों को पढ़ाई के साथ काम और सेवा से भी जोड़ा जाता। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य अच्छे इंसान बनाना है, सिर्फ़ अच्छे अफ़सर नहीं। गांधी होना मतलब शिक्षा को जीवन से जोड़ना है।

महिलाओं के लिए गांधी की सोच

गांधी ने महिलाओं को आज़ादी की लड़ाई का अगुवा बनाया। उन्होंने कहा कि महिलाएँ केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे समाज और राजनीति में भी पुरुषों के बराबर हैं। नमक सत्याग्रह में हजारों महिलाएँ जेल गईं। गांधी होना मतलब महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना और उन्हें राष्ट्र निर्माण में शामिल करना।

गांधी और दुनिया

गांधी की सोच केवल भारत तक सीमित नहीं रही। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमेरिका में नस्लभेद के खिलाफ लड़ाई गांधी के अहिंसा मार्ग पर लड़ी। नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ गांधी से प्रेरणा पाई। आंग सान सू की जैसे नेताओं ने भी गांधी के आदर्शों से प्रेरणा ली। गांधी होना मतलब पूरी दुनिया को इंसानियत का संदेश देना।

गांधी की आलोचनाएँ और सीमाएँ

गांधी आलोचनाओं से भी परे नहीं थे। कई क्रांतिकारी उन्हें बहुत धीमा मानते थे। अंबेडकर ने उन्हें दलित मुद्दों पर पर्याप्त आक्रामक न होने के लिए आलोचना की। लेकिन गांधी ने कहा—“मेरी लड़ाई हर अन्याय के खिलाफ है।” गांधी होना मतलब आलोचना को भी स्वीकार करना और उससे सीखना।

आज के दौर में गांधी होना वास्तव में सबसे कठिन, लेकिन सबसे आवश्यक कार्य है। आज जब समाज चारों ओर से नफ़रत, हिंसा और विभाजन की राजनीति में उलझा हुआ है, जब धर्म, जाति और भाषा के नाम पर लोग एक-दूसरे से लड़ने को तैयार कर दिए जाते हैं, तब गांधी होना एक तरह का विद्रोह है—लेकिन यह विद्रोह तलवार और बंदूक का नहीं, बल्कि सच और अहिंसा का है।

 गांधी होना का मतलब है उस सच को सबसे ऊपर रखना जो किसी भी सत्ता, किसी भी झूठी प्रचार मशीनरी या किसी भी ताक़त से बड़ा है। गांधी होना का मतलब है कि जब चारों ओर नफरत की चीखें हों, तब हम संवाद और अहिंसा की धीमी लेकिन गूंजदार आवाज़ को चुनें। इसका अर्थ है कि राजनीति को सत्ता हथियाने का माध्यम नहीं, बल्कि सेवा का साधन बनाना। 

गांधी होना का अर्थ यह भी है कि उपभोक्तावाद और भौतिकता की दौड़ में भागते समाज को सादगी और आत्मनिर्भरता की राह दिखाना, यह याद दिलाना कि जीवन की सच्ची शक्ति भोग में नहीं, बल्कि संयम और त्याग में है। और सबसे बड़ी बात, गांधी होना का मतलब है इंसानियत को हर धर्म, हर विचारधारा और हर झूठे राष्ट्रवाद से ऊपर रखना।

 आज भी जब हम अन्याय के सामने चुप न रहकर आवाज़ उठाते हैं, जब हम डर और नफ़रत के बजाय साहस और प्रेम का रास्ता चुनते हैं, तब हमारे भीतर एक गांधी जन्म लेता है। गांधी केवल इतिहास की किताबों तक सीमित नहीं हैं, वे हमारे हर फैसले में, हर साहसिक कदम में, हर इंसानियत की पुकार में जीवित हैं। गांधी होना का अर्थ है मरकर भी अमर बने रहना, क्योंकि उनकी आत्मा आज भी हर उस दिल में बसती है, जो अन्याय को नकारता है और इंसानियत को गले लगाता है।

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