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ओपिनियन: ट्रंप का टैरिफ शॉक — अमेरिका को आत्मनिर्भर बनाएगा या महंगाई की आग में झोंकेगा?

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लेखक : डॉ. शालिनी अली, समाजसेवी  | नई दिल्ली 26 सितंबर 2025

डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार की धारा को झकझोर दिया है। अक्टूबर से दवाइयों, भारी ट्रकों, किचन कैबिनेट्स और फर्नीचर पर भारी-भरकम टैरिफ लागू करने का फैसला न केवल व्यापारिक नीति है। सवाल यह है कि क्या यह कदम अमेरिका को आत्मनिर्भर बनाएगा या अमेरिकी उपभोक्ता को महंगाई की नई आग में धकेल देगा।

दवाइयों पर 100% टैरिफ: स्वास्थ्य खर्च पर दबाव

सबसे बड़ा और विवादित फैसला है फार्मास्यूटिकल ड्रग्स पर 100% टैरिफ। यह पहली बार है जब अमेरिका दवा आयात पर इतना बड़ा शुल्क लगा रहा है। ट्रंप का तर्क है कि यह अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देगा और घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करेगा। लेकिन अल्पावधि में इसका असर दवाइयों की कीमतों पर दिखेगा। जिन दवाइयों का अमेरिका में कोई विकल्प नहीं है, वे सीधे दोगुनी कीमत पर मिलेंगी।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इससे अस्पतालों के बजट पर दबाव बढ़ेगा, बीमा प्रीमियम महंगे होंगे और अंततः इसका खामियाजा आम मरीजों को भुगतना पड़ेगा। ट्रंप प्रशासन की दलील है कि यह अस्थायी दर्द है, लेकिन लंबी अवधि में अमेरिका में नई फैक्ट्रियाँ लगने से रोजगार बढ़ेगा और कीमतें स्थिर होंगी।

भारी ट्रकों और लॉजिस्टिक लागत पर असर

भारी ट्रकों पर 25% टैरिफ लगाने से परिवहन उद्योग में उथल-पुथल मचना तय है। अमेरिका में पहले से ट्रकिंग उद्योग ड्राइवरों की कमी, डीज़ल की ऊँची कीमतों और सप्लाई चेन दबाव से जूझ रहा है। आयातित ट्रकों पर टैक्स का मतलब है कि कंपनियों को वाहन खरीदने के लिए ज्यादा भुगतान करना होगा, जिससे लॉजिस्टिक लागत बढ़ेगी। इसका सीधा असर आम उपभोक्ता तक पहुँचेगा क्योंकि परिवहन लागत हर उत्पाद की अंतिम कीमत में जुड़ती है।

हाउसिंग और किचन इंडस्ट्री के लिए झटका

50% टैरिफ किचन कैबिनेट्स और बाथरूम वैनिटीज़ पर लगाने का फैसला घर बनाने वालों और रेनोवेशन प्रोजेक्ट्स के लिए बड़ा झटका है। अमेरिका में पहले से ही हाउसिंग मार्केट महंगाई और ब्याज दरों की मार झेल रहा है। नई हाउसिंग परियोजनाओं की लागत बढ़ने का मतलब है कि घर खरीदना और मुश्किल होगा।

फर्नीचर पर 30% शुल्क से मध्यम वर्ग का बजट और बिगड़ेगा। रियल एस्टेट और हाउसिंग सेक्टर में गिरावट अमेरिका की आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक असर डाल सकती है।

भारत और वैश्विक बाजार पर असर

ट्रंप के इस टैरिफ शॉक का असर भारत सहित पूरी दुनिया पर महसूस किया जाएगा। भारत अमेरिका को जेनेरिक दवाइयों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। 100% टैरिफ का मतलब है कि भारतीय फार्मा कंपनियों की अमेरिका को होने वाली बिक्री प्रभावित हो सकती है। अमेरिका में भारतीय जेनेरिक दवाओं की मांग उच्च है, लेकिन कीमतें दोगुनी होने से वहाँ की हेल्थकेयर प्रणाली पर दबाव बढ़ सकता है। इससे अमेरिकी कंपनियों पर स्थानीय उत्पादन के लिए दबाव बढ़ेगा, जबकि भारतीय कंपनियों को वैकल्पिक बाजार तलाशने पड़ सकते हैं।

भारी ट्रकों और ऑटोमोबाइल पार्ट्स के निर्यातक देशों — खासकर जापान, दक्षिण कोरिया और जर्मनी — पर भी इसका असर पड़ेगा। इन देशों की कंपनियाँ अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए या तो अमेरिका में स्थानीय असेंबली प्लांट लगाएंगी या फिर कीमतें बढ़ाएँगी। यह कदम वैश्विक सप्लाई चेन में बदलाव ला सकता है और अंतरराष्ट्रीय ऑटोमोबाइल उद्योग को नए निवेश पैटर्न पर सोचने को मजबूर कर सकता है।

यूरोपियन यूनियन और चीन पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वे इसका जवाब देने के लिए प्रतिशोधी टैरिफ पर विचार करेंगे। अगर यह “टैरिफ युद्ध” लंबा चला तो वैश्विक व्यापार सुस्ती का शिकार हो सकता है और विश्व अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पहले ही चेतावनी दी है कि बढ़ते संरक्षणवाद से वैश्विक जीडीपी में गिरावट का खतरा है।

राजनीतिक दांव या आर्थिक जोखिम?

ट्रंप के समर्थक इसे “अमेरिका फर्स्ट” नीति का अगला बड़ा कदम मान रहे हैं। वे कहते हैं कि चीन, भारत और अन्य देशों से आने वाले सस्ते उत्पाद अमेरिकी उद्योगों को नुकसान पहुँचा रहे थे, इसलिए यह टैरिफ जरूरी है।

लेकिन विरोधी इसे चुनावी स्टंट बता रहे हैं। उनका कहना है कि ट्रंप का असली मकसद चुनाव से पहले घरेलू मतदाताओं को संदेश देना है कि वे अमेरिकी उद्योग और नौकरियों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठा रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि यह नीति अल्पकालिक महंगाई को बढ़ाएगी और फेडरल रिजर्व पर ब्याज दरें ऊँची रखने का दबाव बनाएगी।

दोधारी तलवार

ट्रंप का यह फैसला निस्संदेह साहसिक है। यह अमेरिका में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन इसका मूल्य चुकाना पड़ेगा — ऊँची कीमतें, महंगाई का दबाव और अल्पकालिक आर्थिक अस्थिरता।

अब यह देखने की बात होगी कि क्या अमेरिकी मतदाता इसे “लंबी अवधि के फायदे के लिए उठाया गया कठिन कदम” मानेंगे या इसे अपनी जेब पर बढ़ते बोझ के लिए जिम्मेदार ठहराएँगे।

 

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