न्यूयॉर्क / यरूशलम, 26 सितम्बर 2025
संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भाषण के दौरान बड़ा राजनीतिक हंगामा देखने को मिला। नेतन्याहू ने अपने संबोधन में फिलिस्तीन को अंतरराष्ट्रीय मान्यता देने के प्रयासों को “शर्मनाक” करार दिया। उनके इस बयान के तुरंत बाद दर्जनों देशों के प्रतिनिधि सभागार से वॉकआउट कर गए। यह घटना एक बार फिर मध्य पूर्व में शांति प्रक्रिया और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को केंद्र में ला खड़ा करती है।
नेतन्याहू ने अपने भाषण में कहा कि फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देना आतंकवाद को पुरस्कृत करने जैसा है। उन्होंने आरोप लगाया कि फिलिस्तीनी नेतृत्व हमास और उग्रवादी गुटों को समर्थन देता है, जिनकी वजह से इज़रायल के नागरिक लगातार हमलों का सामना कर रहे हैं। नेतन्याहू ने कहा, “दुनिया को समझना चाहिए कि आतंकवाद को वैधता देना शांति का रास्ता नहीं है। यह एक वैश्विक गलती होगी।”
लेकिन नेतन्याहू के इस बयान ने कई देशों को नाराज कर दिया। यूरोपीय संघ, अरब देशों और कुछ एशियाई देशों के प्रतिनिधियों ने विरोध जताते हुए सभागार से बाहर चले गए। संयुक्त राष्ट्र के डिप्लोमैट्स के अनुसार, यह हाल के वर्षों में किसी भाषण के दौरान हुआ सबसे बड़ा वॉकआउट था। कूटनीतिक हलकों में इसे एक “गंभीर संदेश” माना जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय फिलिस्तीन मुद्दे पर इज़रायल की कठोर नीति को लेकर गहराई से असहज है।
फिलिस्तीनी प्राधिकरण ने नेतन्याहू के बयान की कड़ी निंदा की है। फिलिस्तीनी प्रतिनिधि ने कहा कि यह भाषण “शांति प्रक्रिया पर सीधा हमला” है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन की मान्यता अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के कई प्रस्तावों के अनुरूप है और इसे रोकने का कोई भी प्रयास क्षेत्र में तनाव बढ़ाएगा।
विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद उस समय हो रहा है जब मध्य पूर्व में पहले से ही तनाव चरम पर है। हाल ही में गाज़ा में हुए संघर्ष और वेस्ट बैंक में बढ़ती हिंसा ने अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को गहरा किया है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने सभी पक्षों से संयम बरतने और बातचीत का रास्ता अपनाने की अपील की है।
यह घटना अंतरराष्ट्रीय मंच पर इज़रायल की बढ़ती कूटनीतिक चुनौतियों को भी उजागर करती है। वॉकआउट के बाद कई देशों ने बयान जारी कर फिलिस्तीन की मान्यता के प्रति अपना समर्थन दोहराया। यह साफ है कि आने वाले हफ्तों में यह मुद्दा वैश्विक राजनीति का केंद्र बनेगा।