अयोध्या, 24 सितंबर 2025
अयोध्या की ज़मीन पर आयोजित ‘अस्तित्व बचाओ, भाईचारा बनाओ’ रैली उस वक्त सुर्ख़ियों में आ गई जब आज़ाद समाज पार्टी (ASP) के अध्यक्ष और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने मंच से नारा दिया— “मैं बोल रहा हूँ I Love Muhammad, डालो मुझे जेल में, मैं देखना चाहता हूँ।” उनका यह बयान महज़ एक धार्मिक इज़हार नहीं था, बल्कि मौजूदा हालातों और विवादित घटनाओं पर एक सियासी और संवैधानिक प्रतिक्रिया भी थी। जिस तरह यह वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, उसने न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचाई है बल्कि पूरे देश में धर्म और आस्था की स्वतंत्रता बनाम कानून-व्यवस्था की बहस को भी हवा दे दी है।
इस विवाद की पृष्ठभूमि समझना ज़रूरी है। 4 सितंबर को कानपुर के सैय्यद नगर मोहल्ले में “I Love Muhammad” लिखे बैनर और पोस्टर लगाए गए थे। कुछ लोगों ने इन्हें फाड़ दिया और इसका विरोध शुरू हुआ। पुलिस ने भी शिकायत के आधार पर कार्रवाई की और मामला दर्ज किया। इस बीच सोशल मीडिया पर यह संदेश फैलने लगा कि “I Love Muhammad” लिखने या बोलने पर पुलिस केस दर्ज कर रही है। हक़ीक़त में मामला पोस्टर फाड़ने और विवाद बढ़ने का था, लेकिन अफवाहों और बिना पड़ताल किए साझा किए जा रहे वीडियो और संदेशों ने इसे धार्मिक अभिव्यक्ति के सवाल में बदल दिया। यही नहीं, देखते ही देखते यह विवाद कानपुर से उन्नाव, भदोही और दूसरे जिलों तक फैल गया। उत्तराखंड के काशीपुर तक “I Love Muhammad” लिखे पोस्टर लगाए जाने लगे और लोग इसे एक आंदोलन की शक्ल देने लगे।
इसी पृष्ठभूमि में चंद्रशेखर आज़ाद का बयान सामने आया। उन्होंने अयोध्या के मंच से साफ़ कहा कि संविधान हर नागरिक को अपनी धार्मिक आस्था व्यक्त करने की स्वतंत्रता देता है। उनका कहना था कि यदि “I Love Muhammad” कहना अपराध है, तो उन्हें भी जेल में डाल दिया जाए। उन्होंने प्रशासन और सरकार को सीधी चुनौती दी— “मैं देखना चाहता हूँ कि क्या अब मोहम्मद से मोहब्बत का इज़हार भी जुर्म बन गया है।” आज़ाद का यह बयान स्पष्ट रूप से संविधान की धारा 25 और 26 का हवाला देता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था की गारंटी देती हैं।
आजाद का यह बयान केवल एक धार्मिक नारे का समर्थन नहीं था, बल्कि इसके पीछे उनका बड़ा सामाजिक और राजनीतिक संदेश छिपा था। उन्होंने इसे सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे से जोड़ा और कहा कि नफरत की राजनीति को रोकने के लिए लोग बेखौफ़ होकर अपनी आस्था का इज़हार करें। उनका दावा है कि जब देश में कुछ शक्तियाँ धर्म के नाम पर विभाजन और तनाव बढ़ा रही हैं, तब यह ज़रूरी है कि लोग एक-दूसरे के धार्मिक प्रतीकों के प्रति सम्मान दिखाएँ और खुले तौर पर प्यार और मोहब्बत का संदेश दें।
इस बयान के राजनीतिक मायने भी गहरे हैं। चंद्रशेखर आज़ाद दलित राजनीति के एक प्रमुख चेहरे हैं और उनकी पार्टी अल्पसंख्यक वर्ग में अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश कर रही है। “I Love Muhammad” का नारा देकर उन्होंने एक तरह से अल्पसंख्यकों के बीच भरोसे का संदेश भेजा है कि वे उनकी आस्था और धार्मिक अधिकारों के साथ खड़े हैं। वहीं, आलोचक इसे एक राजनीतिक स्टंट बता रहे हैं और कहते हैं कि आज़ाद इस विवाद को भुनाकर अपनी पार्टी की सियासी ज़मीन मज़बूत करना चाहते हैं।
सोशल मीडिया पर यह बयान खूब वायरल हो रहा है। समर्थक कह रहे हैं कि यह एक साहसिक कदम है, जो संविधान की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी को सामने लाता है। दूसरी ओर, विरोधी इसे समाज में अनावश्यक ध्रुवीकरण फैलाने वाली कोशिश बता रहे हैं। पुलिस और प्रशासन भी असमंजस में है कि ऐसे बयानों को कैसे देखा जाए— आस्था की स्वतंत्रता के तौर पर या संभावित तनाव भड़काने वाले कारक के रूप में।
चंद्रशेखर आज़ाद का यह बयान अब एक बड़े सवाल की तरफ़ इशारा करता है— क्या भारत में धार्मिक अभिव्यक्ति और मोहब्बत का सामान्य इज़हार भी विवाद और मुक़दमे का विषय बन गया है? और क्या राजनीतिक मंचों से ऐसे नारों का इस्तेमाल समाज में भाईचारा बढ़ाने में मदद करेगा या फिर यह भी एक और सियासी हथकंडा बनकर रह जाएगा?