वाशिंगटन/ नई दिल्ली 22 सितंबर 2025
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए H-1B वीज़ा शुल्क नियमों ने भारत के आईटी सेक्टर और ग्लोबल टेक कंपनियों के बीच खलबली मचा दी है। ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा फीस में भारी बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा है, जिसके चलते भारतीय आईटी कंपनियों और बिग टेक फर्मों के बिज़नेस मॉडल पर सीधा खतरा मंडराने लगा है।
भारत की आईटी कंपनियाँ—जैसे इन्फोसिस, टीसीएस, विप्रो और एचसीएल—अमेरिका में अपने प्रोजेक्ट्स के लिए बड़ी संख्या में H-1B वीज़ा पर निर्भर रहती हैं। नए नियमों के तहत प्रति वीज़ा लाखों रुपये तक का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इसका सीधा असर कंपनियों की प्रॉफिट मार्जिन, क्लाइंट कॉन्ट्रैक्ट्स और ग्लोबल एक्सपैंशन पर होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ भारत के आईटी सेक्टर की चुनौती नहीं है, बल्कि अमेरिकी टेक इंडस्ट्री पर भी गहरा असर डालेगा। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न और मेटा जैसी दिग्गज कंपनियाँ भी अपने इंजीनियरिंग और डेवलपमेंट हब के लिए भारतीय टैलेंट पर भारी निर्भर हैं। यदि वीज़ा शुल्क बढ़ा, तो इन कंपनियों के लिए न केवल कॉस्ट बढ़ेगी बल्कि टैलेंट हायरिंग भी मुश्किल हो जाएगी।
इंडस्ट्री एनालिस्ट मानते हैं कि ट्रंप का यह कदम चुनावी राजनीति से प्रेरित है, क्योंकि वह अमेरिकी जनता को यह संदेश देना चाहते हैं कि H-1B वीज़ा “अमेरिकियों की नौकरियाँ छीन रहा है।” लेकिन असलियत यह है कि अमेरिकी कंपनियों में भारतीय प्रोफेशनल्स की भूमिका बेहद अहम है और यह नीति दोनों देशों की आर्थिक साझेदारी को झटका दे सकती है।
भारत सरकार ने इस मुद्दे को बेहद गंभीर बताते हुए कहा है कि इस फैसले के मानवीय और आर्थिक परिणाम होंगे। लाखों भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स, जो अमेरिका में काम कर रहे हैं या नौकरी के सपने देख रहे हैं, सीधे प्रभावित होंगे। ट्रंप का यह कदम भारत-अमेरिका संबंधों में नया तनाव पैदा कर सकता है। सवाल यह है कि क्या भारत की सॉफ़्टवेयर ताक़त और अमेरिका की टेक्नोलॉजी दिग्गज इस झटके से उबर पाएंगे, या फिर यह फीस वाकई ग्लोबल आईटी इंडस्ट्री के बिज़नेस मॉडल को हिला डालेगी?