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आई लव मोहम्मद’ लिखना कैसे गैरकानूनी हो सकता है? — जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उठाया बड़ा सवाल

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नई दिल्ली / कानपुर, 24 सितंबर 2025 

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने देश में तेज़ी से फैल रहे “I Love Muhammad” पोस्टर विवाद पर अभिव्यक्ति की आज़ादी और कानून की सीमाओं पर एक सीधे सवाल के तौर पर प्रतिक्रिया दी है। उमर ने रिपोर्टर्स से कहा कि तीन शब्दों — “I Love Muhammad” — के लिखे जाने पर मुक़दमा दर्ज करना समझ से परे है और न्यायालयों से इस मामले पर शीघ्र स्पष्टता मांगी जानी चाहिए। उन्होंने संवाददाताओं के सामने पूछा कि “ये तीन शब्द कैसे गैरकानूनी हो सकते हैं?” और कहा कि ऐसे मामलों में सामाजिक सहिष्णुता और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। इस टिप्पणी में उन्होंने इस बहस को न केवल कानूनी बल्कि नैतिक और संवैधानिक चुनौती के रूप में पेश किया। 

मामला कानपुर के रावतपुर से शुरू हुआ जहां स्थानीय रूप से लगाए गए “I Love Muhammad” लिखे बैनर/पोस्टरों को लेकर तनाव उपजा और उस घटनास्थल पर बिना अनुमति गेट/पैनल लगाये जाने को लेकर स्थानीय पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की। रिपोर्टों के अनुसार कानपुर में दर्ज प्राथमिकी में कुछ नामज़द और कुछ अज्ञात लोगों का जिक्र है — और पुलिस ने कहा कि प्रारम्भिक तौर पर यह मामला सार्वजनिक स्थल पर बिना अनुमति गेट लगाये जाने तथा व्यवस्था बिगाड़ने के आरोपों से जुड़ा है, जबकि स्थानीय समुदाय और कार्यकर्ता इसे सीधे तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला बता रहे हैं। कानपुर के इस विवाद के बाद मामला अन्य जिलों तक फैल गया और अलग-अलग स्थानों पर प्रदर्शन और तनाव की घटनाएँ सामने आईं। 

कानपुर की घटना के बाद यह विवाद राष्ट्रीय स्तर पर फैल गया: कई स्थानों पर—उन्नाव, भदोही और अन्य जिलों में—प्रदर्शन और तनाव की खबरें आईं, कुछ जगहों पर हलचल और पत्थरबाज़ी जैसी घटनाएँ भी दर्ज की गईं जबकि प्रशासन ने सार्वजनिक व्यवस्था कायम रखने के लिए तैनाती बढ़ा दी। रिपोर्टर-वृत्तांत बताते हैं कि सोशल मीडिया पर यह मुद्दा तीव्रता से वायरल हुआ और राजनीतिक नेताओं तथा नागरिक-अधिकार समूहों ने अलग-अलग रुख अपनाया—कुछ ने पोस्टरों को सियासी उकसावे के रूप में बताया, तो कुछ ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रश्न कहा। इन राज्यों में शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए स्थानीय और जिला प्रशासन सतर्क हो गए हैं। 

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया तेज़ रही है। विपक्षी नेताओं और कुछ नागरिक-अधिकार समूहों ने इस तरह के मुकदमों को अभिव्यक्ति पर हमला करार दिया, तो कुछ संगठनों ने इसे सार्वजनिक व्यवस्था और संवेदनशीलता का उल्लंघन बताकर आपत्ति जताई। राष्ट्रीय स्तर पर भी नेताओं ने अपनी टिप्पणी दी—कुछ नेताओं ने ये कहा कि बिना सटीक परिस्थितियों को जाने किसी को गिरफ्तार करना अनुचित है और अदालतों को जल्द स्पष्टता देनी चाहिए; वहीं कुछ सामाजिक कार्यकर्त्ता और समुदायिक प्रतिनिधि शांति की अपील करते हुए मामले की निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं। इस बीच कुछ चेहरों ने इस घटना को संवेदनशीलता का मुद्दा बताते हुए शहरों में शांति बनाए रखने की अपील भी की। 

कायदे-कानून और संवैधानिक दृष्टि से यह घटना बड़ा सवाल खड़ा करती है: कहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी समाप्त होती है और सार्वजनिक व्यवस्था तथा समुदायों की भावनात्मक संवेदनशीलता को किस सीमा तक कानून द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में त्वरित, पारदर्शी और निष्पक्ष जांच आवश्यक है ताकि अफवाहों और अतिरेकी प्रतिक्रियाओं से स्थिति और भड़के नहीं। स्थानीय प्रशासनों का कहना है कि दोषियों के खिलाफ क़ानून के तहत कार्रवाई की जाएगी, पर साथ ही समुदायों से भी शांति बनाए रखने और हिंसा से दूर रहने की अपील हो रही है। 

अंततः यह विवाद न सिर्फ़ एक स्थानीय घटना के रूप में देखने को नहीं है, बल्कि यह देश में धर्म, राजनीति, मीडिया और कानून के बीच के संवेदनशील रिश्तों की परीक्षा बन गया है — और अब उम्मीद की जा रही है कि अदालतें और प्रशासन मिलकर स्पष्ट, निष्पक्ष और क़ानून के अनुरूप निर्णय देंगे ताकि समानता, बहुलवाद और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा बनी रहे।

 

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