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डेनमार्क पर ड्रोन हमले: देश हुआ बे­पर्दा, सुरक्षा व्यवस्था पर उठे बड़े सवाल

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कोपेनहेगन / डेनमार्क, 26 सितंबर 2025 —

पश्चिम डेनमार्क के कई हवाई अड्डों और सैन्य प्रतिष्ठानों के ऊपर अनधिकृत ड्रोन गतिविधियों ने बड़े पैमाने पर हलचल मचा दी है। यह घटना उन संरचनाओं के लिए गंभीर चुनौतियों को उजागर करती है जिन्हें कभी अचूक माना जाता था। अधिकारियों ने इन ड्रोन गतिविधियों को “हाइब्रिड हमला” कहा है, जिसमें योजनाबद्ध तरीके से डर और अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की गई है। 

हवाई अड्डों पर ड्रोन का आतंक

रात के समय अनजान ड्रोन गतिविधियों की वजह से कुछ एयरपोर्टों को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा। Aalborg Airport को लगभग तीन घंटे बंद करना पड़ा, जबकि Billund Airport एक घंटे तक बंद रहा। 

ड्रोन स्क्राइड्स्ट्रप (Skrydstrup) एयरबेस के पास भी देखे गए, जो देश के F-16 और F-35 लड़ाकू विमानों का केंद्र है। 

कोपेनहेगन एयरपोर्ट पर भी कुछ दिन पहले इसी प्रकार की ड्रोन गतिविधि हुई थी और इसे डेनमार्क की “महत्वपूर्ण आधारभूत संरचना” पर सबसे गंभीर हमला कहा गया। 

सरकार और अधिकारियों की प्रतिक्रिया

डेनमार्क के रक्षा मंत्री Troels Lund Poulsen ने इन घटनाओं को “व्यवस्थित हमला” करार दिया और कहा कि ये ड्रोन गतिविधियाँ पेशेवर अंदाज़ की थीं। 

न्याय मंत्री Peter Hummelgaard ने कहा कि ड्रोन उड़ानों का उद्देश्य डर और सामाजिक झगड़े पैदा करना हो सकता है। उन्होंने नए कानूनों की भी बात की, ताकि महत्वपूर्ण संरचनाओं को ड्रोन हमलों से सुरक्षित रखा जा सके। 

अधिकारियों का कहना है कि उनमें संदिग्ध सक्रियता देखने को मिली है और वे इसे विदेश समर्थित कार्रवाई से जोड़ने की संभावना तलाश रहे हैं। 

उजागर कमजोरियाँ

इन घटनाओं ने डेनमार्क की सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी खामियाँ सामने ला दी हैं—

हवाई क्षेत्र की निगरानी प्रणाली इतनी मजबूत नहीं थी कि अनधिकृत ड्रोन घुसपैठ को तुरंत रोका जा सके।

प्रतिक्रिया प्रणाली में देरी, जिससे ड्रोन को हवा में अधिक समय तक उड़ने का मौका मिला।

कानूनी ढाँचे की कमी — अभी यह स्पष्ट नहीं कि संवैधानिक रूप से ड्रोन को नीचे गिराने की अनुमति कब तक दी जाए।

आगे की रणनीति और संभावनाएँ

डेनमार्क सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए NATO और यूरोपीय देश­ों के साथ सहयोग के संकेत दिए हैं। रक्षा मंत्रियों की बैठकें और सुरक्षा उपायों की समीक्षा प्रस्तावित है। 

विश्लेषकों का मानना है कि यह हमला एक तरह से यह परखा जा रहा है कि यूरोपीय देशों की सुरक्षा प्रणालियाँ कितनी तैयार हैं। अगर जल्द कदम नहीं उठाए गए, तो ये घटना भविष्य में और बड़े हमलों की राह खोल सकती है।

 

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