नई दिल्ली 22 सितंबर 2025
सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने सोमवार को बेहद अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि “अब हाई टाइम है कि मानहानि (Defamation) को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए।” इस टिप्पणी ने न सिर्फ अदालतों में चल रहे मामलों की दिशा पर असर डाला है, बल्कि पूरे देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम मानहानि कानून पर नई बहस छेड़ दी है।
जज का कहना था कि मौजूदा समय में क्रिमिनल डिफेमेशन (आपराधिक मानहानि) का इस्तेमाल अक्सर दबाव बनाने, आलोचना को दबाने और पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज़ को कुचलने के लिए किया जाता है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब सिविल उपाय (Civil Remedies) मौजूद हैं, तो फिर किसी व्यक्ति को सिर्फ आलोचना या असहमति जताने पर जेल भेजने का औचित्य क्या है?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में मानहानि IPC की धारा 499 और 500 के तहत अपराध है, जिसमें दोषी पाए जाने पर दो साल तक की सज़ा हो सकती है। पत्रकारों, एक्टिविस्टों और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इन धाराओं का लगातार दुरुपयोग होता रहा है। कई बार नेताओं और बड़े उद्योगपतियों ने मीडिया संस्थानों पर करोड़ों के मानहानि केस दर्ज कराकर उन्हें चुप कराने की कोशिश की है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि आपराधिक मानहानि कानून “औपनिवेशिक विरासत” है, जिसे ब्रिटिश राज ने असहमति को कुचलने के लिए बनाया था। ऐसे में 21वीं सदी के भारत में इसे जारी रखना लोकतंत्र और स्वतंत्र विचार की भावना के खिलाफ है।
राजनीतिक हलकों में भी इस पर प्रतिक्रियाएँ तेज़ हो गई हैं। विपक्ष का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी साबित करती है कि सत्ता पक्ष आलोचना को रोकने के लिए इन कानूनों का हथियार की तरह इस्तेमाल करता रहा है। वहीं, सत्तारूढ़ दल का कहना है कि मानहानि कानून को पूरी तरह खत्म करने के बजाय इसमें संतुलन लाने पर विचार होना चाहिए।
साफ है कि सुप्रीम कोर्ट के जज की यह टिप्पणी आने वाले समय में कानूनी सुधारों की नई बहस का केंद्र बनेगी। क्या भारत सचमुच अभिव्यक्ति की आज़ादी को और मज़बूत करते हुए आपराधिक मानहानि कानून को खत्म करेगा, या फिर यह मुद्दा सिर्फ बहस तक ही सीमित रह जाएगा—यह देखने वाली बात होगी।