रियाद 29 सितंबर 2025
खाड़ी क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनाव अपने चरम पर है और इसी बीच सऊदी अरब के वरिष्ठ राजनयिक प्रिंस तुर्की अल-फैसल ने एक सख़्त और चेतावनी भरा बयान देकर पूरे क्षेत्र को हिला दिया है। प्रिंस तुर्की ने साफ शब्दों में कहा कि खाड़ी देशों की सामूहिक सुरक्षा अब गंभीर ख़तरे में है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह हमला किसी एक देश पर नहीं बल्कि पूरी खाड़ी की संप्रभुता पर है। तुर्की अल-फैसल ने इस घटना को एक “पापी राज्य” द्वारा किया गया हमला बताया जिसने अंतरराष्ट्रीय नियमों, संधियों और क़ानून की पूरी तरह से अनदेखी की है। उनका कहना है कि यह घटना सभी खाड़ी देशों के लिए एक गहरा सबक है और अब समय आ गया है कि वे अपनी सुरक्षा नीति की पुनर्समीक्षा करें और क्षेत्रीय सहयोग को पहले से कहीं अधिक मजबूत बनाएं।
प्रिंस तुर्की का यह बयान सीधे तौर पर उस हालिया हमले से जुड़ा है जो कतर में हुआ और जिसमें हमास के नेताओं को निशाना बनाया गया। उन्होंने इस हमले को “विश्वासघात” और “अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का घोर उल्लंघन” करार दिया। उनका कहना था कि जब तक खाड़ी देश आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर एकजुट नहीं होंगे, तब तक इस तरह के हमले उनके सामूहिक हितों को चोट पहुँचाते रहेंगे और क्षेत्र को अस्थिर करते रहेंगे। प्रिंस तुर्की की यह चेतावनी सिर्फ एक राजनयिक बयान नहीं बल्कि एक गहरा रणनीतिक संदेश है क्योंकि वह लंबे समय तक सऊदी विदेश नीति और खुफिया रणनीति के केंद्र में रहे हैं। उनका अनुभव और दृष्टिकोण पूरे खाड़ी क्षेत्र की सुरक्षा बहस को नया मोड़ देने वाला है।
इस बयान में तुर्की अल-फैसल ने अमेरिका को भी आड़े हाथों लिया। उनके मुताबिक, अमेरिका अब पहले जैसा “ईमानदार मध्यस्थ” नहीं रह गया है। उसका रुख स्पष्ट रूप से इसराइल के पक्ष में झुका हुआ है और वह फिलिस्तीनी मुद्दे को हल करने में दोहरे मानदंड अपनाता है। प्रिंस तुर्की का कहना था कि फिलिस्तीनी जनता का संघर्ष कोई दान या पुरस्कार पाने की मांग नहीं है, बल्कि यह 80 साल पुराने अन्याय को समाप्त करने की लड़ाई है। उन्होंने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासतौर से पश्चिमी शक्तियाँ, इस मुद्दे को सुलझाने में पूरी तरह विफल रही हैं और यही विफलता बार-बार इस क्षेत्र में अस्थिरता और संघर्ष को बढ़ावा दे रही है।
तुर्की अल-फैसल का यह बयान ऐसे समय में आया है जब खाड़ी देश कई तरह की चुनौतियों से जूझ रहे हैं। यमन में लगातार चल रहा गृहयुद्ध, ईरान के साथ बढ़ते तनाव, वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में उतार-चढ़ाव और महंगाई का दबाव पहले से ही क्षेत्रीय राजनीति को अस्थिर बना रहे हैं। ऐसे में उनका यह कहना कि खाड़ी की सामूहिक सुरक्षा खतरे में है, एक गहरी चेतावनी है कि अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में भू-राजनीतिक संकट और बढ़ सकता है। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि साझा खुफिया नेटवर्क का निर्माण, नई रक्षा साझेदारियों का विकास और एक मजबूत कूटनीतिक मोर्चा ही इस खतरे का सही और स्थायी समाधान हो सकते हैं।
प्रिंस तुर्की की यह बात खाड़ी देशों के लिए सिर्फ चेतावनी नहीं बल्कि अवसर भी है। अगर खाड़ी देश इस खतरे को एकजुट होकर अवसर में बदलते हैं तो वे न केवल अपनी सुरक्षा को मजबूत कर सकते हैं बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी राजनीतिक और आर्थिक ताकत का प्रदर्शन भी कर सकते हैं। लेकिन अगर वे आपसी मतभेदों में उलझे रहे और बिखरे रहे तो बाहरी शक्तियाँ इस स्थिति का फायदा उठाकर उनके आंतरिक मामलों में दखल देती रहेंगी। इसलिए यह बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं बल्कि आने वाले महीनों में खाड़ी की कूटनीति और सुरक्षा नीति को दिशा देने वाला एक गंभीर संकेत है।