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मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का ऐतिहासिक महासम्मेलन: एकता और राष्ट्रनिर्माण का विराट संगम

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नई दिल्ली 30 सितंबर 2025 | लेखक : डॉ. शालिनी अली, समाजसेवी

भारत की सरज़मीं हमेशा से विविधता में एकता का उदाहरण रही है। यहाँ पर अलग-अलग धर्म, संप्रदाय, भाषाएँ, रीति-रिवाज और संस्कृतियाँ एक-दूसरे के साथ मिलकर जीती हैं। यही भारत की असली ताक़त है। इसी ताक़त का जीवंत उदाहरण हाल ही में देखने को मिला जब मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (MRM) ने एक ऐतिहासिक महासम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में देश के हर कोने से 12,000 से अधिक लोग स्वेच्छा से एकत्र हुए। यह केवल एक सम्मेलन नहीं था, बल्कि एक ऐसा संगम था जहाँ राष्ट्रवाद, समाज सेवा और मुस्लिम समाज की नई सोच का संगठित रूप सामने आया। मंच पर नेताओं से लेकर विद्वानों तक और सभागार में साधारण मुसलमान से लेकर उच्च पदों पर बैठे अफसरों तक, हर तबके के लोग मौजूद थे।

इस सम्मेलन की सबसे बड़ी ताक़त इसकी विविधता थी। कश्मीर, लेह और लद्दाख से लेकर कन्याकुमारी तक और अरुणाचल, असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम जैसे नॉर्थ-ईस्ट राज्यों से लेकर महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान तक, देश के हर हिस्से से प्रतिनिधि पहुँचे। हिंदी पट्टी के बड़े राज्यों—उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश—के मुसलमानों ने भारी संख्या में उपस्थिति दर्ज कराई। पंजाब और हरियाणा से आए पंजाबी मुसलमानों ने अपनी अलग पहचान के साथ सम्मेलन की गरिमा बढ़ाई। दक्षिण भारत से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोग भी उत्साह से जुड़े। यह अपने आप में एक ऐसा परिदृश्य था जिसे देखकर कोई भी कह सकता था कि यह महासम्मेलन छोटे भारत की तस्वीर बन गया है।

इतनी विशाल भीड़ का प्रबंधन अपने आप में एक चुनौती थी, लेकिन आयोजकों ने इसे एक सुव्यवस्थित प्रणाली में ढाल दिया। 500 वॉलंटियर्स की एक समर्पित टीम सुरक्षा, खानपान और रजिस्ट्रेशन की जिम्मेदारी संभाल रही थी। हर आगंतुक का नाम दर्ज हो रहा था, पहचान पत्र देखे जा रहे थे और सभी के लिए भोजन एवं पेयजल का उत्तम इंतज़ाम किया गया था। सम्मेलन स्थल पर किसी भी तरह की अव्यवस्था न दिखी। एक तरफ वॉलंटियर्स लोगों का स्वागत कर रहे थे, तो दूसरी तरफ सुरक्षा कर्मी सतर्क खड़े थे। खानपान के लिए अलग-अलग काउंटर बनाए गए थे ताकि हर क्षेत्र से आए लोगों को उनके स्वाद और आदत के अनुसार भोजन उपलब्ध हो सके। भीड़ के बावजूद अनुशासन ऐसा था मानो हर कोई स्वयं आयोजक हो।

यह सम्मेलन केवल भीड़ का जमावड़ा नहीं था, बल्कि इसमें समाज के हर तबके की भागीदारी थी। मंच पर बड़े-बड़े अफसर और बुद्धिजीवी मौजूद थे, तो सभागार में किसान, मजदूर, छात्र और व्यापारी भी बैठे थे। महिलाओं की उपस्थिति भी उल्लेखनीय थी। यह सम्मेलन उस धारणा को तोड़ता है कि मुस्लिम समाज केवल अपने कुछ चुने हुए नेताओं की बात ही मानता है। यहाँ हर कोई अपनी राय, अपने विचार और अपने सपनों के साथ उपस्थित था। पंजाबी मुसलमानों का उत्साह, कश्मीरी युवाओं का जोश, बंगाल और बिहार से आए छात्रों का आत्मविश्वास और दक्षिण भारत से आए व्यापारियों की भागीदारी—यह सब मिलकर भारत की साझा विरासत की झलक दिखा रहे थे।

मीडिया कवरेज ने इस सम्मेलन को एक ऐतिहासिक मुकाम पर पहुँचा दिया। देश की पाँच प्रमुख समाचार एजेंसियाँ—PTI, ANI, IANS, UNI और हिंदुस्थान समाचार—ने इसे कवर किया। राष्ट्रीय स्तर पर आज तक, एबीपी न्यूज़, ज़ी न्यूज़, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़, न्यूज़ नेशन, न्यूज़ 24 जैसे टीवी चैनल्स की मौजूदगी ने आयोजन को नई ऊँचाइयों तक पहुँचा दिया। हिंदी के बड़े अख़बार—दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, भास्कर, पंजाब केसरी—के साथ-साथ नवभारत टाइम्स और लोकमत जैसे अखबारों ने इसे प्रमुखता दी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस सम्मेलन की कवरेज 400 से अधिक अखबारों और टीवी चैनलों में हुई। इतना ही नहीं, यूट्यूब और सोशल मीडिया की दुनिया में भी यह सम्मेलन छा गया। सैकड़ों यूट्यूबर्स ने लाइव स्ट्रीमिंग की और लाखों लोगों ने वास्तविक समय में इस आयोजन को देखा।

न्यूज़ एजेंसियों ने साफ कहा कि उन्होंने कभी किसी मुस्लिम संगठन का ऐसा सम्मेलन नहीं देखा। आमतौर पर मुस्लिम संगठनों के जलसों में या तो क्षेत्रीय भीड़ होती है या फिर राजनीतिक समर्थन से भीड़ जुटाई जाती है। लेकिन यहाँ तस्वीर अलग थी। लोग स्वेच्छा से आए थे। किसी को पैसे देकर या लालच देकर नहीं बुलाया गया था। इस सम्मेलन ने यह साबित कर दिया कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच अब केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक आंदोलन है—राष्ट्रहित में मुस्लिम समाज को जागरूक करने का आंदोलन।

सम्मेलन से कई बड़े सामाजिक और राजनीतिक संदेश निकले। सबसे पहला संदेश यह कि मुस्लिम समाज अब राष्ट्रवाद के साथ खड़ा है। भारत पहले—यही इस सम्मेलन का मूल भाव था। दूसरा संदेश यह था कि मुस्लिम नेतृत्व का चेहरा बदल रहा है। अब समाज ऐसे नेतृत्व की तलाश में है जो केवल तुष्टिकरण की राजनीति न करे, बल्कि देश की प्रगति और समान अवसरों पर ध्यान दे। तीसरा संदेश यह था कि मुस्लिम समाज शिक्षा, रोजगार, महिला सशक्तिकरण और सांप्रदायिक सौहार्द जैसे विषयों पर गंभीर है। इस सम्मेलन ने यह दिखा दिया कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच एक ऐसा प्लेटफार्म है जो इन मुद्दों पर ठोस काम करने के लिए संकल्पित है।

आलोचकों के लिए भी यह सम्मेलन करारा जवाब था। कुछ लोग अब तक यह मानते थे कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच केवल एक प्रतीकात्मक संगठन है, जिसकी पकड़ सीमित है। लेकिन जब 12,000 लोग स्वतः एकत्रित हुए, तो यह भ्रम टूट गया। इसके विपरीत, तथाकथित मुस्लिम रहनुमाओं की साख कमज़ोर होती दिखी। वर्षों से खुद को मुस्लिमों का ठेकेदार बताने वाले संगठनों की असलियत सामने आ गई कि वे कभी भी इतनी विविधता और संख्या में लोगों को नहीं जोड़ पाए। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने यह कर दिखाया और इसीलिए इसे मुस्लिम समाज का नया चेहरा कहा जाने लगा है।

सम्मेलन ने भविष्य की दिशा भी तय की। इसमें प्रस्ताव पारित हुए कि मुस्लिम समाज में शिक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी। खासतौर से बेटियों की शिक्षा के लिए अभियान चलाया जाएगा। महिला सशक्तिकरण के लिए स्वयं सहायता समूह और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाएँगे। युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्टार्टअप्स और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम शुरू किए जाएँगे। साथ ही, समाज के भीतर सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता के लिए अन्य धार्मिक और सामाजिक संगठनों से संवाद बढ़ाने की योजना बनी। सम्मेलन ने यह भी तय किया कि वक्फ़ संपत्तियों का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज सेवा में किया जाए।

यह महासम्मेलन केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। इसकी गूंज विदेशों तक पहुँची। खाड़ी देशों से लेकर यूरोप और अमेरिका तक के प्रवासी भारतीय मुसलमानों ने इसे सराहा। सोशल मीडिया पर NRIs ने लिखा कि यह सम्मेलन मुस्लिम समाज की नई पहचान है। भारत का मुसलमान अब दुनिया को यह संदेश दे रहा है कि वह न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे राष्ट्र और मानवता के लिए काम करना चाहता है।

यह महासम्मेलन केवल एक आयोजन नहीं था। यह एक आंदोलन की शुरुआत थी। यह वह मोड़ है जहाँ मुस्लिम समाज ने यह तय किया कि वह अतीत की गलतियों को पीछे छोड़कर एक नए भविष्य की ओर बढ़ेगा। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने यह साबित कर दिया कि सही दिशा में किए गए प्रयास हमेशा बड़ी सफलता दिलाते हैं।

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