नई दिल्ली 29 सितंबर 2025
मरे हुए लोग और विदेशी बनने की अजीबोगरीब कहानी
चुनाव आयोग के मुताबिक 28 लोगों के नाम इसलिए हटाए गए क्योंकि उन्होंने बाकायदा पर्चा भरकर आवेदन दिया कि वे मर चुके हैं, इसलिए उनका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया जाए। ज़रा सोचिए — मरा हुआ आदमी फॉर्म कैसे भरता है? क्या चुनाव आयोग के पास अब भूत-प्रेत के हस्ताक्षर भी आने लगे हैं? यही नहीं, 700 लोगों ने फॉर्म भरकर कहा कि वे विदेशी हैं और उनका नाम हटा दिया जाए। क्या कोई भारतीय नागरिक खुद अपनी नागरिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाएगा और खुद को विदेशी घोषित करेगा ताकि अगले ही दिन पुलिस आकर उसे गिरफ्तार कर ले? यह कोई सामान्य गड़बड़ी नहीं बल्कि एक सुनियोजित धांधली की गंध देती है।
“SIR का तमाशा देखिए!” — योगेन्द्र यादव का तंज
समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मौजूद इन आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत का लोकतंत्र जिस संस्था पर सबसे ज्यादा भरोसा करता है, वही संस्था आज लोकतंत्र का सबसे बड़ा मजाक बना रही है। यादव ने कहा —
“SIR का तमाशा देखिए! वोटर लिस्ट को लेकर तीन लाख आपत्तियाँ दर्ज हुई हैं। इनमें से 57% आपत्तियाँ उन्हीं लोगों की हैं जिनके नाम पर यह आपत्ति की गई है। यानी पहले वही लोग फॉर्म भरकर कहते हैं कि हमें वोटर लिस्ट में शामिल करो और अब वही कह रहे हैं कि हमारा नाम काट दो।” यादव के अनुसार यह कोई साधारण प्रशासनिक भूल नहीं लोकतंत्र को कमजोर करने की सुनियोजित कोशिश है।
लोकतंत्र का सबसे बड़ा तमाचा
योगेन्द्र यादव का कहना है कि यह खुलासा भारत के लोकतंत्र पर सबसे बड़ा तमाचा है। “मरे हुए लोग फॉर्म भर रहे हैं, और जीवित लोग खुद को विदेशी घोषित कर रहे हैं — यह सिर्फ लिस्ट की गड़बड़ी नहीं, बल्कि सुनियोजित मतदाता चोरी का केस है।” यह दिखाता है कि मतदाता सूची में किस हद तक छेड़छाड़ हो रही है। यह सिर्फ मतदाता नहीं काट रहा, यह लोकतंत्र की जड़ों को काट रहा है।
चुनाव आयोग की साख पर सबसे बड़ा सवाल
योगेन्द्र यादव ने कहा कि यह किसी एक जिले की गलती नहीं बल्कि पूरे चुनावी सिस्टम में भ्रष्टाचार और मिलीभगत का सबूत है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सरकार के इशारे पर चलने वाला संगठित ऑपरेशन है, ताकि असली मतदाताओं के नाम हटाकर सत्ता के पक्ष में चुनाव को झुकाया जा सके। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग, जो कभी लोकतंत्र का प्रहरी था, अब “वोटर लिस्ट एडजस्टमेंट एजेंसी” बन चुका है। यादव ने गुस्से में कहा, “जब लोग खुद को विदेशी बता रहे हैं और मृतक अपने मरने का हलफ़नामा दे रहे हैं, तो यह गड़बड़ी नहीं, लोकतंत्र का सीधा-सीधा मजाक है।”
लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील?
योगेन्द्र यादव ने चेतावनी दी कि अगर इस मामले की तुरंत पारदर्शी जांच नहीं हुई और दोषियों पर कार्रवाई नहीं की गई, तो यह लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा। उन्होंने चुनाव आयोग को चुनौती दी कि वह तुरंत सभी आंकड़े सार्वजनिक करे और बताए कि किस आधार पर किसका नाम काटा जा रहा है। यादव ने कहा कि जनता अब जाग चुकी है और यह तमाशा चुपचाप देखने वाली नहीं है।
सोशल मीडिया पर गुस्से का विस्फोट
योगेन्द्र यादव के बयान के बाद सोशल मीडिया पर #चुनाव_चोरी_आयोग ट्रेंड करने लगा। लोग कह रहे हैं कि अगर यह सिलसिला चलता रहा तो भारत में चुनाव सिर्फ एक दिखावा बनकर रह जाएंगे और असली लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। यह खुलासा आने वाले चुनावों की निष्पक्षता पर सीधा सवाल खड़ा करता है — क्या जनता वास्तव में वोट दे रही है या फिर वोटर लिस्ट में छेड़छाड़ करके सत्ता अपने हिसाब से नतीजे लिख रही है?