नई दिल्ली 24 सितंबर 2025
देशभर में करोड़ों करदाता इस साल इनकम टैक्स रिफंड का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। आकलन वर्ष 2025-26 में अब तक 7.58 करोड़ से ज्यादा रिटर्न भरे जा चुके हैं, जिनमें से करीब 6.87 करोड़ रिटर्न वेरिफाई हो चुके हैं। बावजूद इसके, लाखों टैक्सपेयर्स को अब तक उनके रिफंड की रकम नहीं मिली है। आंकड़े बताते हैं कि लगभग 1 करोड़ से ज्यादा रिटर्न अभी भी प्रोसेसिंग के दौर में अटके हुए हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों आम करदाताओं का पैसा उनके बैंक खातों में समय पर नहीं पहुंच रहा है?
देरी का असली सच: सिस्टम, सख्ती और स्क्रूटनी
इनकम टैक्स विभाग की ओर से दावा किया गया था कि सामान्य रिटर्न 2 से 5 हफ्तों में प्रोसेस कर दिए जाते हैं। लेकिन इस बार तस्वीर उलट है। जून-जुलाई में समय से रिटर्न भरने वाले भी आज तक रिफंड का इंतजार कर रहे हैं। विभाग का तर्क है कि जटिल रिटर्न्स — जिनमें कई आय स्रोत हों, बड़ी डिडक्शन्स ली गई हों या विदेशी संपत्तियों का विवरण शामिल हो — उनमें ज्यादा जांच करनी पड़ती है। इस सख्ती के कारण आम लोगों के साधारण रिटर्न भी देरी का शिकार हो रहे हैं। यानी, सरकार पारदर्शिता और कर चोरी रोकने की बात कर रही है, लेकिन इसका खामियाजा सीधे आम करदाता भुगत रहा है।
डेटा का गड़बड़झाला: छोटी गलती, बड़ी मार
रिफंड में देरी की दूसरी बड़ी वजह है डेटा मिसमैच। यदि करदाता का बैंक खाता प्री-वैलिडेटेड नहीं है, पैन-आधार लिंकिंग में गड़बड़ी है या फिर टीडीएस और 26AS की जानकारी में अंतर है, तो पूरा रिटर्न होल्ड पर चला जाता है। ऐसी स्थिति में महीनों तक पैसा नहीं आता। लाखों करदाताओं को छोटे-छोटे तकनीकी कारणों से रिफंड रोक दिया गया है। यही नहीं, कई जगह विभाग की ओर से मांगे गए अतिरिक्त दस्तावेज़ देर से जमा होने पर भी प्रोसेस अटक जाता है। सरकार डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस की दुहाई देती है, लेकिन हकीकत यही है कि सिस्टम की खामियों ने लोगों की जेब पर ताला डाल दिया है।
करदाताओं की नाराज़गी: “हमसे टैक्स तुरंत चाहिए, रिफंड में साल क्यों?”
आम करदाता खुले तौर पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं। उनकी शिकायत है कि जब टैक्स की वसूली की बात आती है तो सरकार के पास पूरी ताकत होती है, हर डेडलाइन सख्ती से लागू होती है और जुर्माना-पेनल्टी तक वसूली जाती है। लेकिन जब उसी करदाता का रिफंड देने की बारी आती है, तो महीनों तक इंतजार कराया जाता है। लोगों का कहना है कि सरकार करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल अपनी कैश फ्लो और घाटा मैनेजमेंट के लिए कर रही है। यह गुस्सा अब सोशल मीडिया पर भी साफ झलक रहा है, जहां टैक्सपेयर्स लगातार सवाल उठा रहे हैं कि “हमारा पैसा आखिर कब मिलेगा?”
पोल खोल: पारदर्शिता का दावा, हकीकत में देरी
सरकार और विभाग चाहे इसे सिस्टम सुधार और सख्ती का हिस्सा बताएं, लेकिन सच यही है कि करोड़ों करदाता अपने हक की रकम पाने के लिए तरस रहे हैं। टैक्स चुकाने के बाद रिफंड का इंतजार आम लोगों के लिए मानसिक और आर्थिक दोनों ही स्तर पर बोझ बन गया है। यह मामला सिर्फ प्रशासनिक देरी का नहीं है, बल्कि भरोसे और पारदर्शिता का भी है। जब सरकार खुद को करदाता-हितैषी बताती है, तो सबसे पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि टैक्सपेयर्स का पैसा समय पर उन्हें वापस मिले।