नई दिल्ली | 29 सितंबर 2025
भारत में आर्थिक असमानता चरम पर पहुँच चुकी है। चौंकाने वाला तथ्य है कि देश की 83% आबादी की दैनिक आय 171 रुपये से कम है। इसका मतलब है कि आठ में से सात भारतीय गरीबी, अभाव और संघर्ष में जीने को मजबूर हैं। 7 करोड़ से अधिक लोग आज भी महज 62 रुपये में अपना पूरा दिन गुज़ार रहे हैं, जो भूख और बेबसी की एक करुण तस्वीर खींचता है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि भारत की 40% से अधिक संपत्ति सिर्फ 1% अमीरों के पास है। यह आर्थिक विषमता दिखाती है कि जबकि कुछ गिने-चुने अरबपति अपनी दौलत कई गुना बढ़ा रहे हैं, आम आदमी रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए जूझ रहा है।
अर्थशास्त्रियों की चेतावनी है कि भारत की अर्थव्यवस्था गरीब और मिडिल क्लास के हित में नहीं, बल्कि अमीर वर्ग के लिए काम कर रही है। महंगाई, बेरोजगारी और मंदी का सबसे बड़ा बोझ इन्हीं पर है। खाद्यान्न, शिक्षा, स्वास्थ्य, किराया – सब महंगे हैं, लेकिन मजदूरी और सैलरी वहीं की वहीं हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस स्थिति को “Dead Economy” करार देते हुए आरोप लगाया था कि सरकारी नीतियाँ सिर्फ चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुँचा रही हैं। विपक्ष का कहना है कि निजीकरण और महंगाई ने भारत की आर्थिक रीढ़ तोड़ दी है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि रोज़गार सृजन, न्यूनतम आय गारंटी, और टैक्स सुधार जैसे ठोस कदम उठाए बिना यह खाई नहीं भरेगी। वरना आने वाले वर्षों में यह आर्थिक संकट सामाजिक अशांति में बदल सकता है।